वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
कुरुक्षेत्र : प्रजापिता ब्रहमाकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय कुरुक्षेत्र, स्थानीय सेवा केन्द्र की इन्चार्ज बी. के. सरोज बहन ने प्रातः क्लास में बताया कि परमात्मा का दिव्य रूप है। भगवान ने कहा है कि – मेरा रूप अणु से भी सूक्ष्म है, अचिन्त्य है और सूर्य वर्ण और ज्योतिस्वरूप है। इससे स्पष्ट है कि परमात्मा भी आत्माओं की तरह एक ज्योति- बिन्दु ही है। ज्योति-बिन्दु होने के कारण ही उन्हें अचिन्त्य तथा अणु से भी सूक्ष्म कहा गया है। गुणों में तो वह महान से भी महान है परन्तु है तो है तो प्वाइन्ट, डॉट (Point, Dot) परमात्मा के इसी बड़ी प्रतिमा भारत में शिवलिंग के रूप में मन्दिरों में पूजी जाती है। भारत के अनेक धार्मिक ग्रन्थों में परमात्मा को विद्युत पुरुष आदि कहा है। (मनुस्मृति में लिखा है।) भारत से बाहर स्थापित धर्मों में उसे ज्योतिर्मय माना गया है। मूसा ने ऐसा ही रूप देखा था। परमात्मा का यह रूप आत्मिक ही है, कायिक नहीं है। ऐसा ही रूप होने के कारण कहा गया है कि उसे चर्म चक्षु नहीं हैं परन्तु फिर भी वह देखता है, उसके कान नहीं है परन्तु फिर भी सुनता है, उसके पाँव नहीं फिर भी वह चलता है। परमात्मा का यह रूप न स्त्री-जैसा है न पुरुष जैसा। इसलिए उसे ‘ज्योतिलिंग कहा जाता है। लिंग का अर्थ ‘चिन्ह या लक्षण है। अनेकों पुराने ग्रन्थों मे लिंग शब्द का इसी अर्थ में प्रयोग किया है। परमात्मा का रूप बिन्दु होने से निराकार ही तो है। मनुष्यों की तरह कोई भी संज्ञावाचक नाम नही है, बल्कि उनके अनेकानेक गुणवाचक नाम हैं। सर्व का कल्याणकारी होने के कारण उनका मुख्य कर्त्तव्यवाचक नाम शिव है।