पूर्वांचल:- गौरवशाली अतीत, बदहाल वर्तमान और अधर में भविष्य –
भू-क्षेत्रीय विभाजन की दृष्टि से गंगा के निचले मैदान के रूप में रेखांकित, खेती-किसानी की दृष्टि से बेहतरीन, पर्यावरणीय दशाओं की दृष्टि से स्वास्थ्य वर्द्धक, मनोनुकूल और मनोहारी ,अपने देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के पूर्वी छोर पर स्थित पूर्वांचल का इतिहास प्राचीन काल से अत्यंत गौरवशाली रहा है। युगों-युगों के महानायक मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जन्मभूमि और युग पर्वतक महात्मा बुद्ध और महावीर स्वामी सहित लगभग एक दर्जन तीर्थंकरो और श्लाघा पुरूषों की कर्मभूमि पूर्वांचल रहा है। वैदिकोत्तर काल की अवसान बेला पर भारतीय बसुन्धरा पर उद्भवित और स्थापित प्राचीन भारतीय प्रजातंत्रीय परम्पराओं के रूप में विश्व विख्यात सोलह महाजनपदो में काशी, कोशल, वत्स और मल्ल गणराज्य वर्तमान दौर के पूर्वांचल के भू-भाग पर ही अवस्थित थे। धार्मिक और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेताओ में जैन धर्म के तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के पिता अश्वसेन काशी के राजा थे। सत्य अहिंसा करूणा परोपकार और मानवता का संदेश देने वाले युग प्रवर्तक महात्मा बुद्ध की निर्वाण भूमि कुशीनगर ( पावापुरी) तथा महात्मा बुद्ध का प्राथमिक उपदेश स्थल सारनाथ पूर्वांचल में ही अवस्थित हैं। न केवल भौगोलिक अपितु अत्यंत प्राचीन काल से वैश्विक स्तर पर पूर्वांचल की ऐतिहासिक सांस्कृतिक और साहित्यिक महत्ता भी रही हैं। सिन्धु घाटी सभ्यता के नगरों को छोड़ दिया जाए तो कुछ बौद्ध जातक कथाओं के अनुसार काशी की राजधानी वाराणासी भारतीय बसुन्धरा पर स्थापित पहला नगर माना जाता हैं और वाराणसी लम्बे समय तक भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप विख्यात रहीं। महात्मा बुद्ध के समकालीन कोशल नरेश राजा प्रसेनजित कुशल शासक के साथ साथ उच्चकोटि के विद्वान थे। न केवल प्राचीन बल्कि पूर्वांचल का मध्ययुगीन इतिहास भी गौरवशाली रहा है। ग्यारहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी तक के संक्रमण कालीन दौर में सभ्यता संस्कृति और संस्कारो की इस उर्वरा भूमि पर गुरु गोरखनाथ , कुरीतियों कुप्रथाओं अंधविश्वासो पर करारा प्रहार करने वाले महात्मा कबीर, गोस्वामी तुलसीदास संत शिरोमणि रविदास जैसे भक्ति आंदोलन के महान संतो ने जन्म लिया। तुर्की सल्तनत के समय जौनपुर को सिराज-ऐ-हिन्द कहा जाता था जिसका सामरिक दृष्टि भी महत्व था। 1857 के महान स्वाधीनता संग्राम में जगदीश पुर के राजा बाबू कुॅवर सिंह और बेगम हजरत महल की रणभूमि भी पूर्वांचल रहा है। 