पितृपक्ष में अपने पूर्वजों को प्रसन्न रखने के लिए पिंडदान

पितृपक्ष में अपने पूर्वजों को प्रसन्न रखने के लिए पिंडदान
-पौत्र व नाती को भी तर्पण व श्राद्ध का होता है अधिकार
-पितृपक्ष में पितृ धरती पर आकर लोगों को देते है आशीर्वाद 
-भगवान इंद्र ने कर्ण को 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की दिए थे अनुमति 

फोटो:-पंडित ललित नारायण झा

रविवार से पितृपक्ष शुरू हो गया हैं. अपने पूर्वजों को प्रसन्न रखने के लिए पिंडदान करते है. शास्त्रों में बताया गया है कि जिनके पूर्वजों का देहांत हो चुका है, उन्हें पितृ कहा जाता है. जब तक कोई व्यक्ति मृत्यु के बाद पुनर्जन्म नहीं ले लेता, तब तक वह सूक्ष्मलोक में रहता है. ऐसा मानते हैं कि इन पितरों का आशीर्वाद सूक्ष्मलोक से परिवार जनों को मिलता रहता है. पितृपक्ष में पितृ धरती पर आकर लोगों को आशीर्वाद देते हैं व उनकी समस्याएं दूर करते हैं. बताया जाता है कि घर का वरिष्ठ पुरुष सदस्य नित्य तर्पण कर सकता है. उसके अभाव में घर को कोई भी पुरुष सदस्य कर सकता है. पौत्र व नाती को भी तर्पण व श्राद्ध का अधिकार होता है. वर्तमान में महिलाएं भी तर्पण व श्राद्ध कर सकती हैं. इस अवधि में सुबह-शाम स्नान करके पितरों को याद करना चाहिए. कुतप वेला में पितरों को तर्पण दें. इसी वेला में तर्पण का विशेष महत्व है.पितृपक्ष में पूर्वजों का स्मरण व उनकी पूजा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है. जिस तिथि पर हमारे परिजनों की मृत्यु होती है उसे श्राद्ध की तिथि कहते हैं. बहुत से लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद नहीं रहती ऐसी स्थिति में शास्त्रों के अनुसार आश्विन अमावस्या को तर्पण किया जा सकता है. इसलिये इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है.

15 दिनों का होता है पितृपक्ष

पंडित ललित नारायण झा बताते हैं कि जब महाभारत के युद्ध में दानवीर कर्ण का निधन हो गया व उनकी आत्मा स्वर्ग पहुंच गई, तो उन्हें नियमित भोजन की बजाय खाने के लिए सोना व गहने दिए गए. इस बात से निराश होकर कर्ण की आत्मा ने इंद्र देव से इसका कारण पूछा. तब इंद्र ने कर्ण को बताया कि आपने अपने पूरे जीवन में सोने के आभूषणों को दूसरों को दान किया लेकिन कभी भी अपने पूर्वजों को भोजन दान नहीं दिया. तब कर्ण ने उत्तर दिया कि वो अपने पूर्वजों के बारे में नहीं जानता है व उसे सुनने के बाद, भगवान इंद्र ने उसे 15 दिनों की अवधि के लिए पृथ्वी पर वापस जाने की अनुमति दी ताकि वो अपने पूर्वजों को भोजन दान कर सके. इसी 15 दिन की अवधि को पितृ पक्ष के रूप में जाना जाता है.

मृत्यु तिथि न पता होने पर इस दिन करें श्राद्ध

पंडित ललित नारायण झा ने बताया कि हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार हर महीने की अमावस्या तिथि पर पितरों की शांति के लिए श्राद्ध किया जा जाता है, लेकिन पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करने व गया में पिंडदान करने का अलग ही महत्व होता है. पितरों की आत्मा की शांति व तृप्ति के लिए पितृपक्ष में उनका श्राद्ध करना चाहिए.अगर किसी परिजन की मृत्यु की सही तारीख पता नहीं है तो आश्विन अमावस्या के दिन उनका श्राद्ध किया जा सकता है. पिता की मृत्यु होने पर अष्टमी तिथि व माता की मृत्यु होने पर नवमी तिथि तय की गई है. जब किसी व्यक्ति की मृत्यु किसी दुर्घटना में हुई तो उसका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि पर करना चाहिए.

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