शिक्षक राजनीति का महानायक, महारथी ,महायोद्धा और आम आदमी के लिए बेहतर शिक्षा का रखवाला नहीं रहा–
हिन्दी हृदय क्षेत्र की शिक्षक राजनीति का महानायक और आम आदमी तथा समाज के आखिरी कतार में खड़े शिक्षार्थी के पक्ष में बेहतर शिक्षा व्यवस्था के लिए निरंतर संघर्ष करने वाला महायोद्धा अंततः मौत से हार गया। माननीय श्री ओम प्रकाश शर्मा के निधन से शिक्षा जगत से किसी भी तरह का नाता-रिश्ता रखने वाला हर शख्स आहत मर्माहत स्तब्ध और नि:शब्द हैं । अपने सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन में सडक से लेकर सदन तक आम आदमी के लिए बेहतर शिक्षा की आवाज प्रखरता से बुलंद करने वाले, शिक्षक हितों के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले महायोद्धा , संसदीय और विधायी परम्पराओं ,परिपाटियो और शिष्टाचार के मर्मज्ञ,विद्वान श्रद्धेय श्री ओम प्रकाश शर्मा के निधन से सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश के ज्ञान-विज्ञान के मन्दिरों के साधक और उपासक मर्माहत हैं। श्री ओम प्रकाश शर्मा के निधन से ज्ञान-विज्ञान मेधा के मन्दिरों के साधकों और उपासकों के साथ-साथ उन अगणित समता मूलक समाज के चहेतों और हृदयो को भी आघात लगा है जो इस देश में सबके लिए दुनिया की सर्वश्रेष्ठ और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सबके लिए समान रूप से उपलब्धता के हिमायती रहे हैं। नालन्दा, बोधगया,तक्षशिला और विक्रमशिला जैसे ज्ञान- विज्ञान की प्राचीन भारतीय धरोहरो के सच्चे सचेत ध्वजवाहक और इन धरोहरों और विरासतो की ऐतिहासिक बौद्धिक और तार्किक चेतना के आधुनिक संवाहक माननीय श्री ओम प्रकाश शर्मा आजीवन यह मानते रहे कि-देश की बहुविवीध आवश्यकताओ के अनरूप आवश्यक होनहार प्रतिभाओं और कर्णधारो का निर्माण विद्यालयों में होता हैं और इन विद्यालयों में अपनी हड्डी पसली एक कर बहुविवीध प्रतिभाओ को रचने गढने वाले ही असली राष्ट्र निर्माता हैं। प्रकारांतर से विद्यालयों में साधना करने वाले महर्षि वाल्मीकि, महर्षि विश्वामित्र, गुरू वशिष्ठ ,गुरू द्रोणाचार्य और गुरु चाणक्य की परम्परा के सच्चे साधक ही किसी राष्ट्र की आधारशिला होते हैं इसलिए इन सच्चे राष्ट्र निर्माताओं के मान सम्मान और हितों की रक्षा करना हर सरकार का दायित्व है और इसीलिए सच्चे राष्ट्र निर्माताओं के मान सम्मान और हितों के लिए माननीय श्री ओम प्रकाश शर्मा आजीवन पूरी ईमानदारी से संघर्ष करते रहे।
माॅ वीणा वादिनी के मानस पुत्र श्री ओम प्रकाश शर्मा महान स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों के अनुरूप तथा समता मूलक समाज की परिकल्पना को साकार करने हेतु पूरे देश में एक समान शिक्षा व्यवस्था और प्रणाली प्रबल समर्थक थे। इसलिए अपने सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन में प्रत्येक मंच से स्वयं के गलकंठ से उच्च स्वर से उन नारों को निरंतर लगाते और दोहराते रहे जिनमें एक समान शिक्षा व्यवस्था का संकल्प निहित था। माननीय श्री ओम प्रकाश शर्मा द्वारा “निर्धन हो या हो धनवान सबको शिक्षा एक समान “, “केरल हो या राजस्थान सबको शिक्षा एक समान” जैसे नारों को निरंतर लगाते रहने का दूरगामी परिणाम हुआ कि-2010 में केन्द्र सरकार को शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकारों की फेहरिस्त में शामिल करना पडा। शिक्षक राजनीति के इस महान पुरोधा का अवसान उस समय पर हुआ जब अन्य क्षेत्रों की तरह शिक्षा का निजीकरण, बाजारीकरण और व्यवसायीकरण अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच चुका है । इस गलाकाट प्रतियोगिता और प्रतिस्पर्धा पर आधारित बाजारवादी दौर में भी अपने संघर्षों से सरकारों को शिक्षा के प्रति सरकार की जिम्मेदारियो का एहसास कराते रहते थे। मिश्रित अर्थव्यवस्था वाले देश में निजी प्रयासों को पूरी महत्ता मिलनी चाहिए परन्तु भारत जैसे देश में जहां आज भी बहुत बडी आबादी गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करती है वहाँ शिक्षा को पूरी तरह बाजार के हवाले नहीं किया जा सकता है। इसलिए श्री ओम प्रकाश शर्मा आम जनमानस के पक्ष में सरकारी शिक्षा के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे । माननीय श्री ओम प्रकाश शर्मा ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सत्य अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह के सिद्धांत को पूरी तरह आत्म-सात और हृदयंगम किया था इसलिए सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन में कभी भी किसी तरह का आन्दोलन किया तो सत्याग्रह के सिद्धांतो मूल्यों मर्यादाओं और मान्यताओं का पूरा ख्याल रखा। निर्विवाद रूप से रूप से कहा जा सकता हैं कि- माननीय श्री ओम प्रकाश शर्मा इकलौते ऐसे महायोद्धा थे जिन्होंने अपने हर आन्दोलन और संघर्ष में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के समस्त सत्याग्रही आदर्शो मूल्यों मर्यादाओं और मान्यताओं को आजीवन जिंदा रखा। महात्मा गाँधी के आदर्शों , मूल्यों मर्यादाओ, मान्यताओं और सत्याग्रही तौर-तरीकों में गहरी गहन आस्था निष्ठा रखने वाले माननीय श्री ओम प्रकाश शर्मा ने अपने सम्पूर्ण राजनीतिक जीवन में कभी भी किसी आन्दोलन को अराजक और हिंसक नहीं होने दिया और सरकारों को अपने अहिंसावादी ,अनुशासित सत्याग्रही आन्दोलनों के आगे नतमस्तक होने को विवश कर दिया। हमारे महान संविधानविदो ने जिस उच्च नैतिक सोच और भावना के साथ राज्यों के विधानमंडलो में उच्च सदन की परिकल्पना की थी उसको श्री ओम प्रकाश शर्मा ने अपने संसदीय और विधायी आचरण व्यवहार से अक्षरशः चरितार्थ किया था । शिक्षक राजनीति के इस महान पुरोधा और संसदीय और विधायी शिष्टाचार के महान मर्मज्ञ और उनके बेहतर बहुआयामी संघर्षों तथा उपलब्धियों को स्मरण करते हुए पूरा उत्तर प्रदेश श्रद्धा सुमन अर्पित कर रहा है।
मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