वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
प्रस्तुति – डा. महेंद्र शर्मा।
हरियाणा की राजनीति पर विशेष।
पानीपत : राजनीतिज्ञ अब भूल जाएं कि उनके किसी राजनैतिक छोड़कर दूसरे दल में जाने से जनमानस प्रभावित होगा, यह कतिप झूठ है। यह जो पब्लिक है सब जानती है। राज्य के एक सरकारी स्कूल में एक अध्यापक विद्यार्थियों को गणित पढ़ाते हुए समझा रहा था कि मानलों कि भरतु के पास चार रोटी हैं, उसमें से उस ने दो रोटी नाथू को दे दी और दो खुद खा गया तो बाकी क्या बचा … तो होनहार हरियाणवी बालक ने जवाब दिया … मास्टरजी ! सब्जी। यही स्थिति है हमारे प्रदेश की राजनैतिक हालात की।
भारत की राजनीति में जहां क्षेत्रीय, जातिगत, आर्थिक और सामाजिक विषमता और विविधता है जिस का पार पाना बहुत कठिन है वहीं आज की राजनीति में अब ऊंट किस करवट बैठेगा नामक लोकोक्ति भी अपना अर्थ खो बैठी है, क्योंकि अब सब जानते है ऊंट वहीं बैठेगा जहां कोई उसकी राजनैतिक क्षुधा को शान्त करेगा। हरियाणा प्रदेश तो शुरू से ही गठन के दिन से राजनीति में आयाराम गयाराम के नाम से प्रसिद था, चर्चा को यहीं से प्रारंभ कर देते हैं कि कांग्रेस के राज्याध्यक्ष श्री उदयभान के पूज्य पिता श्री गयालाल ने एक ही दिन के तीन प्रहरों में तीन राजनैतिक दलों में आस्था बदली थी। हरियाणा के गठन से यह स्थिति यथावत बनी हुई है, उस समय राव वीरेंद्र सिंह पंडित भगवत दयाल, चौधरी भजन लाल चौधरी देवीलाल तथा पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसी लाल आदि थे। श्री बंसी लाल ने पंडित अटल बिहारी वाजपाई के साथ हरियाणा विकास पार्टी बना कर राजनैतिक गठबंधन किया था। यह कितनी राजनैतिक विडंबना है कि गत विधान सभा में पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी ओम प्रकाश चौटाला जी की पुत्रवधु ने चुनाव से पूर्व भाजपा को खूब खरी खोटी सुनाई और फिर परिणामों के बाद अपने पुत्र को इनके संग राजसत्ता में भागीदारी करने का आशीर्वाद भी दे दिया।
पूरे भारत का यह राजनीतिक इतिहास है कि जहां जहां भी राजनैतिक असंतुष्टता हुई वहीं वहीं क्षेत्रीय दल बन गए और कुछ समय तक सत्ता का रसवादन करते करते वक्त की आगोश में समा कर इतिहास बनते गए। दूर जाने की आवश्यकता नहीं है चौधरी बंसी लाल और चौधरी भजन लाल चौधरी देवीलाल द्वारा बनाई गई क्षेत्रीय राजनैतिक पार्टियां अब कहां है यह किसी को ज्ञात नहीं और ऐसा करने वाले नेताओं ने हो दूसरे नेताओं की अपेक्षा अपना अस्तित्व बचाए और बनाए रखने के लिए राजनैतिक भगदड़ मचाई हुई है। जहां आजकल भिवानी में राजनैतिक उठापटक हो रही है वहीं इस चुनाव हिसार में चौधरी देवीलाल के परिवार को आपस में लड़वा कर परिवारिक राजनीति को समाप्त करवा दिया। यह भी सत्य है कि उन दिवंगत राजनेताओं का कुछ न कुछ अस्तित्व अवश्य था लेकिन उनके पूत सपूत तो उन्हीं के नाम को भुना रहे हैं … आखिर ऐसा कब तक चलेगा। इन नेताओं को भी अंदर खाने पता है की जनाधार क्षीण होता जा रहा है, जिन के संग मिल कर यह सत्ता का रस पीते हैं वह भी इन को अपने यहां शामिल करके इनकी जड़ें काट कमजोर करने लगते हैं और धीरे धीरे इस तरह से यह राजनैतिक नेता गर्त में समा जाएंगे। आज समाचार पत्रों में भिवानी का राज्यपरिवार कांग्रेस छोड़ गया, यह एक सामान्य समाचार है जिसमें सुख और दुख की दोनों बातें हैं, कांग्रेस के एक सुख की बात तो यह है कि आस्तीन से