मध्य प्रदेश //रीवा हाइब्रिड वर्चुअल सुनवाई नहीं प्रारंभ की तो देश की न्याय व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी

मध्य प्रदेश //रीवा हाइब्रिड वर्चुअल सुनवाई नहीं प्रारंभ की तो देश की न्याय व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी-

ब्यूरो चीफ //राहुल कुशवाहा रीवा मध्य प्रदेश..8889284934

शैलेश गांधी// हाइब्रिड वर्चुअल कोर्ट विषय पर रविवार 09 मई रविवार को आयोजित हुआ राष्ट्रीय वेबिनार // वेबिनार में जुड़े देश के जानेमाने रिटायर्ड जज, उप महाधिवक्ता, अधिवक्ता और सूचना आयुक्त//*

दिनांक 09 मई 2021 रीवा मप्र

पिछले लगभग डेढ़ वर्ष से कोविड-19 महामारी के कारण न केवल सामान्य विभागों में बल्कि न्यायिक प्रणाली में भी काफी विपरीत तरह से असर पड़ा है। देखा जाए तो न्यायिक प्रक्रिया कोविड-19 से काफी हद तक प्रभावित हुई है। पहले भी स्वतंत्रता प्राप्ति से आज दिनांक तक यदि पूरे देश के न्यायालयों में पेंडिंग केस के विषय में जानकारी एकत्र की जाए तो लगभग सवा 4 करोड़ से अधिक मामले पेंडिंग है जिनका निराकरण नहीं हो पाया है।
प्रतिवर्ष लगभग 75 लाख प्रकरण के हिसाब से पूरे देश में पेंडेंसी भी बढ़ रही है। ऐसे में सवाल यह है कि यदि कोविड-19 महामारी का दौर जारी रहा तो प्रकरणों की सुनवाई किस प्रकार की जाएगी? इसका क्या विकल्प है? इस विकल्प की तलाश में समय-समय पर बुद्धिजीवियों के सुझाव आते रहते हैं।

इसी तारतम्य में दिनांक 9 मई 2021 को  हाइब्रिड वर्चुअल कोर्ट फ़ॉर ईजी एंड फास्ट जस्टिस डिलीवरी सिस्टम विषय पर राष्ट्रीय में भी नार का आयोजन किया गया जिसमें देश के जाने-माने सूचना आयुक्त पूर्व जज पूर्व पूर्व उप महाधिवक्ता आरटीआई वर्कर सोशल एक्टिविस्ट सामाजिक कार्यकर्ता देश के कोने-कोने से जुड़े और मामले में अपने विचार प्रस्तुत किए। 

वेबीनार के दौरान यह बात भी सामने आई कि देश की कुछ कोर्ट ने अनौपचारिक और आंशिक तौर पर यह प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है लेकिन पूरे देश में पेंडेंसी के हिसाब से देखा जाए तो यह बहुत कम है या लगभग न के बराबर है। इसका समाधान क्या होगा और कैसे हाइब्रिड वर्चुअल हियरिंग के माध्यम से न्यायिक एवं अर्ध न्यायिक क्षेत्र में क्रांति लाई जा सकती है और मामलों का निपटारा काफी आसानी पूर्वक किया जा सकता है।
इसी विषय पर दिनांक 9 मई 2021 को दिन रविवार 46 वें राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया जा रहा है जिसमें मध्य प्रदेश के पूर्व उपमहाधिवक्ता श्री दीपक अवस्थी, पूर्व जज एवं मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के अधिवक्ता अनुवाद श्रीवास्तव, रीवा जिले के सहायक लोक अभियोजक लोकायुक्त सचिन द्विवेदी, वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह, पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप, माहिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु एवं कर्नाटक से आरटीआई एक्टिविस्ट वीरेश बेल्लूर, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा, शिवेंद्र मिश्रा, सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी, छत्तीसगढ़ से आरटीआई वर्कर देवेंद्र अग्रवाल, राजस्थान से सुरेंद्र जैन सहित कई विशेषज्ञ भाग लिए।
कार्यक्रम का संयोजन, प्रबंधन एवं कोऑर्डिनेशन का कार्य सामाजिक कार्यकर्ता शिवानन्द द्विवेदी, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा, शिवेंद्र मिश्रा, अंबुज पांडे एवं छत्तीसगढ़ से देवेंद्र अग्रवाल ने किया।

