फिरोजपुर छावनी में आयोजित भागवत कथा के चौथे दिन श्री कुलभूषण गर्ग ने कथा में बताया कि हिरण्यकश्यप के राक्षस होने पर भी उसका पुत्र प्रह्लाद महान भगवद् भक्त हुआ

फिरोजपुर छावनी में आयोजित भागवत कथा के चौथे दिन श्री कुलभूषण गर्ग ने कथा में बताया कि हिरण्यकश्यप के राक्षस होने पर भी उसका पुत्र प्रह्लाद महान भगवद् भक्त हुआ

फिरोजपुर 28 फरवरी [कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता]:=

महाशिवरात्रि पर्व और भगवान कृष्ण जी का जन्मोत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया गया
फिरोजपुर छावनी में आयोजित भागवत कथा में चौथे दिन स्वामी आत्मानंद पुरी जी के आशीर्वाद और प्रेरणा से कुलभूषण गर्ग ने कथा करते हुए बताया की हिरण्यकश्यप राक्षस होने पर भी उसका पुत्र प्रह्लाद महान भगवद् भगत हुआ। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु जी को अपना शत्रु मानता था। प्रह्लाद जी ने अपने पिता से कहा कि मेरे भगवान तो सर्वत्र हैं, मेरे प्रभु तो सर्व व्यापक हैं वह मुझ में है और आप में भी हैं, तभी तो आप बोल पाते हैं। हिरण्यकश्यप क्रोधित होकर कहने लगा तेरे भगवान यदि सर्वत्र हैं तो फिर इस स्तम्भ में उसका दर्शन क्यों नहीं हो रहा है? क्या तेरे भगवान स्तम्भ में हैं? प्रह्लाद जी ने कहा-जी हां, मेरे प्रभु इसमें भी हैं। हिरण्यकश्यप कहने लगा कि मैं इस स्तम्भ को तोड़कर विष्णु की हत्या करूंगा,और वह तलवार लेकर चिल्लाने लगा-बता, वह तेरा विष्णु कहां हैं,? प्रह्लाद जी ने कहा वह इसी स्तम्भ में विराजमान हैं।और हिरण्यकशयप ने क्रोधावेश में उस स्तम्भ पर तलवार का प्रहार किया, तुरंत ही श्री नृसिंह भगवान ‘गुरु’-‘गुरू’ बोलते हुए उस स्तम्भ में से प्रकट हुए। उन्होंने हिरण्यकश्यप को गोद में बिठा लिया और कहा कि यह न दिन है न रात है,न धरती है न आकाश है। घर में भी नहीं, बाहर भी नहीं किन्तु देहली पर तुझे मारूंगा। अस्त्र या शस्त्र से नहीं, नाखून से मारूंगा, और भगवान ने उस असुर को नाखून से चीरकर मार डाला। नृसिंह भगवान वैशाख शुक्ल चतुर्दशी के दिन काष्ठस्तम्भ में से प्रकट हुए थे।
भगवान ने गजेंद्र हाथी का भी उद्धार किया था, जब जल मे मगरमच्छ ने गजेंद्र का पाव पकड़ लिया था तो परमात्मा ने अपने सुदर्शनचक्र से मगरमच्छ का वध किया था।
और जब समुद्र मंथन के समय अमृत निकला तो विष्णु भगवान जी ने मोहिनी रूप धारण करके देवताओं को अमृत पान करवाया, उस समय असुर दैत्य राहु, सूर्य और चंद्रमा के बीच आकर बैठ गया उसने ने भी अमृतपान किया ही था कि भगवान ने सुदर्शन चक्र चला कर उसका सिर उड़ा दिया।
वामन भगवान ने राजा बलि का सारा राज्य अपने तीन पग में ही नाप लिया था और उसे पाताल के राज्य में भेज दिया और भगवान उसके द्वारपाल बन गए।और लक्ष्मी जी ने राजा बलि को अपना धर्म का भाई बना लिया। और सावन मास में पूर्णिमा के दिन राजा बलि को राखी बांधी तो राजा बलि ने कुछ मांगने को कहा तो लक्ष्मी जी ने द्वारपाल जोकि विष्णु जी थे उन्हें ही मांग लिया। और नारायण जी को मुक्त कराया।
धरती पर जब दैत्यों का उपद्रव बढ़ गया तो ब्रह्मादि देव ब्रह्मलोक में नारायण के पास आए और प्रार्थना करने लगे कि हे नाथ अब तो कृपा कीजिए, आप अब अवतार लीजिए। भगवान ने ब्रह्मा जी से कहा कुछ ही समय में मैं वसुदेव- देवकी के घर प्रकट होऊगा और परमात्मा ने भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि के समय कमलनयन चतुर्भुज भगवान बालक का रूप लेकर वसुदेकी- देवकी के समक्ष प्रकट हुए। और कारागृह के सब बंधन टूट गए और वसुदेव जी कारागृह में से बाहर आए और वसुदेव जी ने गोकुल में श्री कृष्ण जी को यशोदा की गोद में रख दिया और बालिका स्वरूप योगमाया को उठा लिया और वापस कारागृह आ पहुंचे।
सुनंदा को यशोदा की गोद में बालकिशन की झांकी हुई तो वह दौड़ती हुई गौशाला में भाई को खबर करने आई, भैया -भैया लाला भयो है। आनंद ही आनंद हो गया। नंद बाबा ने 2 लाख गायों का दान किया। गांव की सभी गोपियां नाचने लगी। नंद घर आनंद भयो। जय कन्हैया लाल की।
मालूम हो कि आज की पूजा श्रीमति सरोज गर्ग एवं श्रीमति रतना गर्ग और विशाल गुप्ता ने करवाई और ज्योति प्रज्वलित चिरंजीव हनुत गुप्ता और चिरंजीव आधावन गर्ग ने की।

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