9 मई महाराणा प्रताप जयंती पर विशेष ऐसे थे महाराणा प्रताप
ब्यूरो अयोध्या
अयोध्या । महाराणा प्रताप का जीवन अद्भुत व अद्वितीय था वे सिद्धांतों पर चलने वाले शासक थे और कभी भी अपने लाभ को लेकर सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
महाराणा प्रताप का ऐसा चरित्र उस समय हुआ करता था जब भारतीय शासक निहित स्वार्थ को देखते हुए मुगल आक्रांताओं के साथ हाथ मिलाने की फिराक में रहा करते थे इस दौरान महाराणा प्रताप ने अपने सिद्धांतों से समझौता न कर अपने राज्य और राज्य की प्रजा को मुगल शासक अकबर से बचाने का प्रयास अंतिम सांस तक किया ।
महाराणा प्रताप के जीवन को अद्भुद इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि उनका संबंध राजघराने से था लेकिन अपनी सभी सुख-सुविधाओं को छोड़कर उन्होंने मुगल शासक अकबर से बैर लिया वह भी मुट्ठी भर सैनिकों के साथ ताकि उनकी प्रजा के अधिकारों पर मुगलिया शासक अतिक्रमण न कर सकें ।
ऐसे वीर योद्धा को तो समाज के सभी वर्ग के लोगों द्वारा नमन किया जाता रहा है और नमन करना भी चाहिए क्योंकि महाराणा प्रताप केवल एक वर्ग विशेष के हितों के संबंध में कार्य नहीं करते थे बल्कि सभी संवर्गों के हितों की रक्षा के लिए अपने जीवन को दांव पर लगाया उनके आदर्शों और सिद्धांतों को समाज के सार्वभौमिक विकास के लिए प्रेरणा स्वरूप जीवन में अनुकरण करना चाहिए परंतु कुछ सामाजिक राजनीतिक विसंगतियों के चलते ऐसे महापुरुषों को भी आज के समय में वर्ग विशेष के आधार पर बांट दिया गया है।
सिसोदिया वंश के क्षत्रिय शासक का जन्म 9 मई 1547 को राजस्थान के कुंभलगढ़ में हुआ था उनका पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था उनके पिता का नाम महाराजा उदयसिंह और माता का नाम रानी जयवंता कुंवर था। 1572 में मेवाड़ के सिंहासन पर बैठते उन्हें तमाम संकटों का सामना करना पड़ा परंतु जिस धैर्य व साहस के साथ उन्होंने हर विपत्ति का सामना किया आज के क्षत्रिय समाज को उनके आदर्शों को आत्मसात करने की आवश्यकता है मुगलों की विराट सेना के साथ जिसकी संख्या 510000 बताई जाती है 3000 घुड़सवारों व 400 भीलों के साथ जिस साहस से मुकाबला कर अद्वितीय पराक्रम की मिसाल पेश किया वाकई संपूर्ण संवर्ग के द्वारा उनका आदर करना चाहिए। मान मर्यादा की रक्षा हेतु प्रण किया कि जबतक अपने राज्य को मुगलों से मुक्त नहीं करवा लेंगे तब तक राज्य सुख का भोग नहीं करेंगे तब से वह भूमि पर सोने लगे और अरावली के जंगलों में कष्ट सहते हुए भटकते रहे लेकिन मुगलिया सम्राट की अधीनता स्वीकार नहीं किया उन्होंने सिद्धांत और वीरता का जो आदर्श प्रस्तुत किया वह वाकई अद्वितीय है।