आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति आधारित डायग्नोस्टिक टूल होना बहुत जरूरी : प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान

आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति आधारित डायग्नोस्टिक टूल होना बहुत जरूरी : प्रो. वैद्य करतार सिंह धीमान।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

प्रांत स्तरीय आयुर्वेदिक नैदानिक उपकरणों का विकास कार्यशाला का आयोजन।

कुरुक्षेत्र : श्रीकृष्णा आयुष विश्वविद्यालय के रोग निदान एवं विकृति विज्ञान विभाग द्वारा शनिवार को प्रांत स्तरीय आयुर्वेदिक नैदानिक उपकरणों का विकास विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला की शुरुआत भगवान धन्वंतरि के समक्ष पुष्प अर्पित कर की गई। रोग निदान एवं विकृति विज्ञान विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. दिप्ती पराशर ने कुलपति प्रो. करतार सिंह धीमान, कुलसचिव डॉ. नरेश भार्गव व सीसीआरएएस के अनुसंधान विशेषज्ञों का स्वागत व अभिनंदन किया। इस कार्यशाला में विद्यार्थियों को केंद्रीय आयुर्वेदीय अनुसंधान परिषद (सीसीआरएएस) आयुष मंत्रालय, भारत सरकार के अनुसंधान विशेषज्ञों डॉ. बबीता यादव, डॉ. अजीम अहमद और डॉ. रिचा सिंघल द्वारा आयुर्वेदिक नैदानिक उपकरण किस क्रियाविधि से विकसित किए जा सकते हैं और परिषद द्वारा निर्मित मानकीकृत आयुर्वेदिक डायग्नोस्टिक टूल की जानकारी दी। कुलपति प्रो. करतार सिंह धीमान ने कहा कि आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के अपने डायग्नोस्टिक उपकरण होने ही चाहिए। जो आयुर्वेदिक पद्धति पर ही विकसित किए गए हों। सीसीआरएएस लगातार इस दिशा में काम कर रहा है और सफलता भी मिली है। अब तक छः रोगों पर मानकीकृत डायग्नोस्टिक टूल बनाए गए हैं जिसमें त्वचा रोग, खांसी, अस्थमा, मधुमेह, उदर विकार और ज्वर। मगर डायग्नोस्टिक टूल बनाने के लिए एक मजबूत लीडरशिप व जुझारू टीम का होना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही विषय विशेषज्ञों की भी समयानुसार जरूरत पड़ती है। उन्होंने कहा कि एक डॉक्टर होने के नाते आपको किस तरह के उपकरण की जरूरत है यह खुद को तय करना होगा। सबसे पहले सामान्य बीमारी का चयन करें। जिसकी पूर्ण रूप से स्पष्टता हो, ताकि एक अच्छे डायग्नोस्टिक टूल का निर्माण किया जा सके। इसके साथ बनाया गया टूल पूर्ण रूप मानकीकृत और विश्वसनीय भी होना चाहिए। जिसके देश और काल अनुसार एक समान परिणाम निकलने चाहिए। इस अवसर पर प्राचार्य डॉ. देवेंद्र खुराना ने कहा कि विषय आधारित कार्यशाला के बहुत लाभ हैं जिससे विद्यार्थियों को बहुत कुछ सीखने को मिलता है। रोगों के निदान हेतु सभी चिकित्सकों द्वारा एक समान रूप से नैदानिक टूल का किस तरह उपयोग किया जाए। जिसका इस कार्यशाला में अनुसंधान विशेषज्ञों ने प्रदर्शन किया। कार्यक्रम के अन्त में प्रान्त के आयुर्वेदिक कॉलेज के रोग निदान एवं विकृति विज्ञान विभाग के प्राध्यापक, पीएचडी एवं पीजी स्कॉलर को प्रशस्ति पत्र वितरित किए गए। इस अवसर डॉ. रणधीर सिंह और डॉ. सुनिल गोदारा उपस्थित रहे।

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