राष्ट्रीय चेतना के निर्माण में सशक्त और शानदार भूमिका निभाई हैं किसानोंके ने

राष्ट्रीय चेतना के निर्माण में सशक्त और शानदार भूमिका निभाई हैं किसानोंके ने–

ईस्ट इंडिया कंपनी के आगमन से लेकर अंग्रेजों के सात समंदर पार जाने तक इस देश के किसानों ने इस देश में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध होने वाले प्रत्येक आन्दोलन में बढ चढकर हिस्सा लिया। जब ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा एक-एक कर समस्त भारतीय राजशाही शक्तियाँ परास्त हो गई तब आदिवासियों के साथ मिलकर किसानों ने ही ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध प्रतिरोध की मशाल प्रखरता से जलाए रक्खी । इसलिए पाबना, मोपला ,चम्पारण कूका, खेडा,बारदोली और बिजौलिया जैसे अनगिनत ऐतिहासिक आन्दोलनों के बंशबीजो के साथ सरकार को सहानुभूति सदाशयता उदारता और गहरी संवेदनशीलता का परिचय देना चाहिए । चिडिया-चुरूंग, कीडे-मकोड़े,कीट-फीतंगे,पशु-पक्षी सहित समस्त जीवित प्राणियों की भूख मिटाने वाला किसान न केवल सबका भरण-पोषण कर्ता और धरती पर सबका अन्न्दाता है बल्कि सियासत में चमकते दमकते अनगिनत सूरमाओं का भाग्य-विधाता भी है । क्योंकि इन्ही भोले-भाले अन्नदाताओं के तर्जनी अंगुली की निली स्याहियो के निशान से अनगिनत राजनेता विधायक,सांसद मंत्री मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनते रहे हैं।प्रकारांतर से किसान अन्नदाता के साथ-साथ लोकतंत्र सभी सरकारों का भाग्य-विधाता भी हैं।
सोने चाॅदी हीरे जवाहरात या अन्य किसी चमकती दमकती बहुमूल्य बेशकीमती वस्तुओं से हमारे शौक पूरे हो सकते परन्तु एक भी भूखे पेट की भूख नहीं बुझाई जा सकती है । किसी भी पेट की भूख केवल और केवल रोटी से बुझाई जा सकती है बहुमूल्य और बेशकीमती वस्तुओं से रोटी का एक अदद निवाला भी नहीं बनाया जा सकता हैं। इसलिए इस बसुन्धरा के हर प्राणी की हर तरह की भूख मिटाने वाले किसानों के दुःख दर्द को समझना और उसके समाधान के लिए समुचित प्रयास करना हर सरकार का प्राथमिक दायित्व और कर्तव्य होना चाहिए।तीव्र गति से बढते औद्योगीकरण तकनीकीकरण नगरीकरण और आधुनिकीकरण और सरकारों के उपेक्षापूर्ण रवैया के कारण इस दौर में खेती-किसानी निरंतर घाटे का सौदा होती जा रही है। ऐसे समय में अगर न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुनिश्चितता समाप्त हो जायेगी और किसानों की उपज बाजार के हवाले हो जाएगी तो किसानों की माली हालत कमजोर हो जाएगी। चूंकि विशुद्ध बाजार में जिसकी सौदेबाज़ी की स्थिति मजबूत होती हैं वहीं मुनाफा कमाता है और लाभकारी स्थति में होता हैं।अपनी दैनन्दिन आवश्यकताओं और भावी जरूरतो को पूरा करने के लिए किसान अपनी उपज को अधिक दिनों तक भण्डारण करने की स्थिति में नहीं होता वह अपनी मेहनत की कमाई कभी-कभी किसी भी कीमत पर बेचने के लिए विवश होता हैं। प्रकारांतर से बाजार में किसानों की सौदेबाजी की स्थिति बहुत कमजोर होती हैं। इसलिए न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी रूप देकर ही किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम दिलाया जा सकता है। इसलिए सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी रूप देने पर सहानभूति पूर्वक विचार करना चाहिए। भारत जैसे कृषि प्रधान और विशाल जनसंख्या वाले देशों में कृषि और कृषि आधारित लघु कुटीर उद्योगो के पर्याप्त विकास द्वारा ही देश की विविध आर्थिक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। विशेषकर भारत में बेरोजगारी की समस्या का समाधान कृषि आधारित लघु कुटीर उद्योग में निहित है।भारतीय संविधान में वर्णित नीति निदेशक तत्वों में लघु कुटीर उद्योगो के माध्यम से आर्थिक विकेन्द्रीकरण की सिफारिश की गई है। नीति निदेशक तत्वों स्पष्ट रूप से उल्लिखित किया गया है कि सरकार आर्थिक क्षेत्र में एकाधिकारी प्रवृत्तिओ को हतोत्साहित करेगी और आर्थिक विकेन्द्रीकरण को प्रोत्साहित करेगी। कांट्रैक्ट खेती के कानून से किसानों के मन खेती के कम्पनीकरण और एकाधिकारवादी प्रवृत्तिओ के पनपने की आंशका हैं। राष्ट्र निर्माण में सशक्त भूमिका निभाने वाले किसानों की इस आशंका को पूरी सद्भावना के साथ सरकार को दूर करना चाहिए।
समाज, सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण में ऐतिहासिक भूमिका निभाने वाले किसानों ने राष्ट्रीय चेतना के जागरण में भी शानदार भूमिका निभाई है। 1857 से लेकर 1947 तक स्वाधीनता के लिए होने वाले प्रत्येक आन्दोलन में किसान अग्रिम कतार में खड़ा रहा। लोक चेतना सामाजिक चेतना और राष्ट्रीय चेतना के जागरण में सशक्त और शानदार भूमिका निभाने वाले किसानों के साथ सहानुभूति और सद्भावना का व्यवहार करना ही स्वस्थ्य लोकतंत्रीक परम्परा का परिचायक हैं।

मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ।

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