🔸 न्यायालय में बढ़ते प्रकरण पेंडिंग प्रकरण चिंता का विषय इस पर बनी हम सहमत

इस बीच 46 वें राष्ट्रीय वेबीनार की शुरुआत में जबलपुर के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट नित्यानंद मिश्रा ने प्रकाश डालते हुए बताया कि किस प्रकार कोर्ट में बढ़ते हुए मामले चिंता का विषय है और जिस प्रकार पिछले कुछ वर्षों से लॉकडाउन की स्थिति में कोर्ट के प्रकरण प्रभावित हुए हैं उससे लोगों को आसानी पूर्वक न्याय मिलने में कठिनाई उत्पन्न हुई है। छोटे शहरों में रहने वाले वकीलों की रोजी रोटी का भी जिक्र करते हुए नित्यानंद मिश्रा ने कहा कि यदि हाइब्रिड वर्चुअल सुनवाई के माध्यम से कोर्ट में सुनवाई की जाएगी तो इसे बड़े शहरों के साथ-साथ छोटे शहरों में कार्य करने वाले वकीलों को भी काफी राहत मिलेगी और वह भी इसका लाभ ले सकेगें। आम जनता को आसानी से और जल्दी न्याय मिले इस विषय पर जोर दिया गया। वहीं सवा 4 करोड़ से अधिक देशभर में पेंडिंग पड़े मामलों पर चिंता जाहिर करते हुए अधिवक्ता ने बताया कि इस विषय पर सबको मिलकर एक आम राय बनानी चाहिए और जल्द से जल्द वर्चुअल सुनवाई पर कार्य किया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय और साथ में उच्चतम न्यायालय का हवाला देते हुए कहा ई-कमेटी की अनुसंशा भी यही थी जिसमें ई फाइलिंग आदि के द्वारा व्यवस्था सुनिश्चित की जाए लेकिन आज भी इस पर प्रभावी ढंग से कार्य नहीं किया गया है जिसकी वजह से समस्या हुई है।

🔹 हाइब्रिड वर्चुअल सुनवाई से सभी मामलों का समाधान संभव नहीं – पूर्व जज अनुवाद श्रीवास्तव

जहां एक तरफ देश में न्यायालयीन मामलों में बढ़ती हुई पेंडेंसी को लेकर चिंता जाहिर करते हुए डॉक्टर अनुवाद श्रीवास्तव वर्तमान अधिवक्ता एवं भूतपूर्व चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट के द्वारा बताया गया की न्यायालयीन पेंडेंसी से लोगों को आसानी पूर्वक और जल्दी न्याय मिलने में काफी समस्या हुई है परंतु सुनवाई के 2 तरीके संभव नहीं हो पाएंगे जिसमें वर्चुअल के साथ-साथ हाइब्रिड भी सुनवाई हो सके। उन्होंने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि कई ऐसे मामले होते हैं जहां फिजिकल कोर्ट को रिप्लेस नहीं किया जा सकता।
उन्होंने बताया कि देश का सिस्टम ही इस प्रकार से बनाया गया है जिसमें फिजिकल कोर्ट की आवश्यकता होती है। इसलिए यदि न्यायालयीन सुनवाई की प्रक्रिया में परिवर्तन करना है तो सबसे पहले सरकार को संविधान में और साथ में संसद में बिल पारित कर वह व्यवस्था सुनिश्चित करनी पड़ेगी तभी पूरे देश की समस्त न्यायालय इस बात पर गंभीरता से कार्य कर पाएगी। हालांकि समय की मांग को देखते हुए और कोविड-19 के दौर में जिस प्रकार वकील और जजों और न्यायालय कर्मचारियों का जीवन संकट में बना हुआ है उसको देखते हुए वर्चुअल सुनवाई से उन्होंने इंकार नहीं किया लेकिन यह बात जरूर जोड़ी कि सबसे पहले इसके खर्च और समस्त व्यवस्थाओं को लेकर काम करने की आवश्यकता है।

🔸 नेटवर्किंग के साथ-साथ न्यायालयीन प्रक्रिया में काफी परिवर्तन करने के बाद ही वर्चुअल सुनवाई संभव- पूर्व उप महाधिवक्ता दीपक अवस्थी

