अनाज स्त्री-पुरुष मिलकर उपजाते हैं परन्तु तवे के साथ तपती हैं औरत तो पकती हैं रोटियाँ।

अनाज स्त्री-पुरुष मिलकर उपजाते हैं परन्तु तवे के साथ तपती हैं औरत तो पकती हैं रोटियाँ।

पुरुष और स्त्री दोनों इस सृष्टि में प्रकृति प्रदत्त समान ,समकक्ष,समवर्ती और समानांतर शक्तियां लेकर इस बसुन्धरा पर अवतरित होते हैं और सहज, स्वाभाविक और प्राकृतिक रूप से दोनों एक दूसरे सहगामी, सहकारी ,सहचारी और सहयोगी हैं। दोनों के बेहतर तालमेल वैचारिक और मनोवैज्ञानिक मेल-मिलाप, बेहतर सहगमन,साहचर्य और सहयोग से ही एक बेहतर समाज का निर्माण सम्भव है। कुदरत ने स्त्री और पुरुष दोनों को एक समान बौद्धिक तार्किक और और विवेकीय शक्तियां प्रदान की है । परन्तु पुरुषों ने अपनी पुरूषवादी मानसिकता और वर्चस्ववादी दृष्टिकोण का परिचय देते हुए ना जाने कब अवैज्ञानिक अतार्किक और अबौद्धिक तरीके से स्त्री और पुरुष के मध्य कार्यों का विभाजन इस रूप में किया कि-महिलाओं का काम घर की चहारदीवारी के अन्दर चूल्हा चौकी जलाना, बच्चों का लालन-पालन करना है साँस श्वसुर सहित पूरे परिवार की एक आज्ञाकारी बहु के रूप में सेवा करना तथा एक लाजवंती बहु के रूप में स्वयं को साबित करना प्राथमिकता रहीं हैं वहीं पुरूषों का कार्य घर की चहारदीवारी के बाहर राजनीति करना, शासन-प्रशासन करना और देखते-देखते चहारदीवारी के बाहर का सारा संसार पुरुष की मिलकियत हो गया । परन्तु अवसर प्राप्त होते ही आज महिलाएं घर की चहारदीवारी से बाहर निकल कर विविध क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा, पराक्रम, कुशलता और कुशाग्रता का परिचय दे रहीं हैं । कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स जैसी होनहार उर्जावान बेटियो ने अंतरिक्ष में उडान भर कर यह साबित करने का प्रयास किया है कि- वह पुरुषों के समान वैज्ञानिक चेतना और क्षमता से परिपूर्ण है। हमारे गाँव देहात में यह माना जाता रहा है कि- गाँवों में सजने वाले अखाड़े और कुश्ती दंगल जैसे खेल सिर्फ लडको के लिए बनें हैं परन्तु आज इस संकीर्ण सतही और संकुचित सोच को पीछे छोड़ कर भारत की बेटियां अखाड़े पर कुश्ती दंगल जैसे खेलो में बढ चढकर हिस्सा ले रही नित नये करतब दिखा रही है और साक्षी मलिक गीता फोगाट और बबिता फोगाट जैसी बेटियां ओलंपिक के मैदान अद्भुत अद्वितीय प्रदर्शन करते हुए भारत के लिए मेडल जीत रही और देश का मान सम्मान दुनिया में बढा रहीं हैं। भारत सहित दुनिया के इतिहास का अवलोकन किया जाय तो पता चलता है कि-जब भी महिलाओं को शासन-प्रशासन चलाने का अवसर मिला है तो इतिहास रचने का कार्य किया है। रानी लक्ष्मीबाई, रजिया सुल्तान, बेगम हजरत महल, रानी दुर्गावती रानी कर्णावती श्रीमती माओ भण्डारनायके मारग्रेट थैचर श्रीमती इन्दिरा गाँधी एंजिला मर्केल जैसी महिलाओं ने अपने नेतृत्व की क्षमता से सम्पूर्ण विश्व को चमत्कृत करने का कार्य किया है। रानी लक्ष्मीबाई बेगम हजरत महल और रानी दुर्गावती जैसी साहसी महिलाओं ने युद्ध भूमि में भी अद्भुत पराक्रम और रणकौशल दिखाने का कार्य किया है। संतोष यादव डिक्की डोलमा जैसी बेटियों ने विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माऊंट एवरेस्ट की ऊंचाई अपने कदमों नाप कर यह साबित कर दिया है कि-उनके पैरों में वही ताकत है जो पुरुषों के पैरों में होती हैं। एक बेहतर समाज बनाने के लिए सहकार समन्वय साहचर्य सहिष्णुता और सामंजस्य की आवश्यकता होती है। सहकार समन्वय साहचर्य सहिष्णुता और सामंजस्य का हुनर महिलाओं में रसोई घर में विविध तरह के पकवानों को पकाने से स्वाभाविक रूप से आ जाता है। स्वादिष्ट खीर बनाने के लिए चावल चीनी दूध और मेवा में सामंजस्य स्थापित करना पडता है। महिलाओ इन बहुविवीध भोज्य पदार्थो में सामंजस्य और समन्वय स्थापित कर स्वादिष्ट खीर बनाने अद्भुत जादूगरी होती हैं। जिन जादुई हाथों में कलछुल चलाकर चावल चीनी दूध और मेवा में सामंजस्य और समन्वय स्थापित कर स्वादिष्ट खीर बनाने की विलक्षण क्षमता दक्षता और कुशलता होती हैं उन हाथों में अगर समाज का संचालन सौप दिया जाए तो वह स्वाभाविक और सहज रूप से समाज में सहकार समन्वय साहचर्य सहिष्णुता और सामंजस्य स्थापित कर बेहतर समाज बनाने सार्थक प्रयास कर सकती हैं। पुरूषों द्वारा गेहूं जरूर उगाया उपजाया जाता है परन्तु जब औरत जलते चूल्हे पर रखे तवे के साथ तपती और तवे पर सलीके से हाँथ फेरती है तो रोटी बनती और निवाले के रूप में हर पेट की भूख मिटाती है। इसलिए महिलाओं को पूरी तरह से पुरुषों का सहकारी सहचारी सहगामी समझते हुए उनका सर्वदा और सर्वत्र सम्मान का संकल्प करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाए।

मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ ।

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