सचित्र,स्मृति दिवस 14 जनवरी पर विशेष, स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन से शिक्षाविद्द, साहित्यकार, काव्य लेखन में अनूठी छाप छोड़ गए राज धरणी सागर

सचित्र,स्मृति दिवस 14 जनवरी पर विशेष, स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन से शिक्षाविद्द, साहित्यकार, काव्य लेखन में अनूठी छाप छोड़ गए राज धरणी सागर।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 9416191877

सुप्रसिद्ध इतिहासकार, साहित्यकार, विश्लेषक के साथ-साथ कई महान किरदार निभाकर गए  राज धरणी सागर।
महान शिक्षाविद- महान लेखक- महान साहित्यकार श्री “राज धरणी सागर” समाज उत्थान के लिए हमेशा रहे समर्पित।

चंडीगढ : महान क्रांतिकारी परिवार में जन्मे स्व0 श्री राजधरणी “सागर” को अध्यापन-लेखन-काव्य-उपन्यास का अद्भुत संगम कहें तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। देश की आजादी से पूर्व मलेर कोटला (पँजाब) में 14 जनवरी को जन्मे स्व0 श्री “सागर” को आज का दिन स्मृति दिवस के रूप में समर्पित है। श्री “सागर” को देशभक्ति उनके फूफा अमर शहीद डॉ0 कालीचरण शर्मा (लुधियाना), माता कमला धरणी व पिता शामलाल धरणी से बचपन के ही संस्कारों में मिली। परिवार के बलिदान और कुर्बानियों की फेहरिस्त इतनी लंबी है कि पढ़ने वाले की आंखें नम ना हो, ऐसा हो नहीं सकता। लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज के वक्त इनकेे फूफा कालीचरण शर्मा की एक पुत्री राज भी लाठियों के कारण शहीद हुई थी और उनके नाम पर ही श्री धरनी का नाम बुजुर्गों ने रखने का फैसला लिया था। आजादी के स्वतंत्रता संग्राम में फूफा कालीचरण शर्मा ने 7 बच्चे शहीद करवा दिए, वहीं श्री धरनी के माता-पिता भी दर्जनों बार जेलों में गए। बहुत से आंदोलनों में अंग्रेजी शासन काल की पुलिस के साथ दो-दो हाथ भी हुए। स्वतंत्रता सेनानियों के इस परिवार का पुत्र श्री राज धरनी का जीवन काल भी संघर्ष करते हुए बीता। अध्यापक की ड्यूटी के वक्त वह समय-समय पर सरकार द्वारा थोपे गए बहुत से फैसलों के खिलाफ नेतृत्व की भूमिका में खड़े नजर आए। बंसीलाल कार्यकाल के दौरान हुए टीचर आंदोलन में सख्त कार्रवाई के आदेशों की अनदेखी करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसीलाल को उन्होंने काले झंडे दिखाए।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार, साहित्यकार, लेखक, विश्लेषक व काव्य संग्रह में अमिट छाप छोडने वाले राजकुमार धरणी (जिनका साहित्यक नाम राज धरणी सागर था) की आज 84 वी जन्म तिथि रूपी स्मृति दिवस है। राजकुमार धरणी का निधन 74 वर्ष की आयु में पानीपत में हुआ था। हरीयाणा शिक्षा विभाग में बतौर एसएस के टीचर रहे स्वर्गीय राजकुमार धरणी उप प्रधानाचार्य पद से रिटायर हुए थे। नौकरी के दौरान भी समाज के उत्कृष्ट – उत्थान के कार्यों में अग्रिम पंक्ति में खड़े होने वाले श्री धरनी ने पंजाब केसरी