इस बीच कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर पधारे पूर्व उप महाधिवक्ता एवं वर्तमान वकील दीपक अवस्थी ने बताया कि नेटवर्किंग एक बड़ी प्रॉब्लम है जिसका समाधान किया जाना चाहिए और इसके लिए एक बेहतर ढंग से प्रयास करने की आवश्यकता है जिससे न्यायालय सॉफ्टवेयर डेवलप किया जाए और इसके साथ साथ तकनीकी दृष्टि से ट्रेनिंग भी दी जाए जिससे सभी वकील जज और कर्मचारी इस बात के लिए मानसिक तौर में और साथ में व्यवस्था के तौर पर भी तैयार हो जाएं। श्री अवस्थी ने बताया कि जिस प्रकार रीवा जिले से सहायक लोक अभियोजक लोकायुक्त सचिन द्विवेदी ने मामले पर प्रकाश डालते हुए सुनवाई से जुड़ी हुई पेचीदगियां रखी और बताया कि किस प्रकार गवाहों की उपस्थिति, उनकी भाव भंगिमा, उन पर कोई दबाव ना हो और साथ में इसके लिए बजट और व्यवस्था क्रॉस एग्जामिनेशन आदि की बात की है वह बिल्कुल सही है और जब तक इस विषय पर पूरी तरह से कार्य नहीं किया जाता और व्यवस्था सुनिश्चित नहीं की जाती तब तक अभी इसको इतना सार्थक नहीं समझा जा सकता। हालांकि पूर्व उप महाधिवक्ता दीपक अवस्थी ने भी वर्तमान कोविड-19 दौर को देखते हुए और समस्त कोर्ट में बढ़ती हुई पेंडेंसी को ध्यान में रखते हुए लोगों को कैसे आसानी पूर्वक और जल्दी न्याय सुनिश्चित हो साथ में वकील जज कर्मचारियों के साथ क्लाइंट की जिंदगी सुरक्षित रहे इसके लिए वर्चुअल कोर्ट की व्यवस्था से इनकार नहीं किया।

🔹 क्रिमिनल मामलों में क्रॉस एग्जामिनेशन गवाहों की स्थिति जैसे विषय पर काम करने की आवश्यकता – एडीपीओ सचिन द्विवेदी

रीवा जिला न्यायालय में सहायक लोक अभियोजक लोकायुक्त में पदस्थ एडीपीओ सचिन द्विवेदी ने बताया कि कैसे गंभीर और बड़े किस्म के मामलों में गवाहों की स्थिति को लेकर काफी पेचीदगियां जुड़ी हुई है जिसमें बड़े क्रिमिनल मामलों में गवाह का क्रॉस एग्जामिनेशन, क्राइम करने वाले का भाव भंगिमा गवाह की भाव भंगिमा, साथ में गवाह पर कोई दबाव न हो इसके विषय में व्यवस्था सुनिश्चित करना आदि ऐसे मामले हैं जिस पर काम करने की जरूरत है। उन्होंने बताया की इसके लिए सभी न्यायालयों में समुचित बजट की भी जरूरत है जिसके द्वारा ऑनलाइन तरीके से कागजी कार्यवाही करते हुए ऑनलाइन सुनवाई की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाए। सचिन द्विवेदी ने बताया की हाइब्रिड वर्चुअल सुनवाई की व्यवस्था सुनिश्चित करने के पहले काफी कार्य करने की आवश्यकता है।

🔸 हाइब्रिड वर्चुअल सुनवाई नहीं प्रारंभ की तो देश की न्याय व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी- शैलेश गांधी

इस बीच कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर पधारे पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त और वर्चुअल सुनवाई के पक्ष में एडवोकेसी करने वाले पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने खुलकर कहा कि देश की न्याय व्यवस्था दिन प्रतिदिन खराब हो रही है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2008-09 में उन्होंने अपने सूचना आयोग में कार्यकाल के दौरान पेपरलेस ऑफिस का कांसेप्ट लांच किया और कैसे वर्चुअल सुनवाई प्रारंभ कर दी थी। उनके द्वारा कहा गया यह काफी हद तक हमारी सोच पर निर्भर है कि हम काम करना चाहते हैं अथवा नहीं। शैलेश गांधी ने सुप्रीम कोर्ट की ई-कमेटी की सिफारिशों का उदाहरण देते हुए कहा कि आज से कई वर्ष पहले समस्त हाईकोर्ट और निचले न्यायालय में यह व्यवस्था सुनिश्चित कर दी गई थी और स्ट्रांग रिकमेंडेशन किया गया था लेकिन व्यवस्था लागू नहीं की जा सकी। श्री गांधी ने बताया कि इस विषय पर 2000 करोड़ रुपए से अधिक का बजट भी आवंटित किया गया लेकिन उसका क्या हुआ यह समझ के परे। कोविड-19 महामारी के दौर में प्रभावित हो रही न्यायालयीन प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए श्री गांधी ने कहा कि देश में सवा 4 करोड़ से अधिक मामले पेंडिंग हैं और प्रतिवर्ष काफी तीव्र गति से बढ़ रहे हैं ऐसे में आम व्यक्ति को न्याय कैसे मिलेगा यह चिंता का विषय है। और वह समय ज्यादा दूर नहीं जब देश की न्यायालयीन प्रक्रिया पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएगी। इसलिए इस विषय पर यदि जल्द से जल्द कार्य नहीं किया गया और हाइब्रिड वर्चुअल सुनवाई पर कार्य नहीं किया गया तो देश के लिए बुरा होगा। उन्होंने बताया कि आम जनता को इसे आंदोलन की तरह उठाना चाहिए और सरकार पर दबाव बनाया जाना चाहिए जिससे जल्द से जल्द यह व्यवस्था सुनिश्चित की जाए ताकि लोगों को वर्तमान इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी और नेटवर्किंग के दौर पर आसानी पूर्वक घर बैठे न्याय सर्व सुलभ हो।

