मां चंद्रघंटा स्वरूप की श्री मार्कंडेश्वर महादेव मंदिर में हुई पूजा।
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तीसरी शक्ति मां चंद्रघंटा परम शांतिदायक और कल्याणकारी है : महंत जगन्नाथ पुरी।
कुरुक्षेत्र, 24 मार्च : चैत्र नवरात्रों के चलते श्री मार्कंडेश्वर महादेव मंदिर ठसका मीरां जी में बारह ज्योतिर्लिंगों पर अनुष्ठान के बाद लाई गई मां भगवती की अखंड ज्योति पर अखंड पूजन चल रहा है। मां भगवती की अखंड ज्योति के दर्शनों के लिए दूर दूर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। अखिल भारतीय मार्कंडेश्वर जनसेवा ट्रस्ट के अध्यक्ष महंत जगन्नाथ पुरी ने बताया कि मां दुर्गा का तीसरा शक्ति स्वरूप चंद्रघंटा परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। नवरात्रों में तीसरे दिन इसी देवी की पूजा का महत्व है। महंत जगन्नाथ पुरी ने दुर्गा सप्तशती के पाठ में बताया कि मां चंद्रघंटा मां पार्वती का सुहागिन स्वरुप है, इस स्वरुप में मां के मस्तक पर घंटे के आकार का चंद्रमा सुशोभित है। इसीलिए इनका नाम चंद्रघंटा पड़ा। मां चंद्रघंटा की आराधना करने वालों का अहंकार नष्ट होता है और उनको असीम शांति और वैभवता की प्राप्ति होती है। मां चंद्रघंटा के ध्यान मंत्र, स्तोत्र एवं कवच पाठ से साधक का मणिपुर चक्र जागृत होता है, जिससे साधक को सांसारिक कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है। महंत जगन्नाथ पुरी ने कहा कि नवरात्र के इन नौ दिनों के दौरान मन को दिव्य चेतना मे लिप्त रखना चाहिए। नवरात्र के नौ दिनों में तीन-तीन दिन तीन गुणों के अनुरूप है- तमस, रजस और सत्व। हमारा जीवन इन तीन गुणों पर ही चलता है फिर भी हम इसके बारे में सजग नहीं रहते और इस पर विचार भी नहीं करते। हमारी चेतना, तमस और रजस के बीच बहते हुए अंत के तीन दिनों में सत्व गुण में प्रस्फुटित होती है। उन्होंने कहा कि नवरात्र के नौ दिनों में यज्ञ और हवन का सिलसिला चलता रहता है। ये यज्ञ संसार में दुख और दर्द के हर तरह के प्रभाव को दूर कर देते हैं। नवरात्र के हर दिन का अपना महत्व और प्रभाव है और उस दिन के अनुरूप ही यज्ञ और हवन किए जाते हैं। जीवन में हमें अच्छे और बुरे दोनों तरह के गुण प्रभावित करते हैं। नौ दिन तक चलने वाले पर्व नवरात्र के तीन-तीन दिन तीन देवियों को समर्पित होते हैं। ये तीन देवियां हैं- मां दुर्गा (शौर्य की देवी), मां लक्ष्मी (धन की देवी) और मां सरस्वती (ज्ञान की देवी)। महंत जगन्नाथ पुरी ने कहा कि नवरात्र हमें यह सिखाते हैं कि किस तरह इंसान अपने अंदर की मूलभूत अच्छाइयों से नकारात्मकता पर विजय प्राप्त कर सकता है और स्वयं के अलौकिक स्वरूप से साक्षात्कार कर सकता है। जिस तरह मां के गर्भ में नौ महीने पलने के बाद ही एक जीव का निर्माण होता है ठीक वैसे ही ये नौ दिन हमें अपने मूल रूप, अपनी जड़ों तक वापस ले जाने में अहम भूमिका अदा करते हैं। इन नौ दिनों का ध्यान, सत्संग, शांति और ज्ञान प्राप्ति के लिए उपयोग करना चाहिए। इस अवसर पर स्वामी संतोषानंद, स्वामी सिद्धार्थ, नाजर सिंह, सुक्खा सिंह, बिल्लू पुजारी, मंजीत कौर, सुखवंत कौर सहित अन्य श्रद्धालु मौजूद रहे।
नवरात्र अवसर पर पूजन करते हुए महंत जगन्नाथ पुरी।