सांप निकल गया, कांग्रेस में अंतर्दलगत राजनीति में विपक्ष स्वयं समाप्त हुआ और दुख की बात यह है कि जहां इन नेताओं का पदार्पण होगा वहां पहले से भाजपा सांसद है इनको कितना राजनैतिक लाभ होगा, इस पर चर्चा करें तो अधिक से अधिक इनको इन के राजनैतिक प्रभावक्षेत्र से विधायक की टिकट मिल जाएंगी, संभवतः जीत भी जाएंगे लेकिन जिस घोड़े की सवारी स्वीकार की है उस की दस में से पांच टांगे तो रही नहीं। इसलिए हरियाणा में यह दो टांगों वाला घोड़ा कितना आगे भागेगा या फिर से खड़ा होने में कितना सफल होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है। यदि आज हरियाणा में विधान सभा चुनाव हो जाएं तो बड़ी मुश्किल से 18/20 का आंकड़ा बनता है। कांग्रेस बूढ़ी हुई है कोई संशय नहीं , इस को युवा बनाने के लिए नेताओं को संयम के साथ जीवंत रखने के प्रयास भी जारी रखने होंगे। ऐसा नहीं है यह समझा जाए कि कांग्रेस का अस्तित्व समाप्त हो रहा है ऐसा नहीं है। उन लोगों से ही प्रश्न है जो यह कहते हैं कि कांग्रेस में ऐसा कौन है जो देश को संभाले, उनके साथ भी आज भी वही व्यक्तिवाद जुड़ गया है जो कांग्रेस में है , उनके पास जो नेतृत्व आज है कल क्या होगा और कौन नेतृत्व करेगा … एक यक्ष प्रश्न है, वहां भी शून्य है। अब माहौल ऐसा नहीं है कि सोशल मीडिया पर कांग्रेस और उसके नेतृत्व को घायल करने का जो पिछले दस वर्षों से प्रयास हो रहा था वह अब बहुत हद तक उलट चुका है। सरकारी नियंत्रण के संचार माध्यमों (गोदी मीडिया) पर अब जनता का विश्वास नहीं रहा। टी वी कल्चर में लोगों ने समाचार सुनना बंद कर यूट्यूब को अपना लिया है जहां से सत्य का पता चलता है। यह इसी सत्य का ही प्रमाण है कि एनडीए की सीट्स कम हुई है और यूपीए की सीटें बढ़ी हैं नहीं हर ओर शोर मचा रखा था अब की बार … जितना शोर मचा रखा था उस संख्या में कमी क्यूं आई.. उन लोगो से रह भी प्रश्न है कि आज अगर किसी के पिता का देहांत हो जाए तो क्या उसकी धर्मपत्नी सती हो जाती है और बच्चे अनाथालय भेज दिए जाते है। दर असल कांग्रेस मरी नहीं है आहत है इस प्रकार के सत्ता सुख भोगी नेताओं से … इस पीड़ा और त्रासदी से उबरने के लिए इस प्रकार से समय लगेगा जिस प्रकार से आज का जन्मा बालक व्यस्क होने में समय लेता है। फलों की रेहड़ी पर बिकने वाले अंगूरों के गुच्छों के अंगूरों की कीमत खुले बिखरे दानों से बेशक ज्यादा होती है लेकिन यदि उस बिखरे हुए दानों को पुनः बो दिया जाए तो अंकुरित होने पर वह भी गुच्छे बन कर उबरेंगे और अपनी कीमत तय करवा लेने में सक्षम हो जाएंगे लेकिन जन्म से व्यस्क बनने तक तो उन दानों का पालनपोषण करना ही पड़ेगा। जिस दिन बल्कि जवान हो कर आएगा फिर उस का परिणाम देखना , सत्ताधारी लोग भी इस प्रयास में है कि इस बालक को युवा ही न होने दिया जाए। अब यह हमारा दायित्व है कि हम इस बालक को संरक्षण दे कर जीवित रखें, इस ऊंट का जो महत्व और राजनैतिक महत्वकांक्षा है वह सब को ज्ञात हो चुकी है कि भिवानी में कांग्रेस को जानबूझ कर हरवाया गया लेकिन नेताओं को बूढ़ी होती हुई कांग्रेस में भविष्य नज़र नहीं आता तो हरियाणा में युवा भाजपा भी संसद की आधी सीटें हार चुकी है …उस दल में इनका भविष्य कितना सुरक्षित है, यह तो विचारणीय बिंदु रहेगा ही। चार रोटियों +जनाधार) के बंटने के बाद केवल सब्जी (महत्वकांक्षा ) ही शेष बची है।
डॉ महेन्द्र शर्मा “महेश”
पानीपत।