अम्बेडकर नगर:स्वयंवर में राम की हुई सीता, वर माला पड़ते ही लगे जयकारे

स्वयंवर में राम की हुई सीता, वर माला पड़ते ही लगे जयकारे

अम्बेडकर नगर | विकास खंड जहाँगीरगंज के नसीरपुर छितौना में भुजहिया माता मंदिर प्रांगण में आयोजित श्री शतचण्डी महायज्ञ एवं विराट संत सम्मेलन में शनिवार को धनुष यज्ञ एवं राम विवाह की लीला का मंचन किया गया। जिसमें रावण, बाणासुर संवाद व राम के द्वारा धनुष भंजन हुआ। राम सीता के विवाह का विशेष रूप से दिखाया गया। रामलीला के तहत धनुष यज्ञ की लीला का आकर्षक मंचन किया गया। जिसमें सीता स्वयंवर की प्रभावी प्रस्तुति रही।

प्रवचन सत्र में वाराणसी से आये कथा मर्मज्ञ श्री देवेश जी महाराज ने श्रीराम कथा की रसधार में महाराजा जनक के पास भगवान शिव का दिव्य धनुष था। वह मंच में बने महल की आकृति में एक जगह स्थापित किया गया था। उसे कोई नहीं हिला सकता था। एक दिन अपने घर में जमीन पर गोबर का लेप लगाने के दौरान जनक नंदिनी सीता ने धनुष को उस स्थान से हटाकर दूसरे स्थान पर रख दिया और वह अपना कार्य करने लगीं। सीता के इस कृत्य को देखकर महाराजा जनक को बहुत ही आश्चर्य हुआ। तब उन्होंने सोचा कि इस पुत्री में कोई अलौकिक शक्ति है। राजा जनक ने निश्चय किया कि सीता का विवाह ऐसे पराक्रमी से किया जाएगा, जो भगवान शिव के पिनाक नामक धनुष को भंग करेगा। तभी जनकपुर में सीता के स्वयंवर का आयोजन किया। इसकी घोषणा सुनकर दूरदराज से पराक्रमी राजा धनुष यज्ञ में शामिल हुए। विश्वामित्र के साथ राम लक्ष्मण भी स्वयंवर में पहुंचे। रंगमंच स्थल पर अनेक देश के राजाओं ने आकर स्वयंवर में धनुष उठाने का प्रयास किया, लेकिन कोई धनुष को हिला तक नहीं सका। राजा रावण भी धनुष यज्ञ में शामिल हुए। वह सीता को स्वयंवर में प्राप्त नहीं कर सका। तब उसने कहा कि हे सीते एक दिन तुम्हे लंका जरूर ले जाउंगा। जब कोइ धनुष नहीं उठा सके, तब राजा जनक चिंतित हुए और बोले’अब जनि कोऊ माखै भटमानी, बीर विहीन मै जानी, होने लगे। तभी लक्ष्मण क्रोधित होते हुए बोले। कहि जनक जसि अनुचित बानी, विद्यमान रघुकुल मुनि जानी। तब गुरु राम की तरफ देखकर कहते हैं उठहुं राम भंजहु भवचापा, मेटहुं तात जनक परितापा। गुरु की आज्ञा पाकर भगवान राम ने धनुष को भंग कर दिया। धनुष टूटने के बाद सीता प्रभु श्रीराम के गले में वरमाला डालती हैं।इस लीला ने ग्रामीण जनों को भाव विभोर कर दिया। इस मौके पर वक्तागण श्री हरिप्रसाद जी महाराज वाराणसी,यज्ञाचार्य पं. कामता प्रसाद शुक्ल,पं.ओंकारनाथ शुक्ल,पं.रामकृष्ण शुक्ल,राजेश कुमार पाण्डेय,प्रमोद पाण्डेय,राम प्रकाश शुक्ल,ओम प्रकाश शुक्ल,रामप्रीत गौंड,राम अशीष,यज्ञेश्वर शुक्ल,वेद प्रकाश पाण्डेय,राम अवध यादव,कैलाश मिश्र,नीरज तिवारी,ध्रुब तिवारी,वासुदेव यादव,गौतम तिवारी,आकाश तिवारी,अष्टभुजा शुक्ला,चंचल दूबे सहित आदि मौजूद थे ।

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