वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
जग ज्योति दरबार के महंत राजेंद्र पुरी ने सनातन में योग के महत्व बारे विस्तार पूर्वक बताया।
कुरुक्षेत्र, 21 जून : धर्मनगरी के जग ज्योति दरबार में भी 10वें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर महंत राजेंद्र पुरी एवं अन्य संतों के सान्निध्य में विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर दरबार के श्रद्धालुओं ने भी उत्साह पूर्वक भाग लिया। संतों के साथ महंत राजेंद्र पुरी ने योग दिवस पर विभिन्न आसन करने के उपरांत सनातन संस्कृति एवं संस्कारों में योग के महत्व बारे विस्तार पूर्वक बताया। उन्होंने कहा कि योग का अभ्यास सभ्यता के आरंभ से ही शुरू हो गया था। योग विज्ञान की उत्पत्ति हजारों साल पहले हुई थी। योग विद्या में भगवान शिव को पहले योगी या आदियोगी, पहले गुरु या आदि गुरु के रूप में देखा जाता है। महंत राजेंद्र पुरी ने कहा कि योग का अर्थ होता है जोड़ना। योग की प्राचीन परंपरा हम सभी को स्वस्थ जीवन पद्धति से जोड़ती है। योग हमारे मन और मस्तिष्क को आपस में जोड़ता है। योग की प्रक्रिया हमें आध्यात्म और उच्च जीवन मूल्यों से भी जोड़ती है। योग अनिवार्य रूप से एक अत्यंत सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित आध्यात्मिक अनुशासन है, जो मन और शरीर के बीच सामंजस्य लाने पर केंद्रित है। यह स्वस्थ जीवन जीने की एक कला और विज्ञान है। महंत राजेंद्र पुरी ने कहा कि आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड में सब कुछ एक ही क्वांटम आकाश की अभिव्यक्ति है। जो व्यक्ति अस्तित्व की इस एकता का अनुभव करता है, उसे योगी कहा जाता है। जिस ने मुक्ति, निर्वाण या मोक्ष के रूप में संदर्भित स्वतंत्रता की स्थिति प्राप्त की है। इस प्रकार योग का उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार है। सभी प्रकार के कष्टों को दूर करना जो मुक्ति की स्थिति की ओर ले जाता है। इस मौके पर महंत राजेंद्र पुरी ने संकीर्तन में भजनों के माध्यम से भी योग का महत्व बताया।
महंत राजेंद्र पुरी योग करते हुए।