*बिजेंन्द्र सिंह की खास रिपोर्ट:
*जमीन छीड़ी में नौनिहालों के जीवन के साथ हो रहा खिलवाड़, किसी बड़ी दुर्घटना को दावत दे रहा रास्ता।
ग्राम पंचायतों में इसे गैरजरूरी काम नहीं कहेंगे, तो आप क्या कहेंगे, बात को मेरे समझते चले चलीए।
जब मामला नौनिहालों और भारत के भविष्य का हो तो कम से कम ग्राम पंचायतों में प्रधानों को ऐसी घोर लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए, लापरवाही शब्द का प्रयोग मैं इसलिए कर रहा हूं,
जरा आप इसको भी जान लें।
मामला पूर्व माध्यमिक विद्यालय जमीन छीडी़ का है।
पर इसके पीछे की थोड़ी कहानी आप को समझते चलना होगा।
आधुनिक शिक्षा के जनक पंडित मदन मोहन मालवीया आज जिंदा होते तो आजमगढ़ की शिक्षा व्यवस्था को लेकर निश्चित तौर पर उनका मन करुणा से भर उठता। जिस शिक्षा को उन्होंने पाल पोस कर इतना बड़ा किया, आज नौनिहालों के लिए पीने का पेयजल उपलब्ध नहीं विद्यालय की टोटियां सुखी और सुनी पड़ी है।
बच्चों के स्वास्थ्य के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ और क्रूरर मजाक
बच्चे किसी भी देश या राष्ट्र के भविष्य होते हैं, उनके पालन पोषण से लेकर शिक्षा और दीक्षा तक पूरी गंभीरता बरती जानी चाहिए।
हालांकि हम जिस विषय को आज उठाना चाह रहे हैं, उसमें यह भी समाहित हो रहा है।
कहने का तात्पर्य है कि जहां बच्चों की शिक्षा ग्रहण करने का स्थान है, वहां पेयजल और मूत्रालय प्राथमिकता के साथ साफ और स्वच्छ होना चाहिए।
लेकिन ग्रामसभा जमीन छीड़ी के जूनियर हाई स्कूल की परिस्थिति बिल्कुल इसके उलट थी। बच्चों के पीने के लिए शुद्ध पेयजल की बात तो दूर, वहां इसका प्रबंध ही नहीं था। हां दिखाने के लिए तीन कनेक्टेड टोटिया लगी थी पर सुखी और सुनी पड़ी थी। हां जब मीडिया वहां पहुंची तो संयोग बस बोरिंग का काम जरूर हो रहा था। पर सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि अब तक वहां बच्चों को पीने के लिए जल की व्यवस्था कहां से की जाती रही होगी। क्या बगल के विशालकाय पोखरे से बच्चे पानी पीते थे, हालांकि हम जिस विषय को आज उठाना चाह रहे हैं, उससे पोखरा जुड़ा हुआ है, आगे हम आपको बताएंगे।
आजादी के इतने वर्षों के बाद भी अगर आज हमारे देश के किसी भी कोने में प्राथमिक और जूनियर हाई स्कूल जहां भारत के सबसे गरीब तबके के लोग जैसे रिक्शा वाले, ठेला खींचने वाले, सब्जी बेचने वाले, झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले, परिवार के बच्चे ही शिक्षा ग्रहण करने आते हैं, बड़े और संपन्न लोगों के बच्चे तो कन्वेंट में पढ़ते हैं,ऐसी हालत हमें सोचने को मजबूर करती है।
आज इस बात को हम सभी जानते हैं की आजादी के बाद ग्राम पंचायतों में जितना पैसा आया अगर उसका आधा भी ग्राम सभा के विकास में खर्च हुआ होता तो आप यकीन मानिए भारत का हर गांव सिडनी होता।
लेकिन तस्वीर आपको कुछ दूसरी ही नजर आएगी, गांव का विकास तो नहीं हुआ, हां बारी-बारी से जो गांव के प्रधान रहे, उनका सर्वांगीण विकास जरूर हुआ। उनकी झोपड़ी से बड़ी कोठिया हो गई, साइकिल और मोटरसाइकिल से चार पहिया वाहन के स्वामी बन गए। लेकिन हमारा गांव वही का वही रहा, यही तो इस देश की विडंबना है। सरकारें सब कुछ जानती हैं पर ना जाने क्यों आंखें मूंदकर बैठी हुई है।
हालांकि 2014 के बाद स्थितियां जरूर बदलनी शुरू हुई है, लेकिन अब भी ग्रामसभा में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का खेल जारी है।
