दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वार श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन साध्वी भाग्य श्री भारती ने बताया कि भगवान को पहचानने के लिए दिव्य दृष्टि की जरूरी होती है जैसा कि भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध के मैदान में अर्जुन को प्रदान की थी

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान द्वार श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन साध्वी भाग्य श्री भारती ने बताया कि भगवान को पहचानने के लिए दिव्य दृष्टि की जरूरी होती है जैसा कि भगवान श्री कृष्ण ने युद्ध के मैदान में अर्जुन को प्रदान की थी

साध्वी जी ने आगे महिलाओं से आग्रह किया कि आप अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें ताकि वह आगे चलकर एक श्रेष्ठ नागरिक बन सके

फिरोजपुर 27 सितंबर {कैलाश शर्मा जिला विशेष संवाददाता}=

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तृतीय दिवस साध्वी भाग्य श्री भारती जी ने कथा के माध्यम से बताया कि शिशुपाल भगवान श्रीकृष्ण को पहचान नहीं पाया उनके सामने उपस्थित होने पर भी उनकी लीलाओं की चर्चा सुनने के बाद भी अनेकों भक्तों का उनके प्रति आदर भाव देखने सुनने के बाद भी। केवल शिशुपाल ही नहीं बल्कि उस समय के अनेकों राजा भी भगवान श्रीकृष्ण को पहचान नहीं पाये तो क्या यदि आज भगवान हमारे सामने आ जाते तो हम भगवान को पहचान लेंगे? हमारे पास भगवान को पहचानने का क्या आधार होगा क्या उनकी बाहरी वेश भूषा? यदि हम ऐसा सोचते हैं तो इसका मतलब अभी तक हमने अपने धार्मिक ग्रंथों का सही ढंग से अध्ययन ही नहीं किया। क्योंकि बाहरी वेश भूषा तो कोई भी धारण कर सकता है। इसलिए भगवान को पहचानने के लिए आवश्यकता है उस दिव्य दृष्टि की जो दिव्य दृष्टि भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध के मैदान में अर्जुन को प्रदान की थी।
भक्त प्रह्लाद प्रसंग सुनाते हुए साध्वी जी ने बताया कि भक्त प्रह्लाद के जीवन में अनेकों ही संकट आए लेकिन वह अपने भकि्त पथ से विचलित नहीं हुए, क्योंकि उनका अपने श्री हरि पर अपने नारायण पर पूर्ण विश्वास था। यदि हम भी चाहते हैं कि हमारा भी विश्वास भक्त प्रह्लाद की भांति हो तो हमें भी आवश्यकता है उस ईश्वर को जानने की। आगे कथा सुनाते हुए साध्वी जी ने बताया कि भक्त प्रह्लाद के भीतर जो अद्भुत भक्ती बल था उसके पीछे की कही न कही उनकी मां के द्वारा दिए गए संस्कार थे , जिसने उन्हें एक महान भक्त बना दिया। इसलिए यह एक मां पर ही निर्भर करता है कि वह अपनी संतान को किस सांचे में ढालना चाहती है, क्योंकि संस्कार देने का शुभ विचार देने का जो समय है वह बाल्यावस्था ही होती है इसलिए आप अपनी संतानों को श्रेष्ठ संस्कार दे, ताकि वह आगे चलकर एक श्रेष्ठ नागरिक बन सके।

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