हज के बाद जरूरी है पाक जिंदगी-मुफ्ती मोहम्मद आरिफ

हज के बाद जरूरी है पाक जिंदगी,,,,,,,मुफ्ती मोहम्मद आरिफ
अररिया
जिले के 229 से ज्यादा हाजियों ने हज का फर्ज अदा करने मक्का गए और अब हज अदा करने के बाद जिले का काफिला (जत्था) अपने घर वापस आने का सिलसिला शुरू हो कर आज अंतिम जत्था अररिया पहुंच कर संपन्न हो गया है। मिली जानकारी अनुसार जहां गया एयरपोर्ट में उतर कर सीधे अपने घर अररिया जिला वापस लौट गए हैं । वहीं घर लौटने पर उनके मिलने जुलने वालों में उनका स्वागत किया गया और उनसे जिले और गांव में अमन चैन के लिए दुआ करने की गुजारिश की जा रही है । मौके पर कुछ प्रमुख हाजियों में हाफिज कुदरत साहब, डा अब्दुल करीम साहब , अब्दुर रउफ साहब,आदि अपने अहलिया के साथ सकुशल अल्हमदुलिला घर पहुंच गए हैं। सभी हाजियों ने बताया कि अपने देश भारत और सऊदी अरब सरकार की अधिकारियों का सकारात्मक सहयोग रहा।किसी भी तरह की कोई परेशानी सफर ए हज पर नही हुई। अल्हमदुलिला सारे अरकान पूरा हुआ।अल्लाह हम सब की हज को कुबूल फरमाए आमीन। वही दूसरी ओर इस बाबत भरगामा स्थित मदरसा दारूल फैज ए रहमानी के संस्थापक नाजिम मुफ्ती मोहम्मद आरिफ सिद्दीकी साहब ने कहा कि कुरआन का असल रूप प्रायोगिक तौर पर सऊदी अरब में ही देखने को मिल जाता है । उन्होंने कहा कि एक हाजी को हज के बाद बहुत ही पाक जिंदगी , पाक साफ सुथरी और दीन पर अमल करके जिंदगी गुजारनी चाहिए, क्योंकि हज के बाद हाजी से हर कोई उम्मीद करता है कि उसके अंदर रूहानी इंकलाब आए। वह हज के बाद उसकी जिंदगी में बदलाव नुमाया होनी चाहिए। अगर कोई हाजी हज के बाद भी ऐसी जिंदगी गुजारता है, जिसमें दीन की पाबंदी ना हो ,तो लोग उसे बहुत खराब नजर से देखते हैं। जो शख्स हज जैसी बेहतरीन इबादत को जाय करता है,अल्लाह उसे भी जाए व बर्बाद कर देता है। इसलिए हज के बाद पाक जिंदगी बेहद जरूरी है। मुफ्ती मोहम्मद आरिफ सिद्दिकी साहब कहते हैं कि हाजी से अल्लाह ताला यह कहता है कि ए बंदे तूने अपना सबकुछ घर बार, वतन अपनी औलाद मेरी वजह से छोड़ा है, तू जो मांगेगा, मैं दूंगा। मक्का मुकर्रमा और मदीना मुनव्वरा में जगह-जगह फरिश्ते हाजियों का इस्तकबाल करते हैं। अल्लाह की रहमत है उन पर न्योछावर करते हैं। जब हाजी मक्का मुकर्रमा में बैतुल्लाह शरीफ का तवाफ (चक्कर ) लगाना करता है तो उस पर अल्लाह की खास मेहरबानी होती है ।यहां पर एक नमाज पढ़ने का सवाब 1लाख नमाज के बराबर होता है । दुनिया भर में इसके अलावा कोई अन्य पाक जगह नहीं है । जहां अल्लाह का घर है। हाजी जब हज के लिए एहराम (बिना सिले हुए कपड़े) बांधता है तो लब्बेक पढ़ता है और बेशुमार मर्तबा पढ़ता है। जब हज के 5 दिन शुरू होते हैं तो हाजी एहराम बांधकर मिना की तरफ चल देता है। वहां खेमे में अल्लाह की इबादत करता है और लब्बेक पढ़ता है। यह दिन हज के महीने के 8वीं तारीख का दिन होता है। हाजी अगले दिन नवमी तारीख को सुबह नमाज पढ़कर अराफात के मैदान की तरफ चल पड़ता है। यहां वह पूरे दिन अल्लाह की इबादत करता है और दुआ करता है। यही वह जगह है रहमत की पहाड़ी,,, जिस पर पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्ला वसल्लम ने अपने हज की आखिरी खुत्बा दी थी। यहां हाजी दुआएं करता है और शाम को निकल जाता है। रात में मुजदलेफा पहुंचता है। वहां मगरिब व इशा की नमाजे पढ़ता है । रात भर इबादत करके लब्बेक पढ़ता रहता है ,फिर सुबह फज्र की नमाज पढ़कर दस वीं तारीख को मीना में वापस आ जाता है और लब्बेक पढ़ता रहता है । शैतान को कंकड़ी मारने के साथ लब्बेक पढ़ना बंद हो जाता है। फिर कुर्बानी करता है। सिर मुंडाता है और एहराम खोल कर नहा धोकर सिले कपड़े पहन लेता है। फिर वह मक्का मुकर्रमा बैतुल्लाह शरीफ के तवाफ के लिए जाता है। तवाफ के बाद पैगंबर हजरत इब्राहिम अलीह सलाम की मुकाम पर नमाज पढ़ता है और आबे जमजम पीता है और सफा मरवा पहाड़ियों के बीच दौड़ता है। इसके बाद वापस मीना आकर 11और 12 तारीख को शैतानों को कंकड़ी मारता है। इस प्रकार हज पूरा हो जाता है। मदीना मुनव्वरा भी पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्ला वसल्लम का पाक शहर है। यहां मस्जिदे नबी ( नबूवी) शरीफ में हाजी नमाज पढ़ता है। यहां एक नमाज का सवाब 50 हजार नमाज के बराबर है । मुफ्ती आरिफ सिद्दीकी साहब ने कहा कि हम सबों को भी हज करने से पहले और हज करने के बाद भी दीन के कामों में हमेशा अपने आप को लगाए रखना चाहिए ,तभी ही हज जैसे महान इबादत अल्लाह के नजदीक कबूल होगा । उन्होंने अंत में कहा कि आज (हज) के बाद की जिंदगी पूरी तौर से तक्वा और परहेज गारी से गुजारनी चाहिए। अगर कोई उसे बिगड़ता है तो अल्लाह भी उसे बिगाड़ देता है। अल्लाह हम सबको हज जैसे अजीम व महान इबादत जल्द से जल्द फर्ज अदा करा दे आमीन,,,,,,,, सुम्मा आमीन,,,।

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