मनुष्य का शरीर तो हांडी की तरह है जिसे ईश्वर रूपी कुम्हार ने बनाया है उसकी हंसी उड़ाना ईश्वर की हंसी उड़ाना है : महन्त सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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मनुष्य की पहचान उसके शरीर और वस्त्र से नही उसके आचरण और गुणों से होती है : महन्त सर्वेश्वरी गिरि।
कुरुक्षेत्र पिहोवा 10 जनवरी :- राष्ट्रीय संत सुरक्षा परिषद की प्रदेशाध्यक्ष एवं श्री गोविन्दानंद आश्रम ठाकुरद्वारा पिहोवा की महन्त सर्वेश्वरी गिरि जी महाराज ने आज सत्संग में श्रद्धालुओं को ईश्वर द्वारा बनाये मनुष्य के बारे में आज ऋषि अष्टावक्र जी का एक वृतांत सुनाया ऋषि अष्टावक्र का शरीर कई जगह से टेढ़ा-मेढ़ा था इसलिए वह अच्छे नहीं दिखते थे। एक दिन जब ऋषि अष्टावक्र राजा जनक की सभा में पहुंचे तो उन्हें देखते ही सभा के सभी सदस्य हंस पड़े। ऋषि अष्टावक्र सभा के सदस्यों को हंसता देखकर वापस लौटने लगे।
यह देखकर राजा जनक ने ऋषि अष्टावक्र से पूछा- ‘‘भगवन! वापस क्यों जा रहे हैं ?’’
ऋषि अष्टावक्र ने उत्तर दिया, ‘‘मैं मूर्खों की सभा में नहीं बैठता।’’
ऋषि अष्टावक्र की बात सुनकर सभा के सदस्य नाराज हो गए और उनमें से एक सदस्य ने क्रोध में पूछ ही लिया- ‘‘हम मूर्ख क्यों हुए? आपका शरीर ही ऐसा है तो हम क्या करें?’’
तभी ऋषि अष्टावक्र ने उत्तर दिया- ‘‘तुम लोगों को यह नहीं मालूम कि तुम मुझ पर नहीं, सर्वशक्तिमान ईश्वर पर हंस रहे हो। मनुष्य का शरीर तो हांडी की तरह है जिसे ईश्वर रूपी कुम्हार ने बनाया है। हांडी की हंसी उड़ाना क्या कुम्हार की हंसी उड़ाना नहीं हुआ ?’’
अष्टावक्र का तर्क सुनकर सभी सभा सदस्य लज्जित हो गए और उन्होंने ऋषि अष्टावक्र से क्षमा मांगी।
महन्त सर्वेश्वरी गिरि जी ने बताया कि आज ज्यादातर लोग भी कभी न कभी किसी मोटे, दुबले या काले व्यक्ति को देखकर हंसते हैं और उनका मजाक उड़ाते हैं कि वह कैसे भद्दा दिखता है। जब हम ऐसा करते हैं तो हम ईश्वर, अल्लाह या भगवान का मजाक उड़ाते हैं न कि उस व्यक्ति का।
इंसान के व्यक्तित्व का निर्माण उसका रंग, शरीर या कपड़े नहीं करते बल्कि व्यक्तित्व का निर्माण मनुष्य के विचार एवं उसका आचरण करते हैं।