मध्य प्रदेश/ शिक्षा निदेशालय लागू कराए सेक्शन 4(1)(बी) के प्रावधान

मध्य प्रदेश/ शिक्षा निदेशालय लागू कराए सेक्शन 4(1)(बी) के प्रावधान

  • पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी // कर्नाटक में स्कूल शिक्षा विभाग में 20 हज़ार से अधिक पीआईओ – आरटीआई एक्टिविस्ट वीरेश वेल्लूर।।*

ब्यूरो चीफ// राहुल कुशवाहा रीवा मध्य प्रदेश..8889284934

वर्तमान दौर में यदि देखा जाए तो कोरोना पीरियड में सबसे ज्यादा कोई प्रभावित हुआ है तो वह पढ़ने लिखने वाले स्टूडेंट। शिक्षा सभी के लिए आसान और सुलभ तरीके से उपलब्ध हो यह सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। परंतु जहां एक तरफ शिक्षा के गुणवत्ता के साथ समझौता किया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ निजीकरण की आंधी ने छात्रों और अभिभावकों दोनों को चिंतित कर दिया है।

सवाल यह है कि क्या निजीकरण से व्यवस्था में सुधार हो जाएगा? आखिर सरकार सभी जिम्मेदारियों से अपना पल्ला क्यों झाड़ रही है? आज जबकि सरकारी शिक्षा विभाग ज्यादातर जानकारी सूचना के अधिकार के तहत आम जनता से साझा नहीं कर रहा वहीं सवाल यह है कि क्या निजीकरण कर देने के बाद वही जानकारी निजी स्कूल-कॉलेज विद्यार्थियों और आम जनता को उपलब्ध करवाएंगे? इन्हीं विषयों पर 43 वां वेबीनार का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न प्रदेशों से आरटीआई एक्टिविस्ट, सामाजिक जन जागरण से जुड़े हुए लोग सम्मिलित हुए और अपने अपने वक्तव्य साझा किये। 

🔸 शिक्षा निदेशालय लागू कराए सेक्शन 4(1)(बी) के प्रावधान – पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी

इस बीच कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर पधारे पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा कि शिक्षा विभाग के निदेशक को आरटीआई की धारा 4(1)(बी) की जानकारी को सभी प्राइवेट संस्थानों सहित सरकारी संस्थानों के वेबपोर्टल पर अनिवार्यतः साझा करवाया जाना चाहिए। प्राइवेट स्कूल न मानें तो उनका रजिस्ट्रेशन निरस्त किया जाना चाहिए। इस विषय में सूचना आयुक्तों की जिम्मेदारी यह बनती है की वह शिक्षा निदेशक को ऐसी स्कूलों का रजिस्ट्रेशन कैंसिल करने के लिए आदेश करें। दूसरा तरीका यह होगा कि यदि कोई आरटीआई लगाकर शिक्षा निदेशालय से ऐसी जानकारी मांगता है जो आरटीआई की धारा 4(1)(बी) के तहत आती है परंतु ऐसी जानकारी शिक्षा निदेशालय द्वारा देने से मना कर दिया जाता है तब सूचना आयुक्तों को ऐसी जानकारी बिना किसी शुल्क के दिए जाने हेतु आदेश करना चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो जिस प्रकार पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर के द्वारा बताया गया कि सब कुछ निजीकरण की भेंट चढ़ जाएगा तो यह बात कहना बिल्कुल सही होगी। चुटकुले हम दो हमारे दो का भी जिक्र करते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त ने कहा कि यह बात बिल्कुल सही होगी क्योंकि निजीकरण के बाद शैक्षणिक संस्थान मात्र कुछ लोगों की बपौती बन कर रह जाएंगी जो हमारे लोकतंत्र और समाज के लिए अच्छा नहीं कहा जाएगा।

🔹 धारा 8(1)(आई) के तहत सरकार को बनाई गई नीतियों को साझा करना चाहिए

शैलेश गांधी ने बताया उनके कार्यकाल में ऐसा ही एक मामला आया था जिसमें प्राइवेट संस्थान के द्वारा बताया गया कि वह तो यहां पर कमर्शियल पार्टनर है तो उस पर श्री गांधी के द्वारा पूछा गया कि क्या वह व्यवसायिक हैं। इसके बाद बात बदलते हुए संस्थान द्वारा कहा गया नहीं वह तो शिक्षा के प्रचार और प्रसार के लिए आए हुए हैं।  इस प्रकार कार्यवाही से बच गए लेकिन निजी शिक्षण संस्थानों का मंतव्य स्पष्ट हो ही जाता है कि उनका उद्देश्य सेवा भाव नहीं होता बल्कि व्यवसाय होता है जो आजकल देखा भी जा रहा है। 

श्री गांधी ने कहा की पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त और उनके साथी श्रीधर आचार्युलु ने जिस प्रकार बताया कि आजकल शिक्षा बिल हो अथवा कोई अन्य बिल सभी बिना किसी विचार-विमर्श के ही प्रस्तुत किया जा रहा है तो यह बिल्कुल लोकतंत्र के विरुद्ध है और यदि बिल कैबिनेट में चर्चा हेतु रखे जाते हैं तो उसका एक महत्व होता है और कई बातें सामने निकल कर आती हैं। आरटीआई कानून की धारा 8(1)(आई) का हवाला देते हुए शैलेश गांधी ने बताया कि जब भी निर्णय लिया जाना चाहिए सरकार को उसके पीछे के तर्क को स्वयं ही जनता के समक्ष साझा करना चाहिए यह इस धारा का प्रावधान है। इससे व्यवस्था लोकतांत्रिक बनी रहेगी और लोगों को इसका फायदा भी होगा।

