बिहार:आदिवासियों द्वारा किया जा रहा है लोगों को परेशान

आदिवासियों द्वारा किया जा रहा है लोगों को परेशान

फारबिसगंज (अररिया)

फारबिसगंज थाना क्षेत्र अंतर्गत परवाहा में आदिवासियों के द्वारा पिछले 6 वर्षों से कानून को धत्ता बताते हुए अवैध रूप से जमीन पर कब्जा करने का एक बेहद गंभीर मामला प्रकाश में आया है। ये मामला यूँ है कि किसी फ़िल्म की पटकथा लिखी जा सकती है। मामले में एक ओर वह पक्ष है जो वैध कागजात के साथ कानून को सर्वोपरि मानते हुए न्याय की आस में दर-दर भटक रहा है तो वहीं दूसरी और वह पक्ष है जो बिना किसी कागजात के कानून को ठेंगा दिखाते हुए अन्याय की पराकाष्ठा पार कर गया है। विदित है कि कुशमौल निवासी रामचंद्र यादव व मनोज यादव पिता स्वर्गीय हरिहर प्रसाद यादव के द्वारा जनवरी 2015 में परवाहा निवासी अमरेंद्र मिश्र व नरेंद्र मिश्र पिता स्वर्गीय मोहन मिश्र से 1 एकड़ जमीन खरीदा गया था जिस जमीन का खाता संख्या 739 तथा खेसरा 1552 है। जमीन खरीद करने के कुछ महीनों बाद रामचंद्र यादव जब कृषि करने हेतु उक्त जमीन पर गया तो वहां आदिवासियों के द्वारा उनके साथ गाली-गलौज और हाथापाई हुई। इस बाबत रामचंद्र यादव के द्वारा फारबिसगंज थाना में एक आवेदन और अंचलाधिकारी फारबिसगंज के पास भी एक लिखित आवेदन दिया गया। आवेदन के पश्चात अंचलाधिकारी और थानाध्यक्ष के द्वारा संयुक्त रूप से ग्रामीणों की मौजूदगी में सरकारी अमीन के द्वारा मई 2016 में जमीन का मापन करके पिलर गड़वाया गया। सीमांकन के बाद रामचंद्र यादव के द्वारा अपने जमीन में फ़ूस का एक घर बनाया गया जिसे रातों-रात आदिवासियों के द्वारा तोड़ दिया गया और पिलर उखाड़ कर फेंक दिया गया। मामले को लेकर तड़के सुबह जब खरीदार रामचंद्र यादव और मनोज यादव जमीन पर पहुंचे तो आदिवासियों महेंद्र सोरेन, बाबूलाल सोरेन (पिता स्वर्गीय बाबूजी सोरेन), शिव मुर्मू, संजय मुर्मू, मंजय मुर्मू (पिता बाबूलाल मुर्मू), ताला सोरेन (पिता मुंशी सोरेन) सभी परवाहा वार्ड संख्या छह एवं सात निवासी परिवार सहित दर्जनों की संख्या में एकजुट होकर लाठी, फरसा, तीर, धनुष आदि से लैस होकर जान मारने की नियत से रामचंद्र यादव और मनोज यादव सहित उनके परिवार पर जानलेवा हमला कर दिया। सभी ने किसी तरह आस-पड़ोस में भागकर अपनी जान बचाई। इसके बाद नवंबर 2017 में जिला पदाधिकारी अररिया को इस मामले में लिखित रूप से रामचंद्र यादव के द्वारा आवेदन दिया गया। आवेदन देने के 10 दिनों पश्चात फारबिसगंज थानाध्यक्ष के द्वारा उक्त नामांकित आदिवासियों के नाम एक नोटिस जारी किया गया। नोटिस के माध्यम से थाना में लगने वाले जनता दरबार में जमीन के कागजात व साक्ष्य के साथ सभी आदिवासियों को उपस्थित होने को कहा गया। परंतु आदिवासियों के पक्ष से निर्धारित तिथि को जनता दरबार में कोई भी उपस्थित नहीं हुआ। इसके बाद थाने में कई दिन चक्कर काटने और कोई सकारात्मक रुख नहीं होने के कारण जमीन खरीदार ने भूमि सुधार उप समाहर्ता के पास आवेदन लगाया। भूमि सुधार उप समाहर्ता ने दोनों पक्षों के वकीलों के द्वारा दिए गए दलीलों को सुना और संलग्न कागजातों का अवलोकन किया। अंत में उन्होंने आदेश दिया कि जमीन रैयती है तथा दोनों पक्षों के बीच प्रश्नगत जमीन के अधिकार को लेकर विवाद है जिसका समाधान वरीय न्यायालय से ही संभव है। आगे जमीन खरीदार ने 2019 ई• में अररिया न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। वहां प्रारंभ के कुछ दिनों तक आदिवासियों के पक्ष से कुछ लोग तो उपस्थित हुए परंतु धीरे-धीरे न्यायालय के द्वारा निर्धारित तारीखों को प्रतिवादी पक्ष की उपस्थिति नगण्य होने लगी। न्यायालय प्रदत्त तारीखों को सिर्फ वादी पक्ष के लोग ही आते थे और दिन भर कोर्ट का चक्कर काट-काट कर घर चले जाते थे। आदिवासियों की ज्यादती इतनी थी कि घर से न्यायालय जाने-आने के दौरान प्रतिवादी पक्ष के लोगों के द्वारा मोटरसाइकिल रोक लिया जाता था, गाली गलौज भी किया जाता था। न्यायालय में सिर्फ तारीख पर तारीख मुकर्रर की जाती थी परंतु कोई सुनवाई नहीं होती थी। फिर अचानक 2020 में कोरोनावायरस में लॉकडाउन के कारण न्यायालय बंद रहने के कारण मामला शिथिल पड़ गया और आज तक कोई भी सुनवाई नहीं हुई। अंततः थक हार कर गरीब तबके से आने वाले व दो वक्त की रोटी किसी तरह जुगाड़ कर घर परिवार का गुजारा करने वाले रामचंद्र और मनोज यादव ने किसी जानकार की सलाह पर अखबारों के माध्यम से अपनी सारी समस्याओं को रखा। इन दोनों भाइयों के अलावा 1 साल पूर्व बगल में ही जमीन खरीदे सिकंदर सरदार के साथ भी यही स्थिति है। उनके जमीन पर भी इन्हीं लोगों के द्वारा अवैध रूप से कब्जा है। सभी ने पाई-पाई जोड़ कर दिन-रात मेहनत करके इस जमीन को खरीदा ताकि घर बना कर अपने बाल-बच्चे की परवरिश सही से कर सके और सड़क किनारे जमीन होने के कारण जीविकोपार्जन हेतु कोई स्वरोजगार कर सके। मगर फिलहाल सारे अरमानों पर पानी फिर गया है। खेती ही जीविकोपार्जन का एकमात्र साधन होने और मेहनत मजदूरी करके घर परिवार चलाने वाले दोनों भाइयों को पिछले 6-7 वर्षों से इसके कारण बेहद लचर स्थिति हो गई है और सारे सपने धूमिल हो गए हैं। इन्होंने अखबार के माध्यम से जिले के वरीय पदाधिकारियों, शासन-प्रशासन के लोगों और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से न्याय की गुहार लगाई है।

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