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कर्म के आधार पर ही फल प्रदान करते है भगवान शनिदेव : सविता गौड़।
उत्तरप्रदेश मथुरा :- बांके बिहारी ज्योतिष केंद्र मथुरा की संचालिका व उत्तर भारत की प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य सरिता गौड़ ने आज न्याय के देवता भगवान शनिदेव के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि भगवान तो है पर हमारे आस पास कुछ ऐसे लोग भी रहते है जो शायद भगवान पर विश्वास नहीं करते इसलिए शनिदेव को शिव जी के कहे अनुसार हर जीव को उसके कर्म अनुसार फल दिया जब मानुष जैसा जीव को अच्छे से समझाना होता है तब आती हैं साढ़े साती।इन सात सालों में मनुष्य अच्छे से अपने कर्म को ठीक तरह से करने लगता हैं।
यही सब कुछ बताती हैं ज्योतिस्विद सरिता गौड़।
शनि की साढ़ेसाती क्या है।
शनि की साढ़े साती वास्तव में शनि का गोचर ही है। जिस प्रकार अन्य ग्रह अपना गोचर करते हैं उसी प्रकार शनि ग्रह भी गोचर करता है। सबसे मंद गति से चलने के कारण शनि को शनैश्चर भी कहा जाता है। शनि ग्रह का गोचर एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक रहता है। गोचर के दौरान जब शनि ग्रह जन्म कालीन चन्द्र से 12 वें भाव में प्रवेश करते हैं तो साढ़ेसाती का आरंभ माना जाता है। इसके बाद जब शनि का गोचर जन्म कालीन चंद्रमा पर अर्थात चंद्र राशि जिसे हम पहला भाव भी कहते हैं, उस पर होता है तो साढ़ेसाती मध्य में होती है और यह साढ़ेसाती का दूसरा चरण कहलाता है और अंत में जब शनि जन्म कालीन चंद्रमा से दूसरे भाव मे गोचर करता है तो यह अवधि साढ़ेसाती का अंतिम अर्थात तीसरा चरण कहलाती है। इस प्रकार चंद्रमा द्वारा अधिष्ठित राशि से बारहवें भाव से प्रारंभ होकर,चंद्र राशि से गुजरते हुए चंद्रमा से द्वितीय भाव में रहने तक की अवधि कुल मिलाकर तीन भावों में ढाई-ढाई वर्ष जोड़ने के बाद 7.5 वर्ष की होती है। इसी के आधार पर इसे “साढ़ेसाती” कहा जाता है।
सरिता गौड़ ने बताया कि मनुष्य को हमेशा अच्छे कर्म ही करने चाहिए भगवान श्री कृष्ण ने गीता में भी यही कहा है कि मनुष्य को उसके कर्मो के आधार पर ही फल प्राप्त होता है। ज्योतिष से सम्बंधित हर समस्या के निवारण के लिए संपर्क किया जा सकता है।
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