में अमर शहिद लाला जगत नारायण के सानिध्य में उनके कॉफ़ी लेख, कहानिया, काव्य प्रकाशित हुए। सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध अपनी कलम के माध्यम से आवाज उठाते हुए वह उन दिनों पंजाब केसरी में चलायी जाने वाली तरुण संगम व वीर प्रताप संस्था के साथ-साथ बालो -उद्द्यान के हरियाणा – पंजाब – हिमाचल के सयोंजक के रूप में संचालन करते रहे व उस दौरान यह संस्थाएं इनके मार्गदर्शन में जनचेतना पैदा करने का माध्यम भी बनी।
उत्तर भारत की बड़ी पहचान बने बहुत से साहित्यकार -पत्रकारों  के लिए आदर्श है  “राज धरणी सागर”
मित्रों के लिए एक विशाल छायादार पेड़ से कम नहीं थे  राज धरनी
जीवन के मूल्यों से समझौता ना करने वाले श्री धरनी ने गलती पर मित्रों का भी कर दिया था त्याग।
परिवार और समाज को संतुलित ढांचे में पिरोकर कदम बढ़ाने वाले श्री धरनी हमेशा समाज के लिए ही नहीं बल्कि अपने साथियों के लिए कभी आदर्श से कम नहीं रहे। उत्तर भारत के आज एक बड़ी पहचान बने हुए बहुत से साहित्यकार व पत्रकार उनके सानिध्य में आगे बढ़ना सीखें। परिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वहन के साथ वह दोस्तों को लेकर भी हमेशा गंभीर रहे। मित्र और साथी उन्हें एक विशाल पेड़ के रुप में महसूस करते थे। किसी भी प्रकार की दिक्कत- परेशानी आने पर एक मजबूत दीवार की तरह वह हमेशा ना केवल खड़े नजर आए, बल्कि कुछ मौकों पर तो मित्र की गलती पाने पर उन्होंने मित्र का भी बहिष्कार (त्याग) करने से परहेज नहीं किया। बेहद सुलझे हुए श्री धरनी घर-परिवार में हमेशा समाजवाद के पक्षधर रहे। जीवन के मूल्यों से कभी कोई समझौता ना करने वाले श्री धरनी ने कभी भी परिवार को किसी दबाव में नहीं रखा। सोसाइटी के प्रति निस्वार्थ भाव रखने वाले श्री धरनी की कर्मभूमि रही। अमृतसर के हिंदू कॉलेज से शिक्षा प्राप्त करने वाले श्री धरनी की अमिट छाप अमृतसर में भी रही यह कहें तो गलत नहीं होगा। अमृतसर की भूमि से निकली बहुत सी महान हस्तियां भी ना केवल उनसे प्रभावित रही बल्कि समय-समय पर उनका मार्गदर्शन भी प्राप्त करती रही। महान अभिनेता – नेता सुनील दत्त का भी मार्गदर्शन श्री धरनी को प्राप्त हुआ और समय-समय पर पारिवारिक कार्यक्रमों में आना जाना रहा। लेखन की दुनिया के अलावा बहुत से विकल्प श्री धरनी के पास मौजूद थे, लेकिन हमेशा समाज सेवा के निस्वार्थ भावों से लवरेज रहे धरनी ने लेखन की दुनिया को सर्वोपरि माना। बुजुर्ग अवस्था में भी श्री धरनी अपना खाली वक्त केवल समाज हित के कार्यों या फिर लेखन में गुजारते रहे।
सर्वधर्म समभाव की विचारधारा का पाठ पढ़ाने वाले पिता का हमेशा मिला मार्गदर्शन : चंद्रशेखर धरणी
सच्चे मित्र जैसे थे मेरे लिए मेरे पिता : चंद्रशेखर धरणी।
