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लेखक : डॉ अशोक कुमार वर्मा
कुरुक्षेत्र :- भारतवर्ष सोने की चिड़िया कहलाता था क्योंकि यहाँ पर अन्न धान और खाद्यान इत्यादि की कभी कोई कमी नहीं रही यहाँ की सभ्यता सदा से विदेशियों के आकर्षण का केंद्र रही है इसीलिए बार बार यहाँ विदेशियों ने आक्रमण करके इस सोने की चिड़िया वाले देश पर राज करने की इच्छा से परतंत्र करके राज भी किया आज भी कई विदेशी भारत माता की संतान को नशे की दलदल में धकेलकर यहाँ युवा पीढ़ी को बर्बाद करने का प्रयत्न कर रहे हैं। पंजाब के सेवानिवृत पुलिस महानिदेशक कारागार, शशि कांत ने इस मामले में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा था कि अंतर्राष्ट्रीय सीमा से हर महीने एक हज़ार किलो हैरोइन की तस्करी देश में हो रही है. यह नशा म्यांमार, कंबोडिया, अफगानिस्तान, व् उत्तर पश्चिम पाकिस्तान से भारत में पहुँच रहा है. मेडिकल स्टोरों पर बिकने वाली नशीली दवाईयों के संज्ञान पर पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने कड़ा संज्ञान अपनाते हुए कहा कि इनकी बिक्री पर रोक लगाने के लिए एक ठोस नीति बनाने की जरुरत है. इतना ही नहीं सुनवाई के दौरान ही भारत पाकिस्तान सीमा पर कंटीली तारों के बीच पाइप डालकर नशा पहुचाने का मामला भी उठा. इससे स्पष्ट है कि किस प्रकार नशे की तस्करी से हमारी भावी युवा पीढ़ी के जीवन को संकट है।
कुछ वर्ष पूर्व मुझे दो नवयुवक सिगरेट में नशा भरते दिखाई दिए, मैं उनके पास गया और पूछा कि आप की आयु कितनी है तो उनमे से एक लड़के ने अपनी आयु 20 वर्ष बताई मैं उन्हें समझने लगा कि हमारे ग्रन्थ शास्त्रों में लिखा है कि भांग पोस्त अफीम मद नशा उतर जाए प्रभात, नाम खुमारी नानका चढ़ी रहे दिन रात. अभी मैं उसे बता ही रहा था तो दूसरा लड़का बोला कि अरे छोडो हमे जी कर क्या करना है, हम तो मरना चाहते हैं. मैंने उससे उसके परिवार के बारे में पूछा तो कहने लगा कि वह शादीशुदा है और एक वर्ष की बेटी का पिता है. मैंने पूछा कि आप ऐसे मरने की बात क्यों कर रहे हैं. आप को ऐसी बात नहीं करनी चाहिए। उसने बताया कि वह दिनभर मेहनत मजदूरी करके तीन सौ रुपये कमाता है और महंगाई ने उनकी कमर तोड़ दी है मैंने उसे बड़ी मुश्किल से समझाया कि मरना किसी समस्या का हल नहीं अपितु कायरता है। अत: यह भी सच्चाई है कि हमारे लोग कई कारणों से नशे की दलदल में फंस जाते हैं, जिनमे गरीबी, अशिक्षा, बुरी संगत, कुपोषण, दिखावा और बेबसी इत्यादि हैं। पुराने जमाने में लोग चौपाल में बैठकर हुक्का पीते थे धीरे धीरे ये प्रचलन समाप्त होता गया। इसका स्थान बीड़ी सिगरेट ने ले लिया जैसे जैसे विज्ञान ने उन्नति की नशे का व्यापार भी बढ़ता गया. कई लोग पिक्चर में हीरो को सिगरेट पीता देखते हैं तो उनसे प्रेरित होकर इस बुरे व्यसन के शिकार हो जाते हैं।
इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए माननीय उच्च न्यायलय ने सुझाव भी मांगे थे। यदि हम इस पहलु पर विचार करें तो सबसे पहले माता पिता और बुजुर्गों को नशा छोड़कर अपने बच्चों व् समाज के लिए एक उदाहरण पेश करना होगा ज्यादातर बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग जर्दा-तंबाकू का सेवन करते हैं। यदपि हरियाणा सरकार ने जर्दा तंबाकू की बिक्री पर रोक लगाकर एक सराहनीय कदम उठाया है लेकिन फिर भी चोरी चुपके ये बिक भी रहे हैं और लोग इनका सेवन भी कर रहें हैं।
इस और हरियाणा पुलिस के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्रीकांत जाधव साहब ने एक नई पहल करते हुए वर्ष 1999 में फतेहाबाद ज़िले से लोगों का नशा छुड़वाने का एक अभियान चलाया था उन्होंने इसका नाम दिया तू निश्चय तो कर कदम तो बढ़ा निकल आएगा कोई रास्ता.. उन्होंने प्रयास संस्था का गठन किया और वहां के हज़ारों लोगों का नशा छुड़वाया था अब उन्होंने पुन: प्रयास संस्था के माध्यम से पुरे हरियाणा प्रान्त में यह कार्य प्रारम्भ किया हुआ है। प्रयास के सदस्य प्रत्येक गाँव शहर गली मोहल्ले और शिक्षण संस्थानों में जाकर लोगों को नशा न करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं तथा उनका उपचार भी कराया जा रहा है। मेरी राय में माता पिता के साथ साथ अध्यापकों को भी आदर्श स्थापित करना होगा क्योंकि बच्चों पर माता पिता के पश्चात अध्यापक के चरित्र का गहरा प्रभाव पड़ता है। सरकारी सेवाओं में सेवारत लोगों को इस बुराई को दूर करने के लिए पहल करनी चाहिए। हर गली मोहल्ले गांव में नशे में ग्रस्त लोगों को इस बुराई से निकालने में वे विशेष योगदान कर सकते हैं। नशे के जाल में फंसे लोगों को चिन्हित कर उन्हें चिकित्सक से इलाज़ कराने की शुरुआत करनी चाहिए. समाजसेवी संस्थाओं व् धार्मिक संस्थाओं को भी इसमे सहयोग देना चाहिए। नशे का व्यापार करने वालों के विरुद्ध कठोर से कठोर दंड का प्रावधान कर सख्ताई से लागू किया जाना चाहिए।