व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण का हाइब्रिड मॉडल बनेगा रोजगार का अवतार

व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण का हाइब्रिड मॉडल बनेगा रोजगार का अवतार।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

वर्ल्ड यूथ स्किल डे 15 जुलाई पर विशेष।
डॉ. राज नेहरू
कुलपति, श्री विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय।

गुरुग्राम : पिछले एक दशक में व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण (वेट) आधारित शिक्षा का देश की नीति और नीति नियंताओं की प्राथमिकता में सम्मिलित होना भारत के करोड़ों युवाओं के लिए सुखद अवसर बन गया है। सरकार ने मुख्यत: दो तरीकों से युवाओं में निपुणता को समावेशित करते हुए इस आयाम का विकास किया है। पहली क्राफ्टमेन ट्रेनिंग स्कीम व दूसरा अप्रेंटिस एक्ट इसके सशक्त आधार बने हैं। राष्ट्रीय कौशल विकास निगम और राष्ट्रीय कौशल विकास अभिकरण ने सही मायने में व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र को तीव्र गति प्रदान की है। इन्होंने उद्योग जगत‌ व सेक्टर स्किल काउन्सिल के बीच बेहतर तालमेल बिठाने की पहल की है। यह अलग बात है कि ऐच्छिक गुणवत्ता न पाने पर आलोचना भी हुई है। प्रारम्भ में साल 2022 तक 500 मिलियन लोगों को रोजगार के लिए दक्ष बनाने का लक्ष्य रखा गया था, किन्तु बाद में संशोधित करके यह लक्ष्य 402.9 मिलियन कर दिया गया। सांख्यिकी आधारित कई अध्ययनों ने यह प्रमाणित किया है कि व्यावसायिक शिक्षा आधारित प्रशिक्षण (वीइटी) का रोजगार पर बड़ा सकारात्मक प्रभाव पड़ा। यकीनन इसकी वजह से युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़े हैं। बढ़े हुए रोजगार के अवसरों को इस समीकरण से और भी आसानी से समझा जा सकता है कि कृषि, उद्योग और निर्माण के क्षेत्र में जो खास प्रशिक्षण दिए गए उससे पारिश्रमिक में 4.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई। यह भी गौरतलब है कि उक्त प्रशिक्षण से वेतन आधारित काम को लेकर सकारात्मक रुझान सामने आए। यूं कहा जा सकता है कि व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण ने युवाओं में रोजगार संभावनाओं को लेकर नए विश्वास और आस्था का निर्माण किया। जिस गति से व्यावसायिक शिक्षा अब देश में बढ़ रही है, वह युवाओं की वेतन आधारित नौकरियों को लेकर अटूट, अटल विश्वास बनाएगी। विभिन्न अध्ययनों से प्रमाणित हुआ है कि उचित व्यावसायिक प्रशिक्षण पूरा करने के दो साल के भीतर ही 28 प्रतिशत युवाओं को रोजगार मिला है। इन्हीं अध्ययन से यह भी साफ हुआ है कि 30 प्रतिशत युवाओं ने प्रशिक्षण के तुरंत बाद नौकरी शुरू न करने का फैसला लिया और आगे की पढ़ाई करने को वरीयता दी। इस पूरे परिदृश्य में यह बात पहले समझनी जरूरी है कि अत्यधिक व्यावसायिक शिक्षा भी आने वाले दिनों में कुछ आशंकाओं को जन्म दे सकती है। बशर्ते उद्योग जगत से मौजूदा व्यावसायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों से मान्यता न दिलाई गई। अर्थात वेट के अंतर्गत जो भी कोर्स शुरू किए जाएं, उस पर पहले उद्योग जगत‌् की यह सहमति होना लाजिमी है कि उनकी दृष्टि में यह उपयोगी हैं। व्यावसायिक शिक्षा वही उपयोगी रहेगी, जिसको इंडस्ट्री अपने लिए उपयोगी मान रही है। रोजगारदाता वर्तमान में जिन निपुणताओं और योग्यताओं को उम्मीदवारों में खोज रहा