🔹 हमने खुद के प्रयास से सूचना आयोग में वर्चुअल सुनवाई की व्यवस्था सुनिश्चित की है अब कोर्ट की बारी – सूचना आयुक्त राहुल सिंह

इस बीच वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने देश में बढ़ते हुए पेंडिंग प्रकरणों पर सरकार और कोर्ट को आड़े हाथों लेते हुए बताया की आम जनता के हित में कार्य करने की जरूरत है और बढ़ते हुए सवा 4 करोड़ से अधिक प्रकरणों का जल्द से जल्द निपटारा हो कोविड-19 के दौर में सुनिश्चित करने की जरूरत है। पारदर्शिता सबसे महत्वपूर्ण अंग है और लोकतंत्र में व्यवस्था को पारदर्शी सुनिश्चित करने के लिए वर्चुअल सुनवाई और ऑनलाइन ढंग से कार्य करने से लालफीताशाही बाबूगिरी पर काफी हद तक नियंत्रण होगा और जो मशक्कत न्यायालय में केस की सुनवाई के दौरान अंडर टेबल करनी पड़ती है उससे निजात मिलेगी और आरटीआई कानून की भी यही मंशा है। 
उन्होंने अपने कार्यकाल का उदाहरण देते हुए बताया कि किस प्रकार मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग में सबसे पहले फेसबुक लाइव के माध्यम से उन्होंने वर्चुअल सुनवाई प्रारंभ की जिसे देश में बैठा हुआ कोई भी व्यक्ति कहीं से भी देख सकता है। जहां तक सवाल फाइल के संधारण के विषय में है तो उन्होंने बताया कि इसके विषय में थोड़ा सा काम करने की जरूरत है और यह सब आसानी से किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि यदि सूचना आयोग में वर्चुअल सुनवाई प्रारंभ कर सकते हैं और वह भी बिना किसी सरकारी व्यवस्था के सिर्फ अपने बल पर कर सकते हैं तो सरकार और न्यायालयों के पास तो काफी बजट होता है जिसके द्वारा यह कार्य आसानी से किया जा सकता है। आवश्यकता है मात्र एक सोच की यदि हमने चाहा तो यह असंभव कार्य नहीं है और देश मैं लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था कायम रहे हाइब्रिड वर्चुअल सुनवाई एक बेहतरीन माध्यम हो सकता है और इस विषय में देश के सभी नागरिकों को मिलकर कार्य करने की जरूरत है जिससे आम जनता को घर बैठे आसानी से और जल्दी न्याय सर्व सुलभ हो। पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी की बात का समर्थन करते हुए वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा की हाइब्रिड वर्चुअल सुनवाई संभव है और यही समय की मांग है। 

🔹 सभी पैनल मेंबर ने हाइब्रिड वर्चुअल सुनवाई पर दिया जोर कहा यही है समय की जरूरत

पैनल मेंबर में विशिष्ट वक्ता के तौर पर सम्मिलित पूर्व राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप, रीवा जिले से एडीपीओ सचिन द्विवेदी, माहिती अधिकार मंच मुंबई के संयोजक भास्कर प्रभु एवं कर्नाटक से वरिष्ठ आरटीआई एक्टिविस्ट वीरेश बेलूर सहित अन्य एक्टिविस्ट ने बताया कि वर्तमान समय और महामारी के दौर को देखते हुए कोविड-19 जैसी महामारी के जल्द अंत होने का कोई नजारा नहीं दिख रहा है ऐसे में 2 साल का समय लगभग व्यतीत होने वाला है और देश की समस्त न्यायालय की सुनवाई बुरी तरह से प्रभावित हुई है। जिसकी वजह से कोर्ट में पेंडेंसी बढ़ती जा रही है और लोगों को न्याय सर्व सुलभ नहीं हो पा रहा है ऐसे में वर्चुअल सुनवाई समय की मांग है और इसे स्वीकार किया जाना चाहिए। यदि हम अपने देश के नागरिकों को आसानी पूर्वक एवं जल्द न्याय सुनिश्चित नहीं करवा पा रहे हैं तो यह चिंता का विषय है और इस पर कार्य किए जाने की जरूरत है ताकि न्यायालय प्रणाली पर आम जन का विश्वास बना रहे।

संलग्न– कृपया कार्यक्रम में उपस्थित होने वाले विशेषज्ञों की फोटो देखने का कष्ट करें।


*शिवानंद द्विवेदी सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता जिला रीवा मध्य प्रदेश

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