पदम विभूषण स्वामी सत्यमित्रानन्द जी महाराज का सम्पूर्ण जीवन भारत एवं भारतीयता के लिए समर्पित था : डा. श्रीप्रकाश मिश्र।
हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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ज्योतिषपीठ बद्रिकाश्रम से संबद्ध आचार्यपीठ भानुपुरा के निर्वतमान जगद्गुरु शंकराचार्य पद्मभूषण स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज की चतुर्थ पुण्यतिथि के उपलक्ष्य मे मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा श्रद्धांजलि कार्यक्रम संपन्न।
मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज की चतुर्थ पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में कुरुक्षेत्र संस्कृत वेद विद्यलय के वैदिक ब्रम्हचारियों को वैदिक साहित्य, अंगवस्त्र एवं पाठ्य समग्री प्रदान कर सम्मानित किया गया।
कुरुक्षेत्र 25 जून : सनातन परंपरा के संतों में सहज, सरल और तपोनिष्ठ स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि का नाम उन संतों में लिया जाता है, जिनके आगे कोई भी पद या पुरस्कार छोटे पड़ जाते हैं। तन, मन और वचन से परोपकारी संत सत्यमित्रानंद आध्यात्मिक चेतना के धनी थे। उनका सम्पूर्ण जीवन भारत एवं भारतीयता के लिए समर्पित था। यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने ज्योतिषपीठ बद्रिकाश्रम से संबद्ध आचार्यपीठ भानुपुरा के निर्वतमान जगद्गुरु शंकराचार्य पद्मभूषण स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि जी महाराज की चतुर्थ पुण्यतिथि के उपलक्ष्य मे आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ स्वामी सत्यमित्रानंद के चित्र पर माल्यार्पण, पुष्पार्चन एवं दीप प्रज्जवलन से वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ हुआ। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा 29 अप्रैल, 1960 अक्षय तृतीया के दिन स्वामीजी ज्योतिर्मठ भानुपुरा पीठ पर जगद्गुरु शंकराचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए।
२६ वर्ष की अल्प वय में ही शंकराचार्य-पद पर अभिषिक्त होने के बाद दीन-दुखी, गिरिवासी, वनवासी, हरिजनों की सेवा और साम्प्रदयिक मतभेदों को दूर कर समन्वय-भावना का विश्व में प्रसार करने के लिए सनातन धर्म के महानतम पद को उन्होंने तृणवत् त्याग दिया।
डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा स्वामी सत्यमित्रानंद जी ने धर्मिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय-चेतना के समन्वित दर्शन एवं भारत की विभिन्नता में भी एकता की प्रतीति के लिए पतित-पावनी-भगवती-भागीरथी गंगा के तट पर सात मन्जिल वाले भारतमाता-मन्दिर बनवाया जो आपके मातृभूमि प्रेम व उत्सर्ग का अद्वितीय उदाहरण है। इस मन्दिर से देश-विदेश के लाखों लोग दर्शन कर आध्यात्म, संस्कृति, राष्ट्र और शिक्षा सम्बन्धी विचारों की चेतना और प्रेरणा प्राप्त कर रहे हैं। समन्वय भाव एवं भारतीय धर्म एवं संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए स्वामी जी विश्व के लगभग ६५ से अधिक देशों की यात्रा कई बार की। डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा स्वामी सत्यमित्रानंद जी भले ही हिंदू धर्म से जुड़े हुए संत थे, लेकिन उन्हें अन्य धर्मों के विषय में बहुत ज्ञान था। उनका मानना था कि अपने धर्म के प्रति गौरव की भावना और दूसरे धर्म के प्रति सहिष्णुता के सिद्धांत से विश्व में शांति आ सकती है। इसी दृष्टिकोण के अनुसार उन्होंने अपने हरिद्वार स्थित आश्रम का नाम समन्वय कुटीर रखा था। आध्यात्म जगत के बड़े हस्ताक्षर स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि छूआछूत के भी प्रबल विरोधी रहे। स्वामी सत्यमित्रानंद की धर्म, संस्कृति और लोक कल्याण से जुड़ी सेवाओं को देखते हुए ही केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया था। इस अवसर पर मातृभूमि सेवा मिशन द्वारा कुरुक्षेत्र संस्कृत वेद विद्यलय के वैदिक ब्रम्हचारियों को वैदिक साहित्य, अंगवस्त्र एवं पाठ्य समग्री प्रदान कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन डा. राजीव जी ने किया। आभार ज्ञापन आचार्य नरेश ने किया। कार्यक्रम का समापन शांतिपाठ से हुआ। कार्यक्रम में मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्यार्थी, ब्रम्हचारी, सदस्य एवं गणमान्य जन उपस्थित रहे।