गोवर्धन पूजा से तात्प्रेय : डा. महेंद्र शर्मा

गोवर्धन पूजा से तात्प्रेय : डा. महेंद्र शर्मा।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
ब्यूरो चीफ – संजीव कुमारी दूरभाष – 9416191877

पानीपत : आयुर्वेदिक शास्त्री अस्पताल के संचालक उत्तर भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य डा. महेंद्र शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि चतुर्मास्य अब अवसान की ओर है,आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा पर्यन्त हमारी संस्कृति का कोई भी ऐसा दिन नहीं आता जब हम किसी की पूजा न करते हैं। प्रारम्भ है तो अन्त भी सर्वप्रथम हम गुरु पूर्णिमा पर्व मनाते हैं और कार्तिक पूर्णिमा ज्ञान का दीपक दान करते हैं कि हम को अब धर्म का बोध हो गया हैं कि अब हमें अपनी सीमाओं और मर्यादाओं के संग स्वयं में ज्ञान और भक्ति की विशालता व्यापकता और विराटता को प्राप्त करना है। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के पर्व गोवर्धन लीला को समझना है तो अपना अध्यात्मिक स्तर ऊंचा करें , भगवान श्री राम चरित और भगवान श्री कृष्ण की लीला को समझें, श्री राम का चरित्र अनुकरणीय है जो हम को मर्यादा सिखाता है कि नदी को दो किनारों अर्थात मर्यादा सीमा का उल्लंघन न करें और भगवान श्री कृष्ण का चरित्र तो एक सागर है जिस पर पुल नहीं बांधा जा सकता केवल अंतर्मन से उन के कृत्यों और विशालता व्यापकता के दर्शन ही सम्भव है अर्थात राम बन कर मर्यादा में रहते हुए श्री कृष्ण को समझें। आज प्रातः में उस्ताद शुजातहुसैन जी से भक्त कबीर जी कि एक साखी रचना सुन रहा था कि ईश्वर कहा मिलेंगे …
मो को कहां ढूंढे रे बंदे
मैं तो तेरे पास में …
न तीर्थ में न मूरत में
न एकांत निवास में
न मंदिर में न मस्जिद में
न काबे कैलाश में …
मोको कहां ढूंढे रे बंदे
मैं तो तेरे पास में …
धर्म शब्द के अर्थ और उसके भीतर छिपे हुए ज्ञान को प्रकट किए बिना हम सब धर्म की बात कर रहे हैं। व्रतों का विज्ञान बहुत अनूठा है जिस की व्याख्या ही नहीं की जाती और न ही समझाई जाती है और विडम्बना यह भी है कि हम समझना ही नहीं चाहते क्योंकि कलियुग आ गया है … गोस्वामी श्री तुलसीदास जी महाराज श्री ने रामचरित मानस के उत्तरकांड में लिखा है ” कलियुग ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ …” एक दृष्टांत देकर समझाता हूं की हमारी वास्तविकता क्या है? इस वर्ष दीपावली महापर्व चतुर्दशी योगे प्रदोष कालीन अमावस्या में मनाया गया क्यों कि यह वैदिक ज्योतिषीय नियम है कि प्रदोष काल में ही अमावस्या व्याप्त होना चाहिए जो कि 12 नवम्बर को सायं 2/45 के बाद थी और कल सूर्योदयी अमावस्या जिस में दीपावली पर्व मनाया जाता है , कल सायं 2/57 के बाद अमावस्या नहीं थी तो वैदिक शास्त्रोक्त नियम के अनुसार दीपावली 12 नवम्बर को ग्रहण की गई। लेकिन कुछ स्थानीय प्रबुद्ध आचार्यों ने मुझ से प्रश्न किया कि अरे डॉक्टर साहिब ! आप को दीपावली पूजन पत्रों में समय नहीं लिखना चाहिए था। हम से लोग कह रहें है कि हम तो दोपहर से पहले पूजा करवाना चाहते हैं क्यों कि हम को भी इधर उधर जाना होता है, लेबर भी है आदि आदि। सब से बड़ी बात तो यह भी है कि आप के