है, उनको हमें व्यावसायिक शिक्षा में समाहित करना होगा। तभी तो उद्योग जगत पढ़ाई पूरी करते ही युवाओं को एक अच्छे वेतन वाला रोजगार देगा। इसके लिए जरूरी है कि हम उद्योग जगत की बदलती जरूरतों के
अुनसार पाठ्यक्रम भी बदलते रहें। विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि अगर व्यावसायिक शिक्षा कुछ ऐसे समन्वित तरीके से दी जा रही है, जिसमें समय के साथ परिवर्तित होती निपुणताओंको जगह दी जा रही है, तो यह रोजगार देने वाले और रोजगार पाने वाले दोनों के लिए फायदेमंद साबित होता है। शायद यही अभीष्ट भी है और ऐच्छिक भी। करीब 40 देशों में हुए अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि वोकेशनल एजुकेशन और ट्रेनिंग आधारित कोर्स करने वाले युवाओं को बहुत अच्छी संख्या में नौकरियां मिली हैं। अब यहां हमें सर्तक होने की जरूरत है कि नई शिक्षा नीति 2020 के अंतर्गत जब भारत की शिक्षा विहंगम परिवर्तन की ओर बढ़ रही है, उस घड़ी भी बहुत से शिक्षाविदों की विचार शक्ति अभी भी उसी पुराने और पारपंरिक तंत्र में जकड़ी नजर आती है जो ब्रिटिश हुकूमत के दौर में पैदा और विकसित हुई थी। उसका ध्येय भारतीयों को अपार निपुणता प्रदान करना था ही नहीं, बल्कि उनके खुद के अपने उद्देश्य उसमें समाहित थे।
इसके अतिरिक्त और कई पहलुओं में बड़े बदलावों की आवश्यकता है। प्रशिक्षण की गुणवत्ता, अभ्यर्थी की अपनी प्राथमिकताएं और कोर्स के पाठ्यक्रम में नियमित बदलाव नई जरूरतों के हिसाब से करने होंगे। शिक्षा के साथ विडंबना यह रही कि समय की जरूरत और बदलते बाजार के मुताबिक इसमें परिवर्तन नहीं किए गए। परंतु अब नई शिक्षा नीति में इसी कमी को पूरा किया जा रहा है। एक बड़ी विडंबना और शिक्षा व रोजगार के साथ यह रही कि जिन लोगों के पास काम का अपार अनुभव था, हुनर था लेकिन उनके पास औपचारिक शिक्षा न थी उनके गुण को सम्मान और स्वीकार्यता नहींमिली। इसने तो समाज में एक तरह का विभाजन-सा खड़ा कर दिया। हमें इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि बहुत से अध्ययनों से सिद्ध हुआ कि विशुद्ध अुनभव रखने वाले लोगों की रोजगार के बाजार में बहुत मांग है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर कौशल आधारित विश्वविद्यालयों ने व्यवहारिक काम के अनुभव को अपने पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया है। हम इस तथ्य के साथ सुर मिलाकर चल रहे हैं कि व्यवहारिक कार्य के अनुभव से ही व्यावसायिक शिक्षा का महत्व बढ़ा है।
व्यावसायिक शिक्षा को मूल्यवान बनाने के लिए हमें एक पूरे समीकरण के सभी बिंदुओं को सही से आपस में जोड़ना है। वो है व्यावसायिक शिक्षा के पाठ्यक्रमों को निरंतर उद्योग के अनुरूप बनाने के साथ इसे नई शिक्षा नीति 2020 के फ्रेमवर्क में रखते हुए विद्यार्थियों की योग्यता को थ्योरी और प्रेक्टिकल दोनों में बड़े समअनुपात में स्थापित
करना है। अंत में हम सभी तैयार हो जाएं पुराने ढांचे का परित्याग करने के लिए, नई तकनीक की जरूरतों को पूरा करने के लिए और एक ऐसी व्यवस्था को स्थापित करने के लिए विद्यार्थियों की निपुणताओं का अपार मूल्य और उनके रोजगार की संभावनाएं हों। नीति नियंताओं से भी अपेक्षा है कि पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण इस रूप में तैयार कराए जाएं कि जो बदलती जरूरतों की तकनीक और निपुणताओं के पूरक हों। इस सम्यक भाव से व्यावसायिक शिक्षा के पथ पर हमें विजयश्री अवश्य मिलेगी।

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