जग ज्योति दरबार के महंत राजेंद्र पुरी ने बताया सनातन में श्राद्ध पक्ष का है धार्मिक व वैज्ञानिक महत्व

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।

श्राद्ध अनुष्ठान कोई साधारण अनुष्ठान नहीं होता है, इस अनुष्ठान का प्रभाव कई पीढ़ियों तक होता है : महंत राजेंद्र पुरी।

कुरुक्षेत्र, 24 सितम्बर : जग ज्योति दरबार के महंत राजेंद्र पुरी ने श्राद्ध पक्ष के महत्व पर चर्चा करते हुए कहा कि सनातन परम्पराओं के अनुसार श्राद्ध अनुष्ठान का जहां विशेष धार्मिक महत्व है वहीं श्राद्ध अनुष्ठान का वैज्ञानिक महत्व है। इस महत्व को वैज्ञानिक दृष्टि से माना भी गया है। उन्होंने कहा कि सनातन के अनुसार श्राद्ध को पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का पर्व कहा जाता है। साल भर में एक वक्त ऐसा भी आता है जब पूर्वज स्वर्ग से उतर पृथ्वी पर आते हैं। यह वक्त श्राद्ध पक्ष में आता है। मान्यता है कि इस पक्ष में पूर्वज धरती पर सूक्ष्म रूप में निवास करते हैं। साथ ही अपने संबंधियों से तर्पण व पिंडदान प्राप्त कर उन्हें सुख- समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध पक्ष में पिंडदान व श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है। पितृ पक्ष के सोलह श्राद्धों का वैज्ञानिक महत्व है। महंत राजेंद्र पुरी ने कहा कि वैज्ञानिक शब्दों में एक परंपरा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक रीति-रिवाजों और विश्वासों के पारित होने को संदर्भित करता है। दूसरी ओर, एक अनुष्ठान एक निर्धारित क्रम के अनुसार की जाने वाली क्रियाओं की एक श्रृंखला है और जो अक्सर धर्म या दर्शन जैसे बड़े प्रतीकात्मक तंत्र में अंतर्निहित होती है।
महंत राजेंद्र पुरी ने कहा कि त्रिपिंडी श्राद्ध जिसे काम्य श्राद्ध भी कहा जाता है, यह श्राद्ध आत्माओं की स्मृति में अर्पित किया जाता है। आत्माओं को शांत करने के लिए यह पूजा मुख्य रूप से की जाती है। त्रिपिंडी श्राद्ध यह अनुष्ठान पिछली तीन पीढ़ियों के पूर्वजो के स्मृति में किया गया पिंडदान है। यदि परिवार में कोई भी पिछली तीन पीढ़ियों से युवा और वृद्धावस्था में गुजर गया है तो उन्हें मुक्ति देने के लिए यह अनुष्ठान करना चाहिए। यह दिवंगत आत्माओं की स्मृति में किया जाने वाला एक योगदान है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर लोगों को यह लगता है कि पिछले तीन पीढ़ियों के पूर्वजों को संतुष्ट करने से यह अनुष्ठान संबंधित है। कोई भी व्यक्ति का निधन हुआ हो और वे अंतुष्ट हो तो ऐसी आत्माओं को इस संस्कार त्रिपिंडी श्राद्ध करके अनन्त आत्माओं (परमधाम) के पास भेजा जाता है। इस मौके पर जय देव शर्मा, चरणजीत, त्रिलोचन शर्मा, माध्विका, राजीव शर्मा, निधि वत्स, मोहन लाल, ईश्वर सिंह व मनप्रीत सिंह इत्यादि भी मौजूद रहे।
महंत राजेंद्र पुरी।

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