🔸 आवेदन फीस और प्रतिलिपि को लेकर सुप्रीम कोर्ट के यह दो आदेश हैं महत्वपूर्ण

मामले पर अपना विचार प्रस्तुत करते हुए कर्नाटक से विशिष्ट अतिथि के तौर पर पधारे वीरेश बेल्लूर ने बताया कि उनके सामने अभी हाल ही में एक मामला आया था जिसमें विद्यार्थियों की परीक्षा से संबंधित उत्तर पुस्तिका की प्रति की मांग आरटीआई लगाकर की गई थी। इस विषय में उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के भी निर्देश हैं जिसमें परीक्षार्थी को उसकी उत्तर पुस्तिका आरटीआई कानून के प्रावधान के अनुरूप दी जानी चाहिए। उन्होंने कर्नाटक में निजी संस्थानों के विषय में चर्चा करते हुए बताया कि कुछ स्थान ऐसे हैं जहां 1000 रुपये की फीस लगती है तो कई स्थान ऐसे हैं जहां 2000 रु से अधिक तक की फीस देकर विद्यार्थी को उसकी उत्तर पुस्तिका दी जाती है। यद्यपि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश और आरटीआई कानून की मंशा के विरुद्ध है। वीरेश बेलूर ने बताया कि कई बार यदि आरटीआई लगाकर उत्तर पुस्तिका की माग की जाती है तो भी विद्यार्थी को नियम के विरुद्ध अधिक पैसा देकर जानकारी प्रदान की जाती है जो कि गलत है। वीरेश ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश क्रमांक- 5665/2014 कंपनी सेक्रेट्री ऑफ इंडिया बनाम पारस जैन सिविल अपील का जिक्र करते हुए बताया कि इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है की अपीलार्थी के पास जानकारी प्राप्त करने के दोनों विकल्प खुले हैं चाहे वह उस विभाग के नियमावली के तहत जानकारी प्राप्त करें अथवा आरटीआई कानून के तहत दोनों ही मान्य होगा। साथ ही अपने इस आदेश के पृष्ठ क्रमांक 12 में उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि आरटीआई आवेदन का शुल्क मात्र 10 रुपये होगा जबकि प्रति पेज 2 रुपये की दर से चार्ज किए जाएंगे।

इसी प्रकार इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक मामले रिट पिटिशन क्रमांक 238/2014 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया में एसएलपी स्पेशल लीव पिटिशन नंबर 30659/2017 कॉमन कॉज बनाम हाई कोर्ट ऑफ इलाहाबाद और अन्य के मामले में अपना बढ़िया निर्णय देते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी भी हाल में सूचना के अधिकार आवेदन की अधिकतम शुल्क 50 रुपये से अधिक नहीं हो सकती और साथ ही प्रति पेज जानकारी के लिए शुल्क 5 रुपये से अधिक नहीं हो सकती। उन्होंने बताया कि इस प्रकार दोनों बहुत ही महत्वपूर्ण आदेश हैं जिनके चलते आरटीआई को संबल मिला है।

🔹 कर्नाटक में स्कूल शिक्षा विभाग में 20 हज़ार से अधिक पीआईओ – आरटीआई एक्टिविस्ट वीरेश वेल्लूर

वीरेश बेल्लूर ने बताया कि कर्नाटक सरकार के विषय में सूचना का अधिकार और शिक्षा विभाग पर चर्चा करें तो हम पाते हैं कि स्कूल शिक्षा विभाग में 20 हज़ार लोक सूचना अधिकारी एवं लगभग इतने ही प्रथम अपीलीय अधिकारी नियुक्त हैं।  यहाँ शिक्षा विभाग में सर्वाधिक आरटीआई आवेदन किए जाते हैं जिसमें स्कूल कॉलेज और विश्वविद्यालय आदि से जानकारियां मांगी जाती हैं यहां पर आरटीआई के विषय में जो निरीक्षण रिपोर्ट ब्लॉक शिक्षा अधिकारी या जिला शिक्षा अधिकारी के द्वारा सरकार को भेजी जाती है एवं कालेज की बात करें तो शिक्षा विभाग के उपनिदेशक के द्वारा जो निरीक्षण रिपोर्ट भेजी जाती है हम सभी ज्यादातर निरीक्षण रिपोर्ट की जानकारी आरटीआई से प्राप्त करते हैं और उसमें जो आपत्तियां दर्ज होती हैं उसके आधार पर सरकार को सुधार के लिए लिखते हैं। वीरेश बेल्लूर ने बताया कि ज्यादातर आरटीआई एक्टिविस्ट इसी प्रकार की निरीक्षण रिपोर्ट के लिए आरटीआई दायर करते हैं और शिक्षा विभाग में सुधार के लिए सरकार को लिखते हैं। इस बीच मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष राहुल सिंह के द्वारा बताया गया कि अभी हाल ही में कुछ माह पहले सुप्रीम कोर्ट का एक निर्णय यह भी आया है जिसमें उल्लेख किया गया है कि यदि संबंधित विभाग में प्रतिलिपि लेने की कोई अपनी विशेष व्यवस्था है तो उस व्यवस्था का पालन किया जाएगा और यदि उस व्यवस्था के तहत प्रतिलिपि प्राप्त नहीं होती है उसी स्थिति में मात्र आरटीआई लगाया जाएगा। इस विषय पर टिप्पणी करते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है सुप्रीम कोर्ट में बैठे हुए जज कोर्ट के ही निर्णय को नहीं मानते और अलग-अलग परस्पर विरोधाभासी निर्णय दे देते हैं।

🔸 संलग्न- कृपया संलग्न कार्यक्रम वेबीनार की तस्वीरें देखने का कष्ट करें।


🔹🔸 *शिवानंद द्विवेदी सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता जिला रीवा मध्य प्रदेश

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