मध्य प्रदेश /रीवा /मैं छुहिया घाटी हूं… मानव अत्याचार की साक्षी हूं* मेरी आवाज सुनो

मध्य प्रदेश /रीवा /मैं छुहिया घाटी हूं… मानव अत्याचार की साक्षी हूं*
मेरी आवाज सुनो

ब्यूरो चीफ //राहुल कुशवाहा रीवा मध्य प्रदेश..8889284934

मैं छुहिया घाटी हूं…
विंध्यांचल और कैमूर पर्वतमाला का ही भाग। मुझमें ही पनपी मानव सभ्यताएं और हमने आदि से मानव बनते देखा। हमारी ही श्रोणियों ने एक आंचल में सोन को समेटा तो दूसरे हाथ से कल-कल करती गोपद, बनास, टमस और बीहर नदियां दीं। ताकि उन्नति से लोक कल्याण हो। फिर हमारे माथे पर कलंक क्यों? हादसे और अनहोनी की कहानी मेरी कोख से नहीं जन्मी बल्कि समाज और सिस्टम ने आपदा का का रास्ता खुद तैयार किया है। खोखले हम नहीं हुए बल्कि तुम्हारे स्वार्थ ने हमें सड़ा-गला दिया। मेरी ही तलहटी की नहर में जब 53 लोगों की जलसमाधि हुई तो पीडि़तों की तड़प और करुण क्रंदन देखकर मन विदीर्ण हो गया। मैं अपने आंसू किसे और कैसे दिखाता। उसपर भी मुझ पर ही इल्जाम, क्या इसलिए कि तमाम प्रहारों के बाद भी अपने वजूद को समेटे खड़ा रहा, यह सोचकर की कभी रहम आएगा। ज्ञान-विज्ञान के मुर्दे टीले पर बैठा मैं सब देखता रहा। पर मेरा सवाल है अब समाज और सिस्टम से कि मेरी दुर्दशा को मजाक क्यों बना दिया, जो तुम्हारी ही देन है। तुम्हारे ही हाथों मेरे विनाश की पटकथा लिखी गई और गुनाह भी मेरे नाम पर डाला गया। अगर मैं बोल सकता तो हर उस अत्याचार का प्रतिकार करता जो मुझ पर किया गया। विकास के नाम पर खुद का गला घोंटते हमने देखा। मेरी छाती पर न जाने कितने सुराख करके तुमने अपनी विकास और उन्नति का लोहा मनवाने की ठानी। सोन का पानी लाने के लिए हमारा सीना चीरा गया तो इसलिए चुप रहा कि इससे मानव का कल्याण होगा। फिर नहरें और सड़कें बनाई हमने बाअदब रास्ता दे दिया। रेल से लेकर सड़क तक के लिए टनल बनाने के लिए मेरे सीने पर हथौड़े चलाए गए पर हमने उफ तक नहीं किया।
हमने लोगों का दर्द भी देखा और पाखंड भी। मेरी सिराएं और भुजाएं एक-एक करके काटी गईं, छांटी गईं किसी ने दर्द को महसूस नहीं किया। कभी कल-कल करते सोते हमारी जटाओं से निकलते थे, पक्षियों का कलरव, कुलाचे भरते जानवरों के झुंड और बाघों की दहाड़ आखिर किसने छीनी। विकास के नाम पर सीने को रौंदती मशीनें और हमारे आगोश में जहर उगलती चिमनियां किसने खड़ी कीं। हमारे सीने में सबका काला चिट्ठा छिपा हुआ है। किस-किस ने कुल्हाड़ी चलाई और किस-किस ने हथौड़ा मारा, शरीर पर हर जख्म का निशान मौजूद है। मेरी ही माथे पर लूट, वसूली से लेकर मनमानी का काला खेल चलता रहा। सौ टन वजनी सामान लादे वाहन मेरी छाती से किसकी अनुमति से गुजरते रहे। मैं सिसकता रहा, मिट्टी से लेकर पत्थर तक टूटकर बिखरते रहे पर किसी ने भी मेरी पीड़ा पर गौर नहीं किया। क्या इसलिए कि मैं बोल नहीं सकता, मैने हर अधर्म यहां देखा। मानव की भूख ने हमारे पत्थर, मिट्टी, जंगल, पहाड़ तक निगल लिए। हर रोज मेरा शरीर लहूलुहान हुआ। हमारी तलहटी पर नहर में डूबी बस और सांसों के साथ सपनों का दम घुटते हमने अपनी आंखों से देखा। उसके बाद का मंजर भी जब अपनों को खोने वालों के फटते सीने और गम के सागर में डूबे लोगों की चीखें भी सुनी। इन सबके बीच जिनके सिर इन मौतों का पाप है उनका प्रहसन भी देखा। अनगिनत हादसों की तरह एक दिन यह भी विस्मृत हो जाएगा और फिर शुरू हो जाएगा वही अंधाधुंध का राज।
हे! यहां के निवासियों मैं पापी नहीं बल्कि विंध्य का गर्वोन्मुक्त शिखर था। रियासत काल का प्रहरी, मुझपर बनी कोठी पर जलने वाले हुलर से ही भेजता था राजा का संदेश। अपने हृदयस्थल से ही दिया था रास्ता ताकि उन्नति के मार्ग पर सभी चल सकें। लेकिन सबने उन्नति के इस मार्ग को विनाश का रास्ता बना दिया। मुझपर अत्याचार करके अगर खुश रहने का जतन सोच रहे तो यह भूल है। क्योंकि मेरे मस्तक पर मुनि अगस्त, बाणभट्ट, कपिल, ऋषि मारकंडेय सहित न जाने कितने तपस्वियों की रज है, मुझपर आघात और प्रकृति से छल खुद पर ही भारी पड़ेगा। अगर अब भी शर्म का पानी है तो मुझे सहेजो विरासत की तरह, इस धरती के सबसे पुराने बुजुर्ग की तरह वरना मेरा कोपभाजन बनने के लिए तैयार रहो।

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