आजमगढ़ से रचयिता मधु सूदन त्रिपाठी की लेखनीय से

रिपोर्ट पदमाकर पाठक

आजमगढ़ से रचयिता मधु सूदन त्रिपाठी की लेखनीय से।

सरजू मईया का आँचल।
पतित पावनी सरजू मईया का हरित क्षेत्र बसते इन्सान मानवता का सम्मान लिए नही यहां धर्म जाती, भाषा का झंझट
न तो हिन्दू मैं मुश्लीम मैं इसाई, सिक्ख का।

यह तलहटी सरजू की गांव अमानी आज़मगढ़, देवरा कहलाता है, हरता जेठराग्नि ज्वाला हर इन्शान का
सर्दी है माघ महीने की
खेतो में हरियाली गेंहू, सरसो की
हरतक्रान्ति की संज्ञा देने वाले
लाल जवाहर, शास्त्री लालबहादुर की

यह हरित क्रांति, अन्न स्वावलम्बन की झुके नही, रुके नही ललकार दिया
अंहकारी अमेरिकी गेहूं वाले को
बन गया भारत गेहूं निर्याता
जो चबाता जौ बाली, सो जाता
भूखे खाली पेट,

सरजू मैया जल, लिर्मल, प्रवाहित मेरे देवरा अंचल के दिश उत्तर जन्मभूमि कर्म भूमि हम किसानों की बनी रहे यह हरियाली हमारे गांव सिवानो में।

मैया मोक्ष दायनी, प्रबाहित होती आती राम द्वार, अयोध्या धाम से रचनास्थल रामचरितमानस, तुलसी दास का जय राम हरे, जय राम हरे, जय शुखधाम हरे।
जय सुखधाम हरे, जय राम हरे।

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