धर्म के 16 संस्कारों में से एक उपनयन संस्कार के अंतर्गत ही जनेऊ पहना जाता है : आचार्य लेखवार।
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जयराम विद्यापीठ में हुआ 71 ब्रह्मचारियों का जनेऊ धारण एवं उप नयन संस्कार।
जयराम विद्यापीठ में हुआ बसंत पंचमी के दिन गुरुकुल परम्परा के अनुसार ब्रह्मचारियों का जनेऊ धारण एवं उप नयन संस्कार।
कुरुक्षेत्र, 16 फरवरी :- जयराम संस्थाओं के परमाध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी की प्रेरणा से जयराम विद्यापीठ की यज्ञशाला में बसंत पंचमी के पावन अवसर पर गुरुकुल परम्परा के अनुसार 71 ब्रह्मचारियों का विधिवत मंत्रोच्चारण के साथ जनेऊ एवं उप नयन संस्कार हुआ। यह उप नयन संस्कार जयराम संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य रणबीर भारद्वाज तथा वेदाचार्य प. राजेश प्रसाद लेखवार शास्त्री द्वारा अन्य प्राध्यापकों के साथ पूरे विधिविधान के साथ किया गया। इस मौके पर ब्रह्मचारियों को गुरुजन द्वारा गायत्री मंत्र भी प्रदान किया गया। इस मौके पर विधिवत मंत्रोच्चारण के साथ यज्ञ भी किया गया जिसमें उप नयन संस्कार में शामिल होने वाले ब्रह्मचारियों ने गुरुजन के साथ आहुतियां डाली। आचार्य लेखवार ने उप नयन संस्कार का महत्व बताया कि यह संस्कार ब्रह्म (ईश्वर) और ज्ञान के पास ले जाता है। सनातन हिन्दू धर्म के 16 संस्कारों में से एक उपनयन संस्कार के अंतर्गत ही जनेऊ पहना जाता है जिसे यज्ञोपवीत संस्कार भी कहते हैं। इस संस्कार में मुंडन और पवित्र जल में स्नान अहम होते हैं। उन्होंने बताया कि हिन्दू धर्म को मानने वाले प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है कि जनेऊ पहने और उसके नियमों का पालन करें। आचार्य लेखवार ने बताया कि जनेऊ धारण करने के बाद ही शिक्षा ग्रहण करने वाले बालक तथा ब्रह्मचारी के दूसरे जन्म के साथ उस को यज्ञ तथा स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। उन्होंने बताया कि जनेऊ को संस्कृत भाषा में यज्ञोपवीत कहा जाता है। यह तीन धागों वाला सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। अर्थात् इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे। आचार्य लेखवार ने बताया कि जनेऊ त्रिमूर्ति ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक – देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक एवं सत्व, रज और तम के प्रतीक होते हैं। साथ ही ये तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों के प्रतीक है तो तीन आश्रमों के प्रतीक भी है। जनेऊ के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। अत: कुल तारों की संख्या नौ होती है। इनमे एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं। इनका मतलब है – हम मुख से अच्छा बोले और खाएं, आंखों से अच्छा देंखे और कानों से अच्छा सुने। जनेऊ में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्ध, काम और मोक्ष का प्रतीक है। ये पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों के भी प्रतीक है। इस अवसर पर ट्रस्टी के के कौशिक, सतबीर कौशिक,कर्मचारी रोहित , प्रवीण मिन्हास, राम जुआरी, कमल शर्मा, पुरुषोत्तम, रामपाल इत्यादि मौजूद रहे।
जयराम विद्यापीठ में जनेऊ एवं उप नयन संस्कार में शामिल होने वाले ब्रह्मचारी गुरुजन के साथ। जयराम विद्यापीठ में जनेऊ एवं उप नयन संस्कार में शामिल होने वाले ब्रह्मचारी यज्ञ में आहुतियां डालते हुए।