दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वार तृतीया दिवस की कथा में कथा व्यास साध्वी कालिंदी भारती जी ने बताया कि दिव्य दृष्टि के बिना हम भगवान को नहीं पहचान सकते दिव्य दृष्टि जो भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध के मैदान में अर्जुन को प्रधान की थी

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वार तृतीया दिवस की कथा में कथा व्यास साध्वी कालिंदी भारती जी ने बताया कि दिव्य दृष्टि के बिना हम भगवान को नहीं पहचान सकते दिव्य दृष्टि जो भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध के मैदान में अर्जुन को प्रधान की थी

फिरोजपुर 15 अक्टूबर {कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता}=

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस जगमीत सिंह ने परिवार सहित पूजन करवाया। कथा व्यास साध्वी कालिंदी भारती जी ने कथा के माध्यम से बताया कि शिशुपाल भगवान श्रीकृष्ण को पहचान नहीं पाया उनके सामने उपस्थित होने पर भी, उनकी लीलाओं की चर्चा सुनने के बाद भी,अनेकों भक्तों का उनके प्रति आदर भाव देखने सुनने के बाद भी। केवल शिशुपाल ही नहीं बल्कि उस समय के अनेकों राजा भी भगवान श्रीकृष्ण को पहचान नहीं पाये तो क्या यदि आज भगवान हमारे सामने आ जाते तो हम भगवान को पहचान लेंगे? हमारे पास भगवान को पहचानने का क्या आधार होगा क्या उनकी बाहरी वेश भूषा? यदि हम ऐसा सोचते हैं तो इसका मतलब अभी तक हमने अपने धार्मिक ग्रंथों का सही ढंग से अध्ययन ही नहीं किया। क्योंकि बाहरी वेश भूषा तो कोई भी धारण कर सकता है। इसलिए भगवान को पहचानने के लिए आवश्यकता है उस दिव्य दृष्टि की जो दिव्य दृष्टि भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध के मैदान में अर्जुन को प्रदान की थी।
रमेश खदरिया अध्यक्ष श्री गोशाला, कस्तूरी लाल मित्तल,बलराज मित्तल, रतन गणेश गड़िया,चेष्ठा सरदाना, राज कुमार जोग,जगीर चन्द और मनीष लड्डा ने दीप प्रज्ज्वलित कर प्रभु का आर्शीवाद प्राप्त किया।
भक्त प्रह्लाद प्रसंग सुनाते हुए साध्वी जी ने बताया कि भक्त प्रह्लाद के जीवन में अनेकों ही संकट आए लेकिन वह अपने भकि्त पथ से विचलित नहीं हुए, क्योंकि उनका अपने श्री हरि पर अपने नारायण पर पूर्ण विश्वास था। यदि हम भी चाहते हैं कि हमारा भी विश्वास भक्त प्रह्लाद की भांति हो तो हमें भी आवश्यकता है उस ईश्वर को जानने की। आगे कथा सुनाते हुए साध्वी जी ने बताया कि भक्त प्रह्लाद के भीतर जो अद्भुत भक्ती बल था उसके पीछे की कही न कही उनकी मां के द्वारा दिए गए संस्कार थे , जिसने उन्हें एक महान भक्त बना दिया। इसलिए यह एक मां पर ही निर्भर करता है कि वह अपनी संतान को किस सांचे में ढालना चाहती है, क्योंकि संस्कार देने का शुभ विचार देने का जो समय है वह बाल्यावस्था ही होती है इसलिए आप अपनी संतानों को श्रेष्ठ संस्कार दे, ताकि वह आगे चलकर एक श्रेष्ठ नागरिक बन सके। कथा के दौरान फूलों से होली महोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया गया। कथा का समापन पावन आरती से हुआ जिसमें बाल कृष्ण बंसल,रामेश्वर भादू और सिंधी समाज के पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया। स्वामी धीरानन्द जी ने बताया कि कथा में प्रतिदिन श्रद्धालुओं की संख्या बड़ रही है। सारी संगत के लिए प्रतिदिन लंगर व्यवस्था की जा रही है।

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