वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
गृहस्थ सामान्य पूजा अनुष्ठान करते हैं तो संतों की पूजा का विधान आम लोगों से हटकर होता है, संत कठोर तपस्या से परमात्मा का अनुभव करते हैं।
कुरुक्षेत्र,1 जून : धर्मनगरी के जग ज्योति दरबार में भीषण गर्मी में महंत राजेंद्र पुरी की अखंड पंच धूणी अग्नि तपस्या निरंतर जारी है। अग्नि तपस्या के दसवें दिन भी भारी संख्या में श्रद्धालु आस्था एवं भक्ति भाव के साथ पहुंचे। श्रद्धालुओं ने पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लिया। महंत राजेंद्र पुरी ने शनिवार को संत महापुरुषों की मानव समाज के लिए की जाने वाली कठोर तपस्या बारे बताया कि परमात्मा की भक्ति के शास्त्रों में अनेक विधान बताए गए हैं। गृहस्थ जहां सामान्य तरीके से पूजा अनुष्ठान करते हैं तो संत महापुरुषों की पूजा विधान का तरीका आम लोगों से हटकर होता है। संन्यासी कई तरह से पूजा, आराधना, तप, तपस्या और जप करते हैं। इसके तहत शरीर को कष्ट देकर परमात्मा को पाने के प्रयास किए जाते हैं। साधुओं की तपस्या का एक ऐसा ही संस्कार है धुनी रमाना है। महंत राजेंद्र पुरी ने कहा कि आग बरसते सूर्य की तपिश में संतों के द्वारा धुनी रमाने की प्रक्रिया संपन्न की जाती है। उन्होंने कहा कि जीव मात्र के कल्याण एवं देश की उन्नति के लिए गुरु की प्रेरणा से करीब दो दशक से अखंड पंच धूणी अग्नि तपस्या की जा रही है। इस तपस्या के दौरान भी लोगों को शांति एवं भाईचारे की सीख दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि अपने गुरु द्वारा बताए गए मंत्रों को पंच धूणी के मध्य बैठकर सर्व कल्याण के लिए जपते हैं। इस दौरान भजन-संकीर्तन भी करते हैं। उन्होंने बताया कि सूर्य जब अपनी भीषण गर्मी के चरम पर होता है उस वक्त सूर्य की ओर मुख करके धुनी रमाई जाती है। इसका एकमात्र उद्देश्य होता है प्रभु मिलन की आस। धुनी रमाना शास्त्रोक्त और इसका पौराणिक और वैदिक महत्व है। ऋग्वेद के अनुसार धुनी रमाना तपस्या के चरमोत्कर्ष का एक रूप है। महर्षि वशिष्ट ने महर्षि विश्वामित्र को यह तप बताया था। उपनिषद में अगस्त्य ऋषि ने अपने शिष्य सुतीक्ष्ण को इस तप क्रिया का ज्ञान दिया था। तैतरीय उपनिषद में भी इसका उल्लेख मिलता है। शनिवार की अग्नि तपस्या में सोमदत कपूर, अमित शाहाबाद, अमरीक सिरसला, गगन, संजय कुमार, अनिल कुमार यमुनानगर, दर्शन सिंह कुरुक्षेत्र, पवन कुमार डेराबस्सी, रोहित बलटाना, कुलवीर सिंह छापर, गुरजीत सिंह ऐबल, रवि रोहटी व सतनाम सिंह सलेमपुर इत्यादि ने सेवा दी।
अखंड पंच धूणी अग्नि तपस्या में बैठे महंत राजेंद्र पुरी।