जेलों में बंद कैदियों की अज्ञानता होना भी एक मुख्य कारण

नदीम अहमद जॉर्नलिस्ट

दिल्ली: “रिहाई फाउंडेशन कानूनी सहायता समिति” के अध्यक्ष एम. अदील सिद्दीकी एडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद कैदियों पर अपने विचार रखते हुवे कहा,”की “नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक भारत की जेलों में उनकी क्षमता से काफ़ी ज़्यादा क़ैदियों को रखा गया है। इनमें अधिकतर क़ैदी विचाराधीन हैं,यानी उनके मुकदमे अभी भी अदालतों में चल रहे हैं। अगर अदालते उन विचाराधीन कैदियों के केस पर जल्दी विचार कर उन्हें निर्दोष करार दे देती है तो वो जेल से छूट जाएंगे।.“ताज़ा सरकारी आंकड़ों के अनुसार जेलों में बंद अधिकतर कैदी या तो अनपढ़ हैं या फिर दसवीं कक्षा तक ही पढ़े हुए हैं.” कम पढ़े लिखे होने की वजह से उन्हें यह भी पता नहीं लग पाता कि उनके ख़िलाफ़ कौन-कौन सी धाराएं दर्ज की गईं हैं। यही कारण है की उन्हें अपने लिए वकील रखने या फिर अपने लिए ज़मानत का इंतजाम करने में मुश्किलें आती हैं” एडवोकेट सिद्दीकी,आगे बताते है की “ सीआरपीसी की धारा 436 ए के तहत ऐसा प्रावधान है कि संभावित सज़ा का आधा समय अगर किसी कैदी ने विचाराधीन रहकर गुज़ार दिया हो तो उसे निजी मुचलके पर ज़मानत दी जा सकती है.” मगर इस प्रावधान के बावजूद लम्बी खिंचती हुई क़ानूनी प्रक्रिया की वजह से विचाराधीन कैदी सालों तक जेलों में बंद रहते हैं और उन्हें राहत नहीं मिल पाती.। जेलों की बढ़ती आबादी का ये एक मुख्य कारण है।जो कैदी अच्छे वकील रखने की क्षमता रखते है और अपने केस की पैरवी कर लेते है वो जल्द रिहा हो जाते है, मगर आर्थिक रूप से कमजोर कैदी जिन को अपने मौलिक अधिकारों का पता ही नहीं होता और कम-पढ़े लिखे होने के कारण अपने केस की अच्छी तरह से पैरवी नहीं कर पाते है और वो छोटे-छोटे अपराधों के लिए भी लंबे समय तक जेल में बंद रहते है। रिहाई फाउंडेशन कानूनी सहायता समिति ऐसे नौजवान, बुज़ुर्ग और काफी समय से जेलों में बंद कैदियों की मदद के लिए काम कर रही है। समिति उन कैदियो की रिहाई का रास्ता आसान करती है, जो नौजवान कैदी एक अपराध के कारण अपने जीवन का अनमोल समय जेल में सजा के रूप में काट रहे है और ऐसे बुज़ुर्ग कैदी जो उम्र के ऐसे पड़ाव से गुज़र रहे है जिन को अपना जीवन गुज़ारने के लिए भी किसी और व्यक्ति के सहारे की आवश्कता पड़ती है। एडवोकेट सिद्दीकी ने बताया कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार भारत की जेलों में मासूम बच्चे अपनी माताओं के साथ हिरासत में बंद हैं। ये उन लोगों की संख्या में और वृद्धि करते है जो सलाखों के पीछे बन्द हैं। इन बे-गुनहा मासूम बच्चो को फिर से समाज की मुख्य धारा में सम्मान के साथ जोड़ा जा सके, “रिहाई फॉउंडेशन “इसी उद्देश्ये को लेकर आगे आई है।“ इस विषय पे समाजसेवी एवं छात्र नेता हम्माद सिद्दीकी ने भी कहा कि जो भी बच्चे या युवा नाजायज़ केस में जेलों में बंद है जो अपने रिहाई के इंतेज़ाम नही कर सकते हम और हमारी पूरी टीम ऐसे बच्चो और युवाओ के साथ हर मोड़ पे कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए तैयार है|

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