श्राद्ध कर्म का त्याग न करें : डा. महेंद्र शर्मा आयुर्वेदज्योतिषाचार्य

श्राद्ध कर्म का त्याग न करें : डा. महेंद्र शर्मा आयुर्वेदज्योतिषाचार्य।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
ब्यूरो चीफ – संजीव कुमारी।
दूरभाष – 9416191877

पानीपत : पानीपत आयुर्वेदिक शास्त्री अस्पताल के संचालक प्रख्यात आयुर्वेदज्ञ ज्योतिषाचार्य डा. महेंद्र शर्मा ने आज श्राद्ध पक्ष में जानकारी देते हुए बताया की कोई भी नवजात शिशु दो वर्ष की आयु में “बोलना” सीख जाता है लेकिन यह समझने में की “क्या नहीं बोलना” इस को सीखने में उस की सारी उम्र बीत जाती है और फिर भी गलतियां होती रहती हैं। नजदीकी रिश्तेदारी में एक रस्म क्रिया में जाना था और दिल्ली पहुंचा ही था कि आदरणीय युधिष्ठिर शर्मा जी का एक फोन आया कि कन्यागत सूर्य में श्राद्ध पक्ष पर एक महत्वपूर्ण जानकारी चाहिए कि जो महानुभाव अपने पितरों का श्राद्ध गया जी में कर आए हैं क्या उन दिवंगत पितरों का श्राद्ध कर्म करना चाहिए कि नहीं। यद्यपि गत सप्ताह श्राद्ध पक्ष के प्रारंभ होने पर इस विषय में एक स्क्रिप्ट लिख चुका हूं जिसमें श्राद्ध तिथियों का गणना का नियम लिखा था। लेकिन यह विषय उससे थोड़ा सा भिन्न है और उतना ही महत्वपूर्ण है जितना की विज्ञान।
विडम्बना यह है कि आज संसार व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी का विद्यार्थी है और इस विद्यार्थी को अपने को छोड़ कर सभी विषयों पर निर्णय देने का पूर्णाधिकार है। हम सभी न तो किसी सत्संग में जाते हैं, न ही कोई अनुष्ठान करते हैं न ही शिव पूजा… यहां तक कि जब हम किसी रस्म क्रिया में जाते हैं वहां केवल अपनी घड़ी की ओर देखते हैं कि समय तो दो से तीन लिखा था और पांच मिनट ऊपर हो गए है। आंगतुक यह कभी भी नहीं देखता कि वह आया कितने बजे है। किसी के यहां श्री सुन्दर काण्ड पाठ हो या भगवती जागरण हमारा ध्यान केवल वहीं पर होता है कि भोग कब पड़ेगा। यह वस्तुस्थिति है आज हमारे सनातन धर्म की… कि हमारा अध्यात्मिक उत्थान हो रहा है या पतन। आज हमारे घरों में सास बहू को अपने परिवार की परंपराओं और रीति रिवाजों का ही नहीं पता तो व्रत पर्व दूर की बात है यहां तक वर्ष भर के बड़े उत्सव तो मनोरंजन मात्र रह गए हैं। अभी गणपति भगवान दस दिनों के लिए हमारे नगर में आए हुए थे, खूब आयोजन हो रहे थे भोजन और पंडाल में व्यवस्था बड़ी मन मोहक थी जन्मोत्सव श्री गणपति भगवान जी का था और महिलाएं राधा राधा पर नाच रही थी। क्या जब अपने पुत्र पौत्र आदि का जन्मोत्सव मनाते हैं तो क्या केक किसी पड़ोसी के बालक से कटवाते हैं। कोई बुराई नहीं है कि किस का भजन कीर्तन किया जाए..क्या गणपति भगवान पर भजन चर्चा नहीं हो सकती जिस का उत्सव है। विषय यह है जब हम अपने बालकों का जन्मोत्सव प्रति वर्ष मनाते हैं तो पितृ देवता भी कन्यागत सूर्य में अपनी अपनी तिथियों पर हमारे घर द्वार पर तर्पण जल की प्रतीक्षा करते हैं और हमारे द्वारा उनका सम्मान न हो तो उनकी आत्मा तृप्त नहीं होती और ईश्वर कभी भी ऐसा नहीं करें कि। वह कुपित हो जाएं। भद्र सूक्त का सातवां श्लोक है … शतमिन्नु श्रद्धा अन्ति देवा यत्रा नशचक्रा तन्नूनाम। पुत्रासो यत्र पितरों भवंति मा नो मध्या रिषिता युर्गांतो…. अदिति ….. स माता स पिता।
हमारे पूर्वजों का संस्कारों का क्रम शताब्दियों शताब्दियों तक कभी न टूटे हमारे पुत्र जो हों वह हमारे पितृ हों और हम अपने पितरों की संतान बनें। इस लिए स्वयं को धन धान्य सम्पदा से रिद्धि सिद्धि पुष्ट करने के पुण्यावसर को यूं ही अज्ञानता से अपने हाथों से मत जानें दें।
श्री निवेदन श्री गुरु शंकराचार्य पदाश्रित
आचार्य डाo महेन्द्र शर्मा “महेश”9215700495

Read Article

Share Post

VVNEWS वैशवारा

Leave a Reply

Please rate

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

श्रीमद्भगवद्गीता प्राथमिक विद्यालय बाल घर द्वारा मिट्टी अर्पित

Wed Oct 4 , 2023
श्रीमद्भगवद्गीता प्राथमिक विद्यालय बाल घर द्वारा मिट्टी अर्पित। हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।दूरभाष – 9416191877 आज जो खुली हवा में हम सांस ले रहे हैं, यह हमारे शहीदों की देन है :  सुखबीर। कुरुक्षेत्र, 3 अक्तूबर : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत […]

You May Like

advertisement