बिहार: नवजात शिशुओं के सुरक्षित एवं रखरखाव से संबंधित संवेदीकरण कार्यशाला का आयोजन

नवजात शिशुओं के सुरक्षित एवं रखरखाव से संबंधित संवेदीकरण कार्यशाला का आयोजन:

-ज़िले में संस्थागत प्रसव के साथ ही नवजात शिशुओं के विकास में यूनिसेफ़ की भूमिका महत्वपूर्ण: डीडीसी
-नवजात शिशुओं को सुरक्षित देखभाल के लिए प्रसव पूर्व एवं प्रसव के बाद सावधानियां बरतने की होती है जरूरत: एसबीसी विशेषज्ञ
-सामुदायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में आशा की भूमिका महत्वपूर्ण: डॉ सरिता वर्मा

पूर्णिया, 11 अप्रैल।
नवजात शिशुओं को लेकर सामाजिक व्यवहार में बदलाव से संबंधित तीन दिवसीय संवेदीकरण कार्यशाला का आयोजन शहर के निजी होटल में किया गया। कार्यशाला का विधिवत उद्घाटन उप विकास आयुक्त मनोज कुमार, यूनिसेफ़ की एसबीसी विशेषज्ञ मोना सिन्हा, स्वास्थ्य विभाग की ओर से स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ सरिता वर्मा, अलाइव एंड थ्राइव की राज्य प्रमुख अनुपमा श्रीवास्तव एवं यूनिसेफ़ के स्थानीय सलाहकार शिव शेखर आनंद के द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। वहीं इस अवसर पर इनविजन के निसार अहमद, केयर इंडिया के डॉ देवब्रत महापात्रा, यूनिसेफ़ के देवाशीष घोष, डॉक्टर फॉर यू के राज्य कार्यक्रम प्रबंधक डॉ राहुल कुमार, जीविका के डीपीएम, आईसीडीएस की ओर से सीडीपीओ गुंजन मौली सहित जिले के सभी एमओआईसी, बीएचएम, बीसीएम उपस्थित थे।

-ज़िले में संस्थागत प्रसव के साथ ही नवजात शिशुओं के विकास में यूनिसेफ़ की भूमिका महत्वपूर्ण: डीडीसी
जिला उप विकास आयुक्त मनोज कुमार ने यूनिसेफ़ की ओर से जिला स्तरीय नवजात शिशु उत्तरजीविता परियोजना को लेकर सामाजिक व्यवहार में बदलाव से संबंधित संवेदीकरण कार्यशाला में स्वास्थ्य विभाग से जुड़े अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि पूर्णिया ज़िले में विगत 15-16 वर्षो के दौरान स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफ़ी बदलाव हुआ है। जिसमें यूनिसेफ़ सहित कई अन्य सहयोगी संस्थाओं का अहम योगदान रहा है। संस्थागत प्रसव के साथ ही नवजात शिशुओं के विकास को लेकर सरकार एवं स्वास्थ्य विभाग सार्थक प्रयास कर रहा है। जिसमें स्वास्थ्य विभाग, आईसीडीएस के साथ ही जीविका का भी सहयोग रहा है। प्रशिक्षण के दौरान काफ़ी संवेदनशील होकर अनुभव लेने की जरूरत होती है । क्योंकि प्रशिक्षित होने के बाद अपने-अपने स्वास्थ्य केंद्रों में सुधार करना होगा। तभी प्रशिक्षण को सफ़ल माना जायेगा। किसी भी कार्यक्रम को करने के साथ ही प्रसार प्रचार को लेकर उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य से संबंधित जब भी कोई कार्यक्रम हो उसके पहले प्रचार प्रसार करने की आवश्यकता होती है। जिसमें एमओआईसी की भूमिका सबसे अधिक होनी चाहिए।

-नवजात शिशुओं को सुरक्षित देखभाल के लिए प्रसव पूर्व एवं प्रसव के बाद सावधानियां बरतने की होती है जरूरत: एसबीसी विशेषज्ञ
यूनिसेफ़ बिहार की ओर से आई सामाजिक व्यवहार में बदलाव (एसबीसी) विशेषज्ञ मोना सिन्हा ने कहा कि नवजात शिशु मृत्यु दर को कम करने वाले प्रभावी उपायों के तहत, मातृ एवं नवजात शिशु देखभाल करना सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके लिए किए जाने वाले उपायों में मुख्य रूप से गर्भावस्था के दौरान समुचित देखभाल, प्रसव के दौरान एवं प्रसव के तुरंत बाद माता एवं नवजात शिशु की देखभाल और नवजात शिशुओं के जन्म के बाद शुरुआत के सप्ताहों में की जाने वाली सुरक्षित देखभाल के साथ ही मातृ एवं नवजात शिशुओं के सुरक्षित होने के लिए प्रसवपूर्व देखभाल करनी पड़ती है। इसके लिए टेटनेस टॉक्साइड के टीके, एनीमिया और रक्तचाप (हाइपरटेन्शन) का प्रबंधन, मातृत्व संक्रमण ,सिफलिस, मलेरिया, मातृत्व पोषण के साथ ही नवजात शिशुओं के जन्म की तैयारी करनी होती है।
सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में नवजात शिशुओं के घर पर सुरक्षित देखभाल के मूल सिद्धांतों और व्यवहारों की जानकारी होनी चाहिए। ताकि नवजात शिशुओं को किसी तरह की को परेशानी नहीं हो।

-सामुदायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में आशा की भूमिका महत्वपूर्ण: डॉ सरिता वर्मा
स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ सरिता वर्मा ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में संस्थागत प्रसव के बाद स्वास्थ्य लाभ लेने वाली महिलाओं को स्वास्थ्य से संबंधित परिवार नियोजन, केवल स्तनपान कराने, हाथ धोने और शिशुओं की देखभाल से संबंधित महत्वपूर्ण बातों को बार-बार प्रोत्साहित करने के साथ साथ सलाह भी दी जाती है। वहीं गर्भवती महिलाओं की स्वास्थ्य सुविधाओं में गुणवत्ता और सम्मानजनक देखभाल में सुधार करने के प्रयासों के लिए आशा कार्यकर्ताओं द्वारा नवजात शिशुओं वाले घर डोर टू डोर भ्रमण कर शिशु की देखभाल की जाती है। हालिया मूल्यांकन के आधार पर एएनएम और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की तुलना में आशा कार्यकर्ताओं द्वारा नवजात शिशुओं एवं माताओं के पास पहुंचने की संभावनाएं बहुत अधिक रहती हैं। क्योंकि आशा कार्यकर्ता सामुदायिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। नवजात शिशुओं एवं बच्चों के बीमार पड़ने पर सलाह लेने के लिए सबसे पहले आशा कार्यकर्ताओं से ही संपर्क किया जाता है। आशा को उस स्वास्थ्य तंत्र से सहयोग एवं मार्गदर्शन मिलता है, जो नवजात शिशु एवं बाल उत्तरजीविता के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं और अस्पताल भेजने में सहयोग के लिए स्वास्थ्य विभाग से रिश्ता होना अनिवार्य होता है।

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