मुहर्रम के मौके पर चांद रात से ही धार्मिक रसुमात शुरू हो गईं है जो अब तक जारी है। इस माह में हज़रत इमाम हुसैन ओर उनके एहले खानदान की शहादत हुई थी इस्लाम को बचाने के लिए हजरत इमाम हुसैन ने यजीद से जंग की थी इस जंग में हजरत इमाम हुसैन के खानदान के बड़े छोटे लोग मिलाकर करीब 72 लोग थे जिन्होंने भूखे-प्यासे जंग की जिसमें उनका सारा खानदान शहीद हो गया उन्हीं की याद में मुहर्रम में यह सभी रस्मे अदा की जाती हैं जिनमे से एक रस्म हाइदोस की है ये हिंदुस्तान में सिर्फ अजमेर में ही अदा की जाती है हाइदोस मोहर्रम की 9 तारीख की रात ईशा की नमाज के बाद शुरू होता है ओर मोहर्रम की 10 तारीख को बड़ा और हाइदोस के बाद डोले की सवारी होती है मुस्लिम समाज के अंदरकोट में हाथों में नंगी तलवारें लिए भूखे-प्यासे यह अकीदतमंद नामे हुसैन पर ढाई हाथ खेलकर हजरत इमाम हुसैन को याद करते हैं और शहीदाने कर्बला को सलातो सलाम पेश करते हैं तलवारबाजी के इस खेल को जिला प्रशासन की निगरानी में खेला जाता है पुलिस के आला अधिकारी सामने बैठे रहते हैं तोपों की सलामी के बाद यह हाइदोस की रस्म की शुरुआत होती है सोसाइटी पंचायत अंदर कोटयान के लोग ही यह रस्म अदा करते हैं खेल में घायल हुए लोगों के इलाज के लिए भी डॉक्टरों का इंतजार रहता है।
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