शिक्षक दिवस पर किया गया दर्पण पद से सम्मान प्रोफेसर डा विनोद कुमार सिंह
आजमगढ़| शिब्ली नेशनल महाविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ विनोद कुमार सिंह को नादान परिंदे साहित्यिक मंच वाराणसी द्वारा शिक्षक दिवस के अवसर पर शिक्षक दर्पण सम्मान से सम्मानित किया गया है। उक्त अवसर पर हम डॉ सिंह के व्यक्तित्व कृतित्व की चर्चा ना करें तो यह अभियान अधूरा रहेगा।डॉ विनोद कुमार सिंह की उच्च शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से हुई है। यह सन 2004 से दर्शनविभाग शिब्ली नेशनल महाविद्यालय में सहायक प्राध्यापक के रूप में कार्यभार ग्रहण किए। 30 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में भाग लिया तथा 30 आलेख राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए । डॉ सिंह को दर्शन परिषद बिहार द्वारा सन 2018 में डॉ विजय श्री स्मृति युवा पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। इन्हें श्री शिवा महाविद्यालय तेरही कप्तानगंज द्वारा पिछले वर्ष सर्वपल्ली राधाकृष्णन शिक्षक सम्मान तथा श्री गांधी स्नातकोत्तर महाविद्यालय,मालटारी, राष्ट्रीय सेवा योजना के तहत इन्हें शिक्षक सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के कुलपति के हाथों इनके द्वारा लिखित पुस्तक आचार्य नरेंद्र देव का समाज दर्शन तथा दिल्ली के भाजपा सांसद मनोज तिवारी के द्वारा आचार्य विनोबा भावे की भूमिका का विमोचन भी किया जा चुका है। वैश्विक महामारी करोना में इन्हें नव निर्माण ट्रस्ट तथा यूपी 18न्यूज़ द्वारा कोरोना वैरियरस के रूप में भी सम्मानित किया जा चुका है। यह अखिल भारतीय दर्शन परिषद नई दिल्ली तथा तथा बिहार दर्शन परिषद के आजीवन सदस्य हैं । डॉ सिंह यूजीसी की पत्रिका आयुष्मान आडिटोरियल बोर्ड के सदस्य भी नामित हैं। सहायक प्रोफेसर डॉ बी के सिंह विगत सन 2012 से 2018 तक महाविद्यालय छात्रसंघ चुनाव के सहायक चुनाव अधिकारी सह मीडिया प्रभारी की जिम्मेवारी का निर्वहन कर चुके हैं। इन्हें विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर पर्यावरण प्रहरी सम्मान से भी सम्मानित किया गया था। डॉ सिंह से वर्तमान परिवेश में शिक्षक एवं छात्रों की भूमिका पर जब प्रश्न किया गया तो उन्होंने कहा कि वर्तमान परिदृश्य में राष्ट्र की नई पीढ़ी नीति विहीन बन रही है। विद्यार्थियों में स्वाभिमान एवं राष्ट्र निष्ठा का अभाव दिख रहा है। आज समाज में लोग केवल शिक्षित होना चाहते हैं, सुशिक्षित नहीं। एक अच्छे अध्यापक का व्यवहार आज के परिप्रेक्ष्य में मित्रवत होना चाहिए। शिक्षक वही है जो निरंतर अध्यापन करता है वही अध्यापक है, स्वयं अध्ययन करने की भूमिका में रहकर विद्यार्थियों को अध्यापन कराना अत्यधिक सार्थक सिद्ध होगा ।जिस राष्ट्र में अध्यापक सभी विद्यार्थियों के अभिभावक बनकर शिक्षा देंगे ,उस राष्ट्र का सर्वांगीण विकास होगा ।वर्तमान भौतिकवादी युग में व्यवसायिक पाठ्यक्रम के साथ आचार विचार और संस्कार जैसे विषय हिंदी, संस्कृत, दर्शन आदि पर भी विशेष जोर देना होगा अन्यथा हमारी नई पीढ़ी संस्कार विहीन हो जाएगी।