आज उनके पुत्र चंद्रशेखर धरनी भी उनके संस्कारों और विचारों के प्रकाश से समाज को रोशन कर रहे हैं। पत्रकारिता के दुनिया में एक बड़ी पहचान चंद्रशेखर धरनी ने समृति दिवस पर बड़े नम भावों से पिता को याद करतेेेे हुए बताया कि जिस वक्त देश बेहद गरीबी और अनपढ़ता के दौर से गुजर रहा था, शिक्षा के ज्यादा साधन उपलब्ध ना होने केे बावजूद उनके पिता वेल क्वालिफाइड थे। ट्रिपल एम ए (पोस्ट ग्रेजुएट) के साथ पंजाबी में ज्ञानी की डिग्री प्राप्त करना एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। जातिवाद की मानसिकता से ग्रसित समाज में हमेशा सर्वधर्म समभाव का पाठ पढ़ाने वाले उनके पिता का सम्मान और संबंध हर जाति-धर्म के लोगों के साथ था। उन्होंने परिवार पर भी कभी कोई फैसला जबरदस्ती नहीं थोपा। पुत्र चंद्रशेखर धरनी ने बताया कि दसवीं की शिक्षा प्राप्त करने तक हमेशा पिता ने उन्हें सख्त मार्गदर्शन दिया, लेकिन दसवीं के बाद फ्री हैंड छोड़ते हुए एक सच्चा मित्र उन्होंने अपने पिता में देखते उनसे हमेशा अच्छा मार्गदर्शन प्राप्त किया। हमेशा समाज को सुशिक्षित- समृद्ध और सुदृढ़ बनाने के विचार रखने वाले उनके पिता हमेशा समाज के हर वर्ग को ऊंचा उठाने की सोच रखते थे। उसी के फलस्वरुप रिटायरमेंट के बाद भी उन्होंने पानीपत के कच्चा कैंप में फ्री शिक्षा प्रदान करने हेतु एक स्कूल का संचालन किया। जिसमेंं ना केवल शिक्षा बल्कि काफी-किताबें भी बच्चोंं को पिता की तरफ से निशुल्क वितरित की जाती थी।
स्व. राज धरणी सागर साहित्य का एक अद्भुत कुंज थे। समय-समय पर अपनी लेखनी के माध्यम से जहां इन्होंने समाज को मार्ग प्रशस्त किया, वहीं शिक्षाविद् होने के नाते सेवानिवृति के बाद बच्चों को साक्षर बनाने के लिए निःशुल्क स्कूल चलाना इनका एक ऐतिहासिक व अद्भुत कदम था। सागर ने सेवानिवृति उपरांत मिले धन को अपने परिवार में ना लगाकर गरीब बच्चों को साक्षर करने में लगाया। राजकुमार धरणी ने अधिकांश सेवाकाल ग्रामीण आँचल में बिताया। उन्होंने अध्यापक के आदर्श को चरितार्थ किया। वे सरलता, त्याग, सादगी व समाज सेवा में समर्पित रहे। उन्होंने सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अपनी लेखनी के माध्यम से चेतना लाने के अथक प्रयास किये।—अनिल विज (गृह व स्वास्थ्य मंत्री, हरियाणा सरकार, चंडीगढ़)
स्वतंत्रता सेनानी शामलाल धरणी के ज्येष्ठ सुपुत्र राजकुमार धरणी ने पानीपत, मलेर कोटला व अमृतसर में शिक्षा लेेने के बाद 1966 में हरियाणा गठन के बाद हरियाणा के अंदर शिक्षा विभाग में बतौर एसएस मास्टर सरकारी नौकरी में कदम रखा था। वे पंजाब के अमर शहीद डॉ0 कालीचरण शर्मा के दोहते थे। राजकुमार धरणी जिनका साहित्यक नाम राज धरणी सागर रहा ने 40 के करीब उपन्यास लिखे जो विभिन्न दैनिक समाचार पत्रों में क्रमवार प्रकाशित होते रहे। सात हजार से अधिक समकालीन कविताएं, अनेकों आलेख लिखे, जो कि विभिन्न समाचार पत्रों मे प्रकाशित होते रहे। हरविन्दर कल्याण (भजपा विधायक, घरौंडा)
प्रस्तुति-चंद्रशेखर धरणी

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