माटी कला की परंपरा तोड़ रही दम भुखमरी की कगार पीआर कुम्हारी कला से जुड़े लोग
रिपोर्टर :- अविनाश शाण्डिल्य के साथ बिबेक द्विवेदी Vv न्यूज चैनल कोंच जालौन
आधुनिकता ने छीना मिट्टी के बर्तन बनाने वालों का रोजगार, पुश्तैनी काम छोड़ मजदूरी करने को मजबूर हैं कुम्हार
मिट्टी की महक लुप्त होती जा रही हैं मिट्टी के बर्तनों की उपेक्षा उपेक्षा शहरों ही नहीं गांव ब कस्बो मैं भी हो गई है यही कारण है कि अब यह व्यवसाय घाटे का सौदा हो गया है शहर और गांव गांव में कुम्हार मिट्टी के बर्तन बनाकर अपने पूरे परिवार का पेट भर लेते थे तीज त्यौहार और विवाह आदि समारोह के अलावा शुद्धता के लिए मिट्टी के पात्रों का प्रयोग घरों में भी होता था शहर या गांव में ऐसा कोई ही घर होता होगा जिसमें गर्मी के मौसम में खड़े और सुराही का प्रयोग ना किया जाता रहा हूं गर्मी का मौसम आते ही घने और सुराही की मांग बढ़ जाया करती थी और कुम्हारों का सीजन चल जाता था मिट्टी के बर्तन का दो घूंट पानी जो गले को एक विशेष महक के साथ तर कर देता था अब उसका चलन प्राय बंद होता नजर आ रहा है आधुनिकता के इस युग में मिट्टी के बर्तन से रोजगार करने वाले कुम्हार जाति के लोग या तो मजदूरी करने के लिए विवश हैं या तो उन्हें शहर पलायन करना पड़ रहा है। मिट्टी का बर्तन महंगा होने के कारण लोग पॉलिथीन या चीनी उत्पादों के ऊपर निर्भर हो चुके हैं जबकि शासन द्वारा माटी कला बोर्ड का गठन करके माटी के बर्तन बनाने वाले कामगारों के लिए प्रशिक्षण दिलाकर इलेक्ट्रॉनिक चाक भी उपलब्ध कराए गए जिससे उनका व्यापार सही ढंग से चल सके और उनको पर्याप्त आमदनी हो सके लेकिन इसकी हकीकत जानने के लिए आज हम कोंच नगर के मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों के बीच पहुंचे तो उन्होंने बताया सरकार द्वारा प्रशिक्षण दिलाकर निशुल्क चौक तो मिला है लेकिन मिट्टी की पर्याप्त व्यवस्था ना होने के कारण धंधा मंदा ही है आधुनिकता की दौड़ में मिट्टी के बर्तन बस गर्मियों में ही बिक पाते हैं और गर्मी में ही जितना व्यापार हो जाता है उससे ही परिवार गुजारा करना पड़ता है बकाया अन्य मौसमों में व्यापार सिफर ही रहता है आगे क्या कुछ कहा कामगारों ने आपको सुनाते हैं