दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से आयोजित श्रीमदभगवत कथा के शतम दिवस में मुख्य जजमान श्री धर्मपाल बंसल एवं श्री दविन्दर बजाज रहे और उन्होंने प्राप्त किया ईश्वर का आशीर्वाद
कथा व्यास साध्वी भाग्यश्री भारती जी ने विस्तार से बताया कि भगवन श्री कृष्णा जी ने अपने जीवन काल में हमें अनेकों शिक्षाएँ दी
फिरोजपुर 30 सितंबर {कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता}=
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से आयोजित श्री मद भागवत कथा के षष्टम दिवस में ज्योति प्रज्वलित की रस्म फिरोजपुर फाउंडेशन से शैलांदर कुमार की टीम , कैलाश शर्मा,अंशु देवगन, जी द्वारा की गयी कथा व्यास साध्वी भाग्यश्री भारती जी ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण जी ने अपने जीवन काल में हमें अनेकों शिक्षाएं दीं।आज हम भगवान श्री कृष्ण के भक्त तो कहलाते हैं, लेकिन क्या उनके सिद्धांतों को, शिक्षाओं को अपने जीवन में धारण किया? यदि उनके सिद्धांतों को हमने धारण किया होता तो आज हमारे देश में गौ मां की स्थिति बहुत ही अच्छी होती। वह भारत देश जहां ‘विप्र धेनु सुर संत हित’ भगवान समय-समय पर अवतार धारण करते हैं, उस भारत में आज गाय की इतनी अवहेलना क्यों? इसके पीछे एक ही कारण है कि हम गौ मां की महानता को अभी तक जान ही नहीं पाए। इसलिए आवश्यकता है अपनी गौ संस्कृति को जानने की क्योंकि हमारी गौ संस्कृति दुनिया की श्रेष्ठ संस्कृति है, सबसे महान संस्कृति है।
संस्थान के बारे में बताते हुए साध्वी जी ने कहा कि दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से गौ मां के संवर्धन व संरक्षण के लिए सराहनीय कदम उठाएं जा रहे हैं। जिसके तहत कामधेनु नाम का एक सामाजिक प्रकल्प चलाया जा रहा है। इस प्रकल्प के अंतर्गत बहुत सी गौशालाओं में भारत की सर्वश्रेष्ठ देसी नस्ल की गौओं का संरक्षण संवर्धन व नस्ल सुधार कार्यक्रम किया जा रहा है।
आगे कंस वध प्रसंग सुनाते हुए साध्वी जी ने बताया कि द्वापर युग में तो एक कंस था, जिसका वध भगवान श्री कृष्ण जी ने किया। किंतु आज मन के पीछे लगे अधिकतर मानव कंस की भूमिका बड़ी सहजता से निभा रहे हैं। इस घोर कलिकाल में आज प्रत्येक व्यक्ति का मन काम, क्रोध, लोभ, मोह रूपी विकारों की आग में झुलस रहा है। इसलिए आवश्यकता है भगवान श्री कृष्ण जैसे गुरु की, जो हमारे बुरे मन रूपी कंस को मार कर हमारे जीवन में धर्म की स्थापना कर सकें। धर्म का अर्थ बताते हुए साध्वी जी ने कहा कि धर्म संस्कृत की धृ धातु से निकला है, जिसका अर्थ है धारण करना। उस ईश्वर को जब प्रत्येक मानव ब्रह्मज्ञान के द्वारा अपने अंतःकरण में धारण करेगा तो हमारे समाज में स्वत: शांति व आनंद की लहर दौड़ उठेगी। इसलिए ब्रह्मज्ञान से जुडें।कथा में मुख्य यजमान धर्मपाल बंसल, दविंदर बजाज, जी रहे जिन्होंने प्रभु की पूजा की तथा ईश्वर की कृपा को प्राप्त किया