बिहार:आज भी समाज में बेटे जन्म होते ही पमरिया को घरों में गाना बजाना नाचना घरवाले खुशियों से    तोहफे का अंबार लगा देते हैं

आज भी समाज में बेटे जन्म होते ही पमरिया को घरों में गाना बजाना नाचना घरवाले खुशियों से    तोहफे का अंबार लगा देते हैं ।

कटिहार फलका अमर कुमार गुप्ता की रिपोर्ट—

कटिहार जिला के फलका प्रखंड मैं बेटे के जन्म की खुशी में पमरिया से गाना बजाना नाचना और खुशियों झूम उठते हैं घर वाले यह परंपरा हमारे भगवान श्री राजा दशरथ के पुत्र श्री राम जी के जन्म पर हुआ था आज हमारे देश में कई वर्षों से चलता आ रहा है और यह भी बताया जा रहा है कि बेटे के जन्म होते ही अगर पमरिया की गोद में दे दिया जाए तो वह बच्चे शुद्ध हो जाते हैं आज उसी को मानकर पूरे समाज में बेटियों की खुशी बहुत कम ही देखी जाती है और बेटों की खुशी में घर में नाच गान और तोहफे का भंडार लगा दिए जाते हैं त्रिवेणीगंज के कमरिया बासो एवं लतीफ ,और सदरे आलम उनके दो चार टीम मिलकर 45 पुष्पों से अपने इसी कला को करके अपने घर परिवार को चलाते हैं और समाजों में जिनके घर पुत्र होते हैं और पुत्री भी होती है तो नाच गान गाने बजाए जाते हैं कला का भी अपना दंश होता है। जहां एक तरफ यह कलाकार की मानसिक बनावट की नजाकत एवं अन्य जटिलताओं से पैदा होता है, वहीं दूसरी तरफ जब एक पूरा समुदाय अपनी आजीविका के लिए कला (नाचना, गाना कवित्त रचना) पर निर्भर रहता है, पर कला सम्मान तो दूर, सामान्य मनुष्योचित सम्मान भी नहीं दिला पाती और आर्थिक सहूलियत भी नहीं, तो ऐसे में अपनी कला के कांटे कलाकार को ही घायल करते हैं। ऐसा ही जाति समूह पमरिया है जो मुस्लिम धर्म के अनुगामी हैं, मगर नाचने गाने के बदले में उपहार पाने के लिए हिन्दुओं के आंगन को लोककला से रोशन करते हैं। यहां सांप्रदायिक सदभाव जैसे किसी तयशुदा खांचे में इस गतिविधि को रखना इस गतिविधि की जटिलताओं को नजरंदाज करना होगा। बल्कि यह सांप्रदायिक सहजीवन की आड़ी-तिड़छी रेखाओं से लिखी गई गूढ़ अभिव्यंजनाओं वाली इबारत है।

ये बच्चों के जन्म पर (खासकर बेटों के) नाचते गाते हैं एवं जजमानों से जो कुछ मिल जाता है उसपर निर्भर रहते हैं। अन्य पेशा वाली जातियों की प्राप्तियां जहां तय हुआ करती हैं, वहीं पमरिया आदि जातियों की आमदनी पूर्णत: जजमान के मूड पर निर्भर करती हैं। पुराने जाति संबंध अपनी बहुविध जटिलताओं के साथ बदल रहे हैं। घर-घर जाकर डाढ़ी-बाल बनाने वाले नाइयों ने गांव के चौक पर सैलून खोल लिये हैं जो कि जजमानों के दरवाजे पर जाने के बजाये अपने द्वारा संरचित क्षेत्र (सैलून) में आने की दावत देते हैं। मगर इन बदलावों के क्रम में पुरानी व्यवस्थाओं के दुर्गुणों और नई व्यवस्थाओं की मुश्किलों के बनाये गये घेरे के बीच वे लोग फंस गये हैं जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है। पमरिय� ऐसा समुदाय के पुराने संबंधों को चोट भी खा रहा है और नये समय में कुछ ऐसा नहीं कर पा रहा है जो इसे बेहतर जीवन की तरफ ले जाए कल्पना कीजिए कि जी उत्तर भारतीय ग्रामीण हिंदु आंगन चार पाँच मुसलमान आते हैं।आने के बाद ढोल नाच गान अगल-बगल के पड़ोसी सुनने के बाद सभी महिलाएं आंगन में जमा हो जाती है एक स्त्रियों का संसार बस जाता है जिसके भीतर तीन कलाकार होते हैं और एक लीडर होते हैं जिस से मिलने वाले उपहार आंखों में बांट लिया जाता है अगुआ अपने रोहित माने जाने वाले वस्त्रों को बदल कर भाग लेते हैं यह ढोलकी और झालर संभाल के लेते हैं और जब गीत गाते हैं कभी दुर्गा जी या भोले बाबा तो फिर उनके रिश्तेदारों पर गीत को गाना बजाना करते हैं कभी-कभी रिश्तेदारों से मजाक भी कर लेते हैं और बच्चों को गोद में लेकर बुलाते हैं इस्लाम को मनाने वाली यह सभी नाश्ते गाने लगते हैं और स्थानीय भाषा मैथिली में कुछ दास्तान भी सुनाते हैं जिसमें हिंदू और मुस्लिम संप्रदाय के लोगों की आवाजाही होती रहती है विपक्ष की तेल से मालिश करते हैं और आशीर्वाद देते हैं इन कलाकारों का सम्मान हो यह आर्थिक स्थिति और उन्हें यह गाना बजाना स्त्रियों का वस्त्र धारण करके नाचना गाना आज भी हमारे गांव में खुशियों दिखता है

Read Article

Share Post

VVNEWS वैशवारा

Leave a Reply

Please rate

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

उत्तराखंड:उत्तराखंड की बेटी ने दिव्यागों के लिए बनाई ख़ास बैसाखी, मिला राष्ट्रीय इंस्पायर अवार्ड?

Sat Sep 11 , 2021
उत्तराखंड की बेटी ने दिव्यागों के लिए बनाई ख़ास बैसाखी, मिला राष्ट्रीय इंस्पायर अवार्ड?प्रभारी संपादक उत्तराखंडसाग़र मलिक श्रीनगर: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा 8वीं इंस्पायर अवॉर्ड मानक राष्ट्रीय प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. जिसमें पौड़ी गढ़वाल की 10वीं की छात्रा प्रिंसी को इंस्पायर अवॉर्ड 2019-20 से पुरस्कृत किया गया […]

You May Like

Breaking News

advertisement