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वृद्धाश्रम के संचालक व प्रमुख समाजसेवी जयभगवान सिंगला का पूरा परिवार था कोरोना की चपेट में।
अब रोज लोगों को भेजते हैं हंसने हंसाने वाली वीडियो व आडियो।
रोज पांच लोगों को करते है हालचाल जानने को फोन। जयभगवा सिंगला ने सांझा करे अपने अनुभव।
कुरुक्षेत्र 15 मई :- वृद्घाश्रम के संचालक एवं समाज सेवी जयभगवान सिंगला ने कहा कि 13 अप्रैल को उन्हें हलका सा बदन दर्द था। अगले दिन यह बुखार में बदल गया। मन में आया कि कहीं कोरोना ना हो, इसलिए कोविड का टेस्ट करवाया और जांच रिपोर्ट पॉजिटिव निकली। खुद को संभाला, इसी बीच बाकी परिवार के सभी सदस्य भी कोरोना पाजिटिव हो गए। उनकी खुद की हालत बिगडऩे लगी। लेकिन उन्होंने भी मन में ठान लिया कि खुद को कमजोर नहीं पडऩे देंगे। इसलिए खुद के साथ-साथ परिवार के अन्य सदस्यों को भी हमेशा खुश रहने और हंसते रहने की सलाह दी ताकि मन किसी भी प्रकार की नेगिटिव उर्जा का संचार ना हो। इस मादे के साथ ही वह कोरोना को हराने में सफल हुए।
समाज सेवी जयभगवान सिंगला ने बातचीत करते हुए कहा कि जब वे कोरोना पाजिटिव हुए तो उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगी। ऐसे में परिवार ने अस्पताल में भर्ती करने की सलाह दी। लेकिन कुरुक्षेत्र में कहीं किसी अस्पताल में जगह नहीं मिली। छोटे भाई ज्वैल सिंगला ने गुडगांव में मेदांता के अलावा पंचकूला व चंडीगढ़ में भी कई अस्पतालों में पता किया। कहीं आक्सीजन बेड उपलब्ध नहीं था। बाद में 15 अप्रैल की शाम को किस्मत से कुरुक्षेत्र के बालाजी आरोग्यम अस्पताल में बेड मिल गया। जिस पर परिजनों ने उन्हें वहां एडमिट कर दिया। उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, आक्सीजन लेवल भी घट बढ़ रहा था, संक्रमण फेफडों में पहुंच गया था, ऐसे में अस्पताल में उन्हें आईसीयू में शिफ्ट कर दिया। लेकिन उन्होंने भी ठाना हुआ था कि कोरोना को हराना है। डा. अनुराग कौशल व उनकी टीम भी पूरा हौसला दे रही थी। इसलिए उन्होंने प्रतिदिन योग किया और खुद को खुश रखने के लिए हंसने हंसाने पर जोर देते रहे। यही मंत्र और योग काम आया और सिर्फ दो दिन ही आईसीयू में रहे।
उन्होंने कहा कि अस्पताल में भी वे बेड पर ही प्राणायाम करते रहे, जिससे फेफड़ों को ताकत मिली और 8 दिन बाद ही कोरोना को हराकर अपने घर आ गए। हालांकि कोरोना के कारण अभी तक शरीर पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हुआ है। लेकिन उन्हें उम्मीद है कि पहले जैसा स्वास्थ्य हासिल कर लेंगे। उनके साथ साथ पत्नी आशा, बेटा आदित्य व बहू शिल्पी व छोटा भाई ज्वैल सिंगला भी पॉजिटिव हो गए। उन्होंने आइसोलेशन के नियमों को कड़ा किया। सभी अलग अलग कमरे में आइसोलेट हुए। उन्हें यही चिंता रहती थी कि वृद्धाश्रम में रह रहे बुजुर्ग सही रहे, इसलिए वृद्धाश्रम के साथियों को भी दूर रखा। अस्पताल से आने के बाद वे अब रोजाना कम से कम पांच लोगों को फोन करते है। अपने जानकार लोगों को हंसने हंसाने वाली वीडियो व आडियो क्लिप भेजते है। ताकि हंसने से तनाव कम हो। सभी साथियों व जानकारों का हालचाल जानते है। कई साथी पॉजिटिव मिल चुके है। उन सभी को हौसला बनाए रखने और हमेशा खुश रहने की सलाह दे रहे है।