7वें दिन राजा परिक्षित के शरीर में से एक ज्योति प्रकट हुई और महाज्योति के साथ मिल गई:कुलभूषण गर्ग

7वें दिन राजा परिक्षित के शरीर में से एक ज्योति प्रकट हुई और महाज्योति के साथ मिल गई:कुलभूषण गर्ग

फिरोजपुर 03 मार्च 2023 [कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता]:=

श्री सनातन धर्म रामायण अखंड पाठ मंडली एवं धर्मार्थ औषधालय (रजिस्टर्ड) की ओर से श्री धूमि जी महाराज की 76वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आज सातवें और अंतिम दिवस की कथा मे स्वामी आत्मानंद पुरी जी महाराज के आशीर्वाद और प्रेरणा से कथा करते हुए कुलभूषण गर्ग ने बताया कि गोपी प्रेम की कथा उद्धव जी के प्रसंग के साथ समाप्त हुई।
श्री कृष्ण जी ने जरा संघ को सत्रह बार पराजित किया तो वह अठारहवीं बार कालयवन को साथ लेकर आया। कालयवन पर मुचुकुंद की दृष्टि पढ़ते ही कालयवन जलकर भस्म हो गया।
श्री कृष्ण जी और रुकमणी जी का विवाह मार्गशीर्ष मास की पंचमी को हुआ।
अपनी पत्नी सुशीला के अत्याग्रह के कारण सुदामा जी श्री कृष्ण जी से मिलने द्वारिका जाने को तैयार हुए।
द्वारपालो ने श्री कृष्ण जी को बताया कि आपका मित्र सुदामा आपसे मिलने आया है, तो सुदामा शब्द सुनते ही भगवान द्वार की ओर दौड़े।
कृष्ण जी ने अपने अश्रुजल से सुदामा के चरण धो दिए। विधाता ने सुदामा जी के भाल पर लिखा था श्रीक्षय। जब श्री कृष्ण जी उनके भाल पर तिलक करने लगे तो उन्होंने विधाता के लेख को उल्टा कर दिया– यक्ष श्री। एक मुट्ठी भर तण्डुल के बदले प्रभु ने समग्र द्वारिका का ऐश्वर्या सुदामा के घर भेज दिया।
दत्तात्रेय जी ने 24 गुरु धारण किए। दीक्षा- गुरु एक होता है किंतु शिक्षा-गुरु अनेक हो सकते हैं।
आगे भगवान् ने उद्धव जी को भिक्षुगीता का उपदेश दिया। सुख- दुख तो मन की कल्पना है। श्री कृष्ण जी ने उद्धव जी को अपनी चरणपादुका दी। उद्धव जी बद्रिकाश्रम आए। उनको सद्गति मिल गई‌।
फिर यादवों के विनाश की कथा भी सुनाई।
शुकदेवजी ने राजा परीक्षित को बताया कि कलियुग के अपलक्षण अनेक हैं। किंतु श्री कृष्ण का कीर्तन करने से सभी दोषो से, पापों से छूटकर प्रभु को पाया जा सकता है।
शुकदेवजी राजा परीक्षित से कह रहे हैं कि आज तक्षक नाग तुम्हें डसेगा। वह तुम्हारे शरीर को मार सकेगा, आत्मा को नहीं। तुम्हारी आत्मा तो परमात्मा से जा मिलेगी। तुम शरीर से भिन्न हो। आत्मा परमात्मा का अंश है। तक्षक- काल भी श्री कृष्ण का ही अंग है। शरीर नाशवान् हैं,आत्मा तो अमर है। जब तक मैं यहां हूं तक्षक नहीं आ पायेगा। सो यदि कुछ और सुनने की इच्छा हो तो बताओ।
परीक्षित ने कहा, महाराज! आपने मुझे व्यापक ब्रह्मा के दर्शन कराये हैं सो मैं निर्भय हो गया हूं। शुकदेव जी कहने लगे हे राजन् तुम्हारे साथ-साथ मैं भी कृतार्थ हो गया क्योंकि मुझे भी कथा-श्रवण का लाभ मिला है। शुकदेव जी ने जाने की अनुमति चाही तो राजा ने उनकी पूजा करने की इच्छा व्यक्त की।
राजा ने शुकदेवजी की पूजा की तो उन्होंने राजा के मस्तक पर अपना वरद्हस्त पधराया, तो राजा परीक्षित के शरीर में से एक ज्योति प्रकट हुई और महा ज्योति के साथ मिल गई।
गुरुदेव शुकदेव जी अन्तर्धान हो गए।
कथा श्रवण के समय वक्ता- श्रोता से जाने अनजाने कुछ दोष हो जाने की संभावना होती है।
अतः तीन बार श्री हरये नमः इस प्रकार बोलो। ऐसा जप करने से सभी दोष जल जाएंगे।
अंत में,जिनका नाम संकीर्तन सभी पापों का नाश करता है और सभी दुखों को शांत करता है उस परमात्मा को, श्रीहरि को हम सब मिलकर प्रणाम करें।
हरे राम हरे राम,
राम राम हरे हरे।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण,
कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
आज की पूजा एवं ज्योतिप्रज्वलित डॉ रोहित गर्ग और सुनील गोयल ने करवाईं।

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