असंवैधानिक है कर्मचारियों का वेतन रोकना, हाईकोर्ट


प्रभारी संपादक उत्तराखंड
साग़र मलिक

नैनीताल : हाई कोर्ट ने रोडवेज कर्मचारियों को पिछले छः माह से वेतन नहीं दिए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। मंगलवार को वीसी के माध्यम से मुख्य सचिव, वित्त सचिव, परिवहन सचिव , महानिदेशक परिवहन, एडवोकेट जनरल, मुख्य स्थाई अधिवक्त सुनवाई में जुड़े।
कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए है कि जो 34 करोड़ रुपये मुख्यमंत्री ने स्वीकृत किए है, वह आज या कल तक निगम को दें। कर्मचारियों के भविष्य में वेतन दिए जाने पर कहा कि एक संपूर्ण प्रपोजल बनाकर आगामी कैबिनेट मीटिंग में रखें। जिससे कि यह समस्या बार-बार न आने पाए। अपने आदेश में यह भी कहा है कि सरकार को यह अधिकार नही है, कि वह कर्मचारियों का वेतन रोके। यह संविधान के अनुच्छेद 14,19, 21 और मानवाधिकार आयोग का खुला उल्लंघन है। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि पूर्व में कोर्ट ने केंद्र सरकार के परिवहन मंत्रालय को निर्देश दिए थे कि परिसम्पतियों के बंटवारे के लिए दोनों राज्यो के मुख्य सचिवों के साथ बैठक कर निर्णय लें परन्तु अभी तक उस पर कुछ भी नही हुआ। तीन माह के भीतर दोनों प्रदेशो के मुख्य सचिवों की बैठक कर इस मामले में निर्णय लें। उत्तराखंड को बने 21 साल होने को है अभी तक बटवारा नही हो पाया है। जबकि अभी केंद्र व दोनों राज्यो में एक ही पार्टी की सरकार है। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई चार अगस्त की तिथि नियत की है।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खण्डपीठ में सुनवाई के दौरान कोर्ट ने परिवहन सचिव से पूछा कि 34 करोड़ रुपये आपको मिले या नही ।जिस पर उनके द्वारा कोर्ट को बताया गया कि अभी नही मिले । सरकार ने 34 करोड़ रुपये जारी करने का जीओ पास कर दिया है।जिस पर कोर्ट ने आज या कल सरकार से 34 करोड़ रुपये रिलीज करने को कहा। महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर द्वारा केस का नेचर सर्विस से जुड़ा होने की बात कोर्ट से कही। जिस पर कोर्ट ने कहा कि हम इसे सुओ-मोटो पीआइएल के रूप में भी ले सकते है।
सुनवाई के दौरान निगम की तरफ से कोर्ट के सम्मुख यह भी कहा गया कि जब तक निगम की आर्थिक स्थिति ठीक नही हो जाती तब तक कर्मचारीयो को 50 प्रतिशत वेतन दिया जाय। जिस पर कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि सरकार को कोई अधिकार नही है कि वह कर्मचारीयो के वेतन में कटौती करें। यह उनको संविधान के अनुच्छेद 14,19,21, 300A मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। कोर्ट में उपस्थित आईएएस अधिकारियों का 50% वेतन की कटौती न करे दें। कर्मचरियों की हालत बधुआ मजदूर जैसी हो गयी है।
यह थी याचिका
उत्तराखंड रोडवेज कर्मचारी संघ ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि सरकार उनके खिलाफ एस्मा लगाने जा रही है, जो नियम विरुद्ध है, सरकार कर्मचारियों को हड़ताल करने पर मजबूर करती आई है,, सरकार व परिवहन निगम न तो संविदा कर्मचारियों को नियमित कर रही है, न उनको नियमित वेतन दिया जा रहा है, उनको पिछले चार साल से ओवर टाइम भी नहीं दिया जा रहा है, रिटायर कर्मचारियों के देयकों भुगतान नहीं किया गया,यूनियन का सरकार व निगम के साथ कई बार मांगों को लेकर समझौता हो चुका है, उसके बाद भी सरकार एस्मा लगाने को तैयार है।
सरकार ने निगम को 45 करोड़ रुपया बकाया देना है, वहीं उत्तर प्रदेश परिवहन निगम द्वारा भी निगम को 700 करोड़ रुपया देना है। और ना तो राज्य सरकार निगम को उनका 45 करोड़ पर दे रही है ना ही राज्य सरकार उत्तर प्रदेश से 700 करोड़ रुपए मांग रही है, जिस वजह से निगम ना तो नई बसे खरीद पा रही है और ना ही बस में यात्रियों की सुविधाओं के लिए सीसीटीवी समेत अन्य सुविधाएं दे पा रही है। इधर लॉक डाउन से उनको फरवरी माह से वेतन तक नही दिया है।

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