बिहार:कटिहार के फलका प्रखंड में अंतरराष्ट्रीय बेटी दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया गया

कटिहार के फलका प्रखंड में अंतरराष्ट्रीय बेटी दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया गया

कटिहार अमर कुमार गुप्ता की रिपोर्ट

बिहार के कटिहार /जिला -के फलका प्रखंड में अंतरराष्ट्रीय बेटी दिवस एक समय था, जब बेटी पैदा होने पर घर-परिवार में मातम छा जाता था, चूल्हे नहीं जलते थे, लेकिन आज परिदृश्य बदल चुका है. बेटियां समाज के सोच-विचार में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में सफल रही हैं. इस संदर्भ में किसी ने खूब कहा है, ‘बेटे भाग्य से पैदा होते हैं, तो बेटियां सौभाग्य से मिलती हैं’।

बेटी दिवस 2021
अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस प्रत्येक वर्ष सितंबर माह में चौथे रविवार के दिन मनाया जाता है. जानें इस दिवस विशेष के मायने और इसका इतिहास एक समय था, जब बेटी पैदा होने पर घर-परिवार में मातम छा जाता था, चूल्हे नहीं जलते थे, लेकिन आज परिदृश्य बदल चुका है. बेटियां समाज के सोच-विचार में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में सफल रही हैं. इस संदर्भ में किसी ने खूब कहा है, ‘बेटे भाग्य से पैदा होते हैं, तो बेटियां सौभाग्य से मिलती हैं’. हां, वह बेटी ही है, जिसे अगर उड़ने को मनचाहा आकाश मिल जाये तो वह अपनी उड़ान से ना केवल अपना बल्कि पूरे परिवार की किस्मत चमका सकती हैं. कुछ लोगों को यह बात शायद अतिशयोक्ति लग सकती है कि बेटियां ही हैं, जिसके दिल में सबके लिए मान-सम्मान और प्यार होता है. फिर वह चाहे मायका हो या सास का आशियाना. वे बड़ी कुशलता और तत्परता से दोनों घरों को सहेज कर रखती है. क्या यह सच नहीं है कि बेटों से ज्यादा बेटियां अपने माता-पिता और परिवार की परवाह करती है.

बेटे से कम नहीं हैं बेटियां!

कुछ वर्ष पहले तक भारत में बेटियों की क्या स्थिति थी, किसी से छिपी नहीं है. भारत में लिंगानुपात में भी लड़कों के मुकाबले लड़कियों की संख्या काफी कम थी. कन्या भ्रूण-हत्या की मानसिकता ने तो इनके वजूद को मिटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. लेकिन आज हालात बदल चुके हैं. आज हर माता-पिता सगर्व कहते हैं कि बेटियां बेटों से बेहतर होती हैं. आज बेटियां चांद तक पहुंच गई हैं, सीमाओं पर देश की रक्षा कर रही है अंतरराष्ट्रीय खेल गांव में मेडल लाने में भी वे पीछे नहीं है। कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां लड़कियों ने लड़कों से बाजी नहीं मारी हो स्कूल -कॉलेज के परीक्षा फलों से लेकर उच्च शिक्षा तक में बेटियां अब्वल रहती है क्या किया ज्यादा वक्त नहीं हुआ जब पुरुष प्रधान समाज में बेटियां या तो रसोई की शोभा मानी जाती थी या बच्चा पैदा करने की मशीन समय के साथ हालात बद से बदतर होती गई ।आजाद भारत में भी जन्म लेने से पूर्व गर्भ में उनकी हत्या कर दी जाती थी शिक्षा से तो मानव का कोई नाता ही नहीं था इन हालातों से बेटियों को बाहर निकालने के लिए प्रत्येक वर्ष सितंबर माह के चौथे रविवार का दिन बेटियों के नाम समर्पित करते हुए अंतरराष्ट्रीय बेटी दिवस मनाने की शुरुआत हुई बेटी दिवस के माध्यम से स्कूल- कॉलेज से लेकर सार्वजनिक स्थलों एवं कार्यालय आदि में बेटी दिवस के उपलक्ष रंगारंग गोष्ठया ,डिबेट्स कार्यक्रम आदि शुरू किए जाते हैं ।इन कार्यक्रमों में बेटियों की शिक्षा प्रवृत्त बेटों के अधिकार एवं अफसर दहेज प्रथा से सुरक्षा दिलाने भ्रूण हत्या पर अंकुश लगाने आदि। आज बेटियां चार चांद लगा कर घर से लेकर ससुराल और इस देश में राज करती है अगर आज बेटियां नहीं होती तो बहन किसे मानते मां किसे कहते बहू किसे मानते आज बेटियां ही संसार की एक चांद है जो कि सारे संसार को रोशनी देती है आज बेटियों को सारे संसार नमन करती है की जिस घर में बेटियां ही ना हो उस घर में उजाला कहां होगी बेटे तो एक घर बताते हैं बेटियां साथ घर बसाने की आशा रखते हैं माता पिता के सुख दुख में बेटे काम आए या ना आए लेकिन बेटियां सुनते ही दौड़ पड़ती है अंतरराष्ट्रीय दिवस पर बेटियों को नमन करता हूं प्यार और सम्मान बेटियों के नाम पर संसद लिया जाता है की बेटी हर घर में एक रोशनी है एक चांद है एक सूरज है जो उसके बिना पूरा समाज देश अंधकार ही अंधकार है।

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