संस्कृतिनिष्ठ युवा ही राष्ट्र को अच्छी गति प्रदान कर सकते हैं : प्रो. राधेश्याम शर्मा।

संस्कृतिनिष्ठ युवा ही राष्ट्र को अच्छी गति प्रदान कर सकते हैं : प्रो. राधेश्याम शर्मा।

हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
दूरभाष – 94161- 91877

‘‘भारत का भविष्य : संस्कृतिनिष्ठ युवा’’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन।

कुरुक्षेत्र, 14 फरवरी :- विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान द्वारा ‘‘भारत का भविष्य: संस्कृतिनिष्ठ युवा’’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। व्याख्यान में मुख्य वक्ता प्रो. डॉ. राधेश्याम शर्मा, पूर्व कुलपति, गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय हिसार व चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा रहे। संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने मुख्य वक्ता का परिचय कराते हुए बताया कि डॉ. राधेश्याम शर्मा नैक चेयरपर्सन के रूप में भारतवर्ष के अनेक महाविद्यालयों का मूल्यांकन कर चुके हैं तथा विभिन्न विश्वविद्यालयों की अनेक कमेटियों के सदस्य हैं। उन्होंने इंग्लैंड, अमेरिका, चीन, वियाना, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, हंगरी, हांगकांग तथा भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों में शोध-पत्र प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने अनेक बार राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान एवं पुरस्कार भी प्राप्त किए हैं। डॉ. रामेन्द्र सिंह ने कहा कि विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान संस्कृति के उन्नयन, उत्थान एवं प्रचार-प्रसार हेतु निरंतर कार्यरत है। इस हेतु संस्थान अनेक वर्षों से गतिविधियों का आयोजन करता आ रहा है। यह व्याख्यानमाला भी इसी कड़ी का एक भाग है। इस अवसर पर उनके साथ थानेसर के उपमंडल अधिकारी अनिल पिलानी भी उपस्थित रहे।
मुख्य वक्ता प्रो. राधेश्याम शर्मा ने कहा कि संस्कृति, संस्कार किसी भी देश की धरोहर हैं। हर पीढ़ी उसमें कुछ नयापन और कुछ पुराना जोड़ती है। यह समतुल्य भारत है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि आज का युवा सूचना प्रौद्योगिकी के साथ-साथ अपनी कला, संस्कृति और भाषा को भी साथ लेकर चलना चाहता है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति प्राचीन एवं समृद्ध संस्कृति है जो आदिकाल से वर्तमान तक और अनंतकाल तक भारत को जोड़े रखने की क्षमता रखती है। इस संस्कृति में अनेकता में एकता है। ग्रहणशीलता, लचीलापन और सहिष्णुता भी है। लोक एवं विश्व कल्याण की भावना भी है, संरक्षण के प्रति कटिबद्धता भी है। यह सही अर्थों में मानव संस्कृति है जिसका मूल आधार और उद्देश्य मानवता के सिद्धान्तों पर चलना है। प्राचीनकाल से आज तक अनगिनत आघातों के बावजूद आज भी अपनी सार्थकता को बनाए हुए है।
उन्होंने कहा कि भारत का भविष्य आज का युवा है। यदि युवा संस्कृतिनिष्ठ है, चरित्रवान है, नैतिकता मूल्यों का धारक है तो निःसंदेह भारत का भविष्य उज्जवल होगा। भारतीय संस्कृति में अनेक धर्म अस्तित्व में आए और इस संस्कृति का अभिन्न अंग बनते चले गए। उन्होंने कहा कि एक शिक्षक आदर्श शिक्षक कैसे बन सकता है, यह शिक्षकों को स्वयं विश्लेषण करना होगा, तभी हम आत्मनिर्भर भारत के लिए संस्कृतिनिष्ठ विद्यार्थी तैयार कर पाएंगे। उन्होंने युवाओं का आह्वान किया कि वे जिस भी स्थान अथवा कार्यस्थल पर हैं, भारत की संस्कृति और सभ्यता को लेकर दिशा, नई गति और नई प्रेरणा प्रदान करें। उन्होंने कहा कि शिक्षकों को इस प्रकार का प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए ताकि नई शिक्षा नीति को अक्षरशः लागू कर सकें। यह इसलिए भी आवश्यक है ताकि विद्यार्थी प्राथमिक शिक्षा से ही इंसान बने, उसमें संभावनाएं और संवेदनाएं हों, वह जिज्ञासा लेकर चले, शिक्षा नीति में ऐसे गुणों का समावेश होगा तो निश्चित रूप से वह भारत की सुरक्षा, भारत का कल्याण और भारत की उन्नति व प्रगति के बारे में भी विचार करेगा। वह किसी भी प्रकार से विध्वंसक नहीं हो सकता। वह समाज सर्वोपरि कार्य करे। उन्नत भारत के कल्याण में चाहे वह कृषि क्षेत्र हो, व्यापार, शिक्षा अथवा अन्य क्षेत्र, सभी में संस्कार और संस्कृति की आवश्यकता है। भारत युवा देश था, है और रहेगा क्योंकि संस्कृतिनिष्ठ युवा ही राष्ट्र को अच्छी गति प्रदान कर सकते हैं। संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह ने वक्ता एवं देशभर से जुड़े सभी श्रोताओं का धन्यवाद किया और सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना के साथ व्याख्यान का समापन हुआ।
व्याख्यान में संबोधित करते प्रो. डॉ. राधेश्याम शर्मा, पूर्व कुलपति, गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय हिसार व चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय सिरसा एवं परिचय कराते संस्थान के निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह।

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