अब आते हैं आज के विषय पर जो बहुत ही भयावह और डरावनी तस्वीर पेश कर रही थी।
जरा आप सोचें अगर आपके बच्चे किसी ऐसे स्कूल में पढ़ने जाएं जिसका रास्ता एक ऐसे पोखरे से होकर गुजर रहा हो, जिसकी ईट्रे दरक गई हो, और अगर जरा सा पैर उन ईटों पर पड़ जाए तो सीधे आपके बच्चे उस पोखरे में समा सकते हैं।
अगर आप गांव के प्रधान होते तो आप पहले इस रास्ते को बनवाने को प्राथमिकता देते या विद्यालय के पीछे से होकर जाने वाले दूसरे रास्ते को जिसकी आवश्यकता शायद उतनी ना हो जितनी इस गंभीर दिख रहे रास्ते की हो।
‘2022, विधानसभा चुनाव को लेकर रिपोर्टर बिजेंन्द्र सिंह जब ग्राम सभा जमीन छीड़ी में गए, तो उन्हें एक पूर्व माध्यमिक विद्यालय दिखा, जो सीधे गांव के जूनियर हाई स्कूल पर जाकर खत्म हो रहा था। लेकिन सबसे डरावनी और भयावह यह था कि पोखरे से सटे रास्ते पर बीच में खड़ंजा की ईटें एक साइड से निकल चुकी थी और सिर्फ मट्टी दिखाई दे रही थी और उसमें कुछ ईंटे मिट्टी से सटी बिल्कुल नीचे उनके खाली स्पेस था, जो कभी भी पोखरे में टपक सकती थी रास्ता थोड़ी ऊंचाई पर है और नीचे गहरा पोखरा और रास्ते की चौड़ाई भी काफी कम है मौजूदा समय में कोई ट्रैक्टर या बड़ी गाड़ी, या यूं कहें कोई अधिकारी अपनी गाड़ी से वहां तक नहीं पहुंच सकता उसे पैदल ही जाना पड़ेगा। आपको यहां एक बात और साफ कर दें वहां जाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है। अब आप ही अंदाजा लगाइए नौनिहाल इसी रास्ते से होकर गुजरते हैं और बच्चे चंचल होते हैं हम सभी जानते हैं अगर किसी बच्चे ने किसी बच्चे को मजाक में धक्का ही मार दिया या उनका पैर किसी ईट पर पड़ गया या बच्चे ही उसने करीब चले गए तो क्या होगा आप कल्पना करें आखिर इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा, ग्राम सभा की समितियां या जिम्मेदार लोग जो पदों पर बैठे हैं।
लेकिन सबसे हास्यास्पद बात तो यह है कि ग्राम प्रधान ने इस रास्ते को ना बनवा कर विद्यालय के पीछे जिस रास्ते की कोई आवश्यकता नहीं थी बिल्कुल भी नहीं थी, अगर आप उस रास्ते को देखेंगे तो आपको लगेगा कि यहाँ जबरदस्ती रास्ता बनाने का कार्य चल रहा है, इसकी जांच होनी चाहिए और सरकार को देखना चाहिए कि आखिर ग्राम प्रधान बने बनाए रास्ते की मरम्मत ना करवा कर एक दूसरे नए रास्ते को खोलने का कार्य क्यों कर रहा, कहीं सरकारी धन का दुरुपयोग करके पैसा भजाने की साजिश तो नहीं, हमें वहां कुछ और भी आपत्तिजनक लगा जैसे ही हमने ग्राम प्रधान को फोन किया तो ग्राम प्रधान ने भी किसी को फोन करके सूचना दी, और थोड़ी ही देर बाद गांव के एक संभ्रांत व्यक्ति ने आकर प्रधान जी की पैरवी करनी शुरू कर दी, और उनसे जब रास्ते के निर्माण के बारे में पूछा गया और यह कहा गया कि क्या पूर्व प्रधान ने कोई काम नहीं किया तो वह पूर्व प्रधान का बचाव करते हुए दिखे यानी दाल में जरूर कुछ काला था। खैर हमने प्रधान जी से आग्रह भी किया और बताया कि प्रधान जी अपने गांव में कुछ व्यक्ति हो जो एक मंच पर आए और हम उनसे बारी-बारी से बात करें, तो प्रधान जी और उस व्यक्ति ने बहाना करते हुए वहीं विद्यालय पर रुकने का फैसला किया। इतने बेवकूफ तो हम लोग भी नहीं थे कि दोनों की मिलीभगत को समझ नहीं रहे थे,खैर हमारा एक ही मकसद है कि उस रास्ते को प्रधान जी कम से कम ठीक करवा दें ताकि बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित हो जाए।