जालौन:गावहिं छवि अवलोकि सहेली, सिंय जयमाल राम उर मेली

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‘गावहिं छवि अवलोकि सहेली, सिंय जयमाल राम उर मेली’

🌹 धनुर्भङ्ग लीला का मंचन हुआ रामलीला रंगमंच पर

🌹 रावण-वाणासुर तथा लक्ष्मण-परशुराम के बीच गर्मागर्म संवादों पर दर्शकों ने पीटीं तालियां

कोंच। कोंच की ऐतिहासिक रामलीला में धनुर्भङ्ग लीला का मनमोहक मंचन किया गया। मिथिला नरेश महाराज जनक सीता स्वयंवर का आयोजन कर घोषणा करते हैं कि जो भी शिव धनुष पिनाक पर प्रत्यंचा चढाएगा उसी के साथ जनकनंदिनी सीता का विवाह होगा। समूचे विश्व में राजा की यह घोषणा प्रसारित कर दी जाती है और सीता को वरण करने के लिये देश देशांतर के राजा, भूपाल तो आते ही हैं, देवता, नाग, गंधर्व, किन्नर आदि भी राजाओं के वेश में जनकपुर की रंगशाला में पधारते हैं तथा धनुष उठाने का प्रयास करते हैं लेकिन वे उसे हिला भी न सके। जब विश्वामित्र की आज्ञा पाकर राम उसे उठा कर खंड खंड कर देते हैं तो सखियों के संग आकर जानकी सीता ने राम के गले में जयमाला पहना कर उनका वरण किया।
गल्ला व्यापारियों की प्रमुख संस्था धर्मादा रक्षिणी सभा द्वारा संचालित कोंच रामलीला के जारी 169वें महोत्सव में बुधवार की रात्रि रामलीला रंगमंच पर धनुर्भङ्ग लीला का मनोहारी मंचन किया गया। इस लीला का आनंद लेने के लिए कोविड प्रोटोकॉल के तहत ग्राउंड में काम चलाऊ दर्शक ही जुटे थे। प्रसंग में दर्शाया गया कि राजा जनक के निमंत्रण पर जनकनंदिनी सीता का वरण करने के लिए देश देशांतर के राजा, राजकुमार रंगभूमि में पधारे हैं। महर्षि विश्वामित्र के साथ राम और लक्ष्मण भी वहां प्रवेश करते हैं और राजा जनक उन्हें सर्वोच्च आसन प्रदान करते हैं। तमाम राजे महाराजे और राजकुमारों ने धनुष उठाने का बहुत प्रयास किया लेकिन वे उसे तिल भर भी हिला न सके। रावण और वाणासुर भी रंगभूमि में प्रवेश करते हैं और उनके बीच गर्मागर्म संवादों का दर्शकों ने खूब आनंद उठाया और तालियां पीटीं। बिदूषक दूल्हे के रूप में उल्टी खाट पर बारात लेकर आए अभिषेक रिछारिया पुन्नी एवं उनके साथ नाऊ कक्का के रूप में सूर्यदीप सोनी ने दर्शकों का खूब मनोरंजन कराया। अंत में गुरु विश्वामित्र का आदेश पाकर राम धनुष तोड़ देते हैं। हर्षध्वनि के बीच सखियों संग रंगभूमि में आकर सीता ने राम के गले में वरमाला डाल दी। धनुष की प्रलयंकारी ध्वनि सुन कर भगवान परशुराम का वहां प्रवेश होता है, क्रोधावेग में उनकी लक्ष्मण के साथ गर्मागर्म वार्ता का भी दर्शकों ने आनंद लिया। जनक की भूमिका बरिष्ठ रंगकर्मी राजकुमार हिंगवासिया, विश्वामित्र केशव बबेले, सतानंद संतोष त्रिपाठी, विमति नेमिचंद्र अग्रवाल, सुमति अनिल अग्रवाल, रावण रूपेश स्वर्णकार, वाणासुर संजय सिंघाल, परशुराम शशांक मिश्रा, सुनयना सूरज शर्मा, राजाओं की भूमिका में शिवकुमार गुप्ता, नीरज अग्रवाल, अक्षत रिछारिया, जवाहर अग्रवाल, शुभ सोनी, अंबर सोनी आदि ने निभाई। रामलीला समिति के अध्यक्ष राजकुमार पटेल, मंत्री अरविंद मिश्रा, अभिनय विभाग के संरक्षक मोहनदास नगाइच, मंत्री मृदुल दांतरे, दुर्गेश शुक्ला, आकाश राठौर आदि पार्श्व में रहकर मंचन में सहयोग कर रहे थे।

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बिदूषक दूल्हे और नाऊ कक्का की प्रस्तुतियों पर लगे ठहाके

कोंच। धनुष यज्ञ लीला के दौरान दर्शकों का मनोरंजन कराने के लिए डाली गई परंपरानुसार दूल्हा की बारात उल्टी खाट पर आई, नाऊ कक्का लकड़ी में फंसी लुचई लिए थे। इन दोनों ने दर्शकों का खूब मनोरंजन कराया। दूल्हे के वेश में अभिषेक रिछारिया पुन्नी और नाऊ कक्का के वेश में सूर्यदीप सोनी ने गारियों, छंदों और कवित्तों के माध्यम से रामलीला आयोजन से जुड़े लोगों और नगर के संभ्रांत लोगों पर करारे व्यंग्य कर दर्शकों के पेटों में बल डाल दिए। संगीत पर दी गई इन व्यंग्यात्मक प्रस्तुतियों में दूल्हे ने अपनी वीरता का बखान किया और दूल्हे को सजाने में किसकी क्या भूमिका रही, बहुत ही निराले अंदाज में जब बताया तो दर्शकों ने खूब ठहाके लगाए।

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