हरियाणा संपादक – वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।
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कुरुक्षेत्र : सिद्ध पीठ मां श्री बगलामुखी मंदिर के महंत आचार्य पंडित राजेश वत्स ने बैसाखी पर्व के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कब है और क्यों मानते हैं बैसाखी का त्योहार। बैसाखी सिख धर्म का प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। यह पर्व हर साल विक्रम संवत के प्रथम माह में पड़ता है, इस साल यह पर्व 14 अप्रैल को मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में जिस तरह होली व दीपावली का पर्व मनाया जाता है, उसी तरह सिख लोगों के लिए बैसाखी का त्योहार खास होता है। देश के अलग-अलग जगहों पर इस पर्व को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, जैसे बंगाल में नबा वर्ष, केरल में पूरम विशु, असम में बिहू के नाम से लोग इस पर्व को मनाते हैं। बैसाखी को सिख समुदाय के लोग नए साल के रूप में मनाते हैं। बैसाखी मुख्य रूप से कृषि का पर्व मनाया जाता है। किसान अपनी पकी हुई रबी की फसल को देखकर खुश होते हैं और बड़े हर्ष और उल्लास के साथ इस दिन को बड़े त्योहार के रूप में मनाते हैं। लेकिन फसल के अलावा और भी कई बातें हैं, जो बैसाखी से जुड़ी हुई हैं। मेष संक्रांति पर मनाया जाता है बैसाखी।
बैसाखी का पर्व हर साल 14 अप्रैल को मनाया जाता है और इस दिन ही ग्रहों के राजा सूर्य मेष राशि में गोचर करते हैं, जिसे मेष संक्रांति कहा जाता है। भारतीय परंपराओं के अनुसार संक्रांति पर पवित्र नदियों में स्नान के साथ जप-तप और ध्यान किया जाता है। पुराणों में वर्णन मिलता है कि बैसाखी के दिन गंगा में स्नान करने से अश्वमेध यज्ञ करने के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है। गुरु गोविंद सिंह जी ने की थी खालसा पंथ की स्थापना
बैसाखी के दिन सिख समुदाय के लोग गुरुद्वारों में विशेष उत्सव मनाते हैं क्योंकि इस दिन सिख धर्म के 10वें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंहजी ने 13 अप्रैल सन् 1699 में आनंदपुर साहिब में मुगलों के अत्याचारों से मुकाबला करने के लिए खालसा पंथ की स्थापना की थी। साथ ही गोविंद सिंहजी ने गुरुओं की वंशावली को समाप्त कर दिया था। इसके बाद सिख समुदाय के लोगों ने गुरु ग्रंथ साहिब को ही अपना मार्गदर्शन बनाया। साथ ही इस दिन सिख लोगों ने अपना सरनेम सिंह स्वीकार किया था। यह भी इस दिन को खास बनाने के लिए एक कारण है।
नदी से लेकर पर्वत तक एक से एक गुरुद्वारे, नहीं देखा तो क्या देखा
इस तरह मनाया जाता है बैसाखी का पर्व
दीपावली की तरह ही कई दिन पहले से घर की साफ-सफाई करते हैं और रंगोली बनाते हैं। साथ ही लाइटिंग से घरों को सजाते हैं। बैसाखी के पर्व पर कई तरह के पकवान बनते हैं और सिख लोग सुबह गुरुद्वारे जाते हैं। गुरुद्वारे में जाकर गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ व कीर्तन करते हैं। बैसाखी के पर्व पर कई जगह मेले भी लगते हैं। पंजाबी लोग इस दिन अपना विशेष नृत्य भांगड़ा करके खुशी मनाते हैं। वैसे तो यह पर्व पूरे भारत में अलग – अलग नाम से मनाया जाता है लेकिन पंजाब व हरियाणा में इसकी चमक अलग होती है। बैसाखी का महत्व।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, बैसाखी के मौके पर गंगा में स्नान करना विशेष पुण्यदायी माना जाता है। इस दिन हिंदू संप्रदाय के लोग गंगा स्नान करके देवी गंगा की स्तुति करते हैं। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का अपना विशेष महत्व है। ज्योतिषीय दृष्टि से भी बैसाखी का बेहद शुभ व मंगलकारी महत्व है क्योंकि इस दिन आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है और मेष संक्रांति भी मनाई जाती है। मेष संक्रांति के मौके पर पर्वतीय इलाके में देवी की पूजा-पाठ करते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। महंत राजेश वत्स ने बताया कि वर्ष भर आलौकिक ऊर्जा प्रदान करता है बैसाखी पर्व । इस बार वैशाखी पर्व 14 मार्च 2022 को पड़ रहा है सूर्य मेष राशि में 8:00 बज कर 41 मिनट पर प्रवेश करेगा जिसके कारण मेक सक्रांति भी इसे कहते हैं।