ऐसा लिखने से हम को हुई नुस्खान होगा, सायं काल से पहले तो हम बहुत से यजमान निपटा देते थे। आप ने समय लिख कर हमारे लिए समस्या पैदा कर दी। अब कोई बीच का रास्ता निकालिए कि हमारा नुकसान न हो … तो मैंने कहा कि हम ब्राह्मण है, हम ही सिद्धांतों पर नहीं चलेंगे तो पर्व तो फिर दो दिन मनाए जाना निश्चित हो जायेगा। हम कोई मुसलमान या ईसाई तो नहीं हैं जहां इस तरह का विज्ञान नहीं … हम हररोज देखते हैं कि कुछ लोग हर दिन फादर्स डे मथर्स दे, फ्रेंडशिप डे न जाने कौन से डे मनाते हैं और जब कि हमारे सप्ताह के हर दिन के पीछे लिखा हुआ है सोमवार मंगलवार अर्थात हर दिन … वार युद्ध संघर्ष हर दिन कुरुतियों से लड़ने की तैयारी अर्थात वार … नियम का पालन। यही गोवर्धन पूजा का रहस्यिक विज्ञान है। गो और वर्धन का अर्थ है … इंद्रियां और उनका वर्धन अर्थात विस्तार। ईश्वर की प्राप्ति के दो साधन हैं … ज्ञान और भक्ति। ज्ञान का अर्थ है … संयम आत्म अंतर्मुखी होना और वर्धन का अर्थ है इंद्रियों का वर्धन। ज्ञान का अर्थ है … वर्जना मनाही रोकना… यह मत देखो मत कहो मत सुनो मत खाओ मत करो यहां न जाइए अर्थात मन को नियंत्रित करें और आज के समय में तो यह प्रक्रिया बहुत कठिन है… हर जगह पर हम को क्या दिखता है क्या मिलता है और हम को तो सारा दिन उन्हीं के साथ रहना है। जो मिठाई बाहर शोकेस में पड़ी है आप अगर मिठाई बनने की कार्यशाला में चले जाएं तो गारंटी है आप जीवन पर्यन्त मिठाई ही नहीं खायेंगे। तो दूसरा मार्ग है इंद्रियों के वर्धन विशालता और विराटता का कि हमारी इंद्रिय इतनी छोटी छोटी शुद्र बातों को स्वीकार करने में अब समर्थ हैं इसलिए इनको इतना विराट कर दो कि हमारे गोविंद हमारे ठाकुर इन्हीं में समाहित हो जाएं इसी को गोवर्धन लीला कहते हैं जिसका अर्थ है कि आप संकिर्णतता त्याग दें जिस का अर्थ है पाप और दूसरे का अर्थ है व्यापकता विस्तार। विष्णु का अर्थ विश्व के हर अणु में व्याप्त व्यापक विस्तृत ईश्वर तो विश्व के हर अणु में समाया हुआ है यही धर्म है यही नियम और अध्यात्म है। संकीर्णता हमें पापी बनाती है। पाप क्या केवल किसी की वस्तु चुराने तक सीमित नहीं है क्या हमारी आंखे मुंह कान और हमारा मन चोरी नहीं करता है , जब कि बिना कुछ पदार्थ चुराए यह बहुत बड़े बड़े पाप कर जाता है। हम सब अपने अस्तित्व में से “मैं” को हटा कर हम में प्रवेश करेंगे तो गोवर्धन हो जायेगा। हम जिस दिन जीवन के शब्द कोष से मेरा उसका इसका किसका आदि शब्द मिटा देंगे, आइने में जब मित्र का चित्र देखते हुए हम स्वयं का चित्र देखने लगेंगे तो हमारे अंतर्मन में विराटता विशालता और व्यापकता आ जायेगा। यही व्यापकता ही ठाकुर जी का स्वरूप हैं तब हमारे हाथ ठाकुर जी का भोग बनाएंगे, हमारी आंखे उन्हीं के दर्शन करेंगे हमरा मन भटकने की बजाय मनमोहन में लगने लगेगा हमारा चित सत्चिद्दानन्द के चरणों में लगने लगेगा हमारी ज्ञान और कर्मेंद्रियां मन बुद्धि और अहंकार नियंत्रित होकर ईश्वर के चरणों में लगने लगेंगे तो गोवर्धन पूजा हो जायेगी।
श्री निवेदन
श्री गुरु शंकराचार्य पदाश्रित
आचार्य डॉ. महेन्द्र शर्मा “महेश” देवभूमे पानीपत.
9215700495

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