भगवान श्रीकृष्ण प्रेम रस के सागर हैं, उन्हें होली महोत्सव सबसे प्रिय : ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी

भगवान श्रीकृष्ण प्रेम रस के सागर हैं, उन्हें होली महोत्सव सबसे प्रिय : ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

होली महोत्सव पर ब्रह्मचारी ने दी शुभकामनाएं।

कुरुक्षेत्र, 7 मार्च : देशभर में संचालित श्री जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी ने देशवासियों एवं प्रदेशवासियों को होली महोत्सव की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि आनंद, उल्लास एवं प्रेम प्यार के त्योहार होली का मथुरा तथा वृन्दावन की भांति धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में भी विशेष महत्व है। इसी धरती पर भगवान श्री कृष्ण ने पूरी सृष्टि का कर्म का संदेश दे कर मानव जीवन के विभिन्न रंगों से अवगत करवाया है। ब्रह्मचारी ने बताया कि भगवान श्री कृष्ण ने अपने मुखारविंद से कुरुक्षेत्र की धरती पर गीता का संदेश ही नहीं दिया बल्कि बाल्यकाल से लेकर महाभारत के युद्ध के समय तक उनका कुरुक्षेत्र की धरती पर बार बार आगमन हुआ है। उन्होंने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण को सहस्त्र नामों के साथ नित्य उत्सवमय, सदासुख सौख्यमय, सदा शोभामय और मंगलमय कहा जाता है। भगवान की भक्ति दो प्रकार की बतायी गई है:–वैधी (विधान के अनुसार) और रागानुगा (प्रेममय)। ब्रह्मचारी ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण प्रेम रस के सागर हैं। इस लिए रसमय ब्रह्म श्रीकृष्ण को रागानुगा भक्ति अधिक प्रिय है। इसलिए भगवान की धरती पर व्रत-त्योहार विधि-विधानमय कम, रसमय अधिक होते हैं। प्रेम की प्रधानता के कारण आनंद, उल्लास एवं मस्ती के उत्सव-त्योहारों की विशेषता है। उन्होंने बताया कि शास्त्रों में प्रमाण है कि भगवान श्री कृष्ण की होली तीनों लोकों से न्यारी है। देवी देवता भी इसे देखने के लिए लालायित रहते हैं। ब्रह्मचारी ने कहा कि आज समाज में होली के त्योहार से आपसी भाईचारे, प्रेम प्यार और आनंद से भरे जीवन का संदेश देने की आवश्यकता है। देश भर की जयराम संस्थाओं में होली के अवसर पर विशेष पूजन एवं अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। इस मौके पर के. के. कौशिक, श्रवण गुप्ता, टी के शर्मा, कुलवंत सैनी, ईश्वर गुप्ता, खरैती लाल सिंगला, पवन गर्ग, सुरेंद्र गुप्ता, एस एन गुप्ता, राजेश सिंगला, प्राचार्य रणबीर भारद्वाज, आचार्य राजेश लेखवार शास्त्री, रोहित कौशिक, सतबीर कौशिक इत्यादि भी मौजूद रहे।
जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी।

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