1857 से लेकर 1947 तक होने वाले सम्पूर्ण भारतीय स्वाधीनता-संग्राम में पूर्वांचल की शानदार भूमिका रही हैं। आधुनिक काल में महान स्वाधीनता संग्राम सेनानियों के साथ साथ पूर्वांचल की अंगनाई में अनगिनत साहित्यिक और सांस्कृतिक विभूतियाँ भी अंगडाई लेती रही हैं। रशियन उपन्यासकार मैक्सिम गोर्की के समतुल्य उपन्यासकार ,कहानीकार तथा गरीबी, गुरबत , गंदगी और शोषण के शिकार गांवो की व्यथा-वेदना, दुर्गति और दुर्दशा का अपनी लेखनी द्वारा मार्मिक चित्रण करने वाले मुंशी प्रेमचंद , हिंदी साहित्य को वैज्ञानिक, तार्किक , आधुनिक और प्रगतिशील संचेतना प्रदान करने वाले महापंडित राहुल सांकृत्यायन, मानवीय संवेदनाओं , भावनाओं , मनोवृत्तियों और मनोविकारों पर अद्वितीय लेखन करने वाले जयशंकर प्रसाद,हिन्दी साहित्य को अपनी रचनाओं से नई उर्जा और ऊचाई प्रदान करने वाले हजारी प्रसाद द्विवेदी, हल्दीघाटी जैसी अमर रचनाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य को ओजस्विता प्रदान करने वाले पंडित श्याम नारायण पांडे , हिन्दी और उर्दू के सशक्त हस्ताक्षर ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी और महान रंगकर्मी और मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी, गंगा-जमुनी तहजीब के पैरोकार और भारत की साझी संस्कृति के बेहतरीन व्याख्याकार राही मासूम रज़ा , अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध और मशहूर शहनाई बादक भारत रत्न मरहूम विस्मिलाह खाॅ जैसी अनगिनत विभूतियों को पैदा करने वाला पूर्वांचल आज राष्ट्रीय स्तर सर्वाधिक पिछडे क्षेत्रो में गिना जाता है। स्वाधीनता संग्राम के समय से वाराणसी और इलाहाबाद शिक्षा साहित्य और सामाजिक सुधार आंदोलन और हलचलों का केंद्र रहे ।भारत रत्न महामना मदन मोहन मालवीय और मौलाना शिबली नोमानी के सद्प्रयात्नो से विश्व विख्यात शिक्षण संस्थानों का निर्माण भी पूर्वांचल में किया गया।परन्तु मदन मोहन मालवीय और मौलाना शिबली नोमानी का पूर्वांचल विगत कुछ वर्षों पहले शिक्षा माफियाओ और नकल माफियाओ के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कुख्यात रहा है। गंगा, यमुना , सरयू, राप्ती घाघरा, तमसा और गंडक जैसी दर्जनों नदियों ने इस भू-भाग को अपने जल से अभिसिंचींत कर इस भूभाग को अद्भूत उर्वरा शक्ति प्रदान की है। भारत के सुप्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक और हरित क्रांति के जन्मदाता श्री एम एस स्वामिनाथन ने भी इसके बहुफसली उपजाऊपन को रेखांकित किया है। पूर्वांचल के सम्पूर्ण भौगोलिक भू-क्षेत्र का ईमानदारी से भौगोलिक अन्वेषण किया जाय तो इस भू-भाग में रबी,खरीफ और जायद तीनों मौसमी फसलों की दृष्टि से अद्भुत उर्वरा शक्ति समाहित हैं। परन्तु सुयोग्य नेतृत्व के अभाव निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की उदासीनता और सरकारों द्वारा की गई उपेक्षा के कारण आज अपने विकास के लिए तरस रहा है। जिस पूर्वांचल में अमर शहीद मंगल पांडे ,चिंत्तू पांडे ,वीर अब्दुल हमीद ,नौशेरा के शेर ब्रिगेडियर उस्मान और शहीद सौदागर सिंह सहित मातृभूमि पर जान लुटाने वाले अनगिनत रणबांकुरे पैदा हुए, वही पूर्वांचल आज न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक,और सांस्कृतिक रूप से भी पिछड़ेपन का शिकार है। जिस पूर्वांचल के पवित्र पावन प्रांगण में महात्मा बुद्ध,महावीर स्वामी , मध्ययुगीन अंधविश्वासो ,अतार्किक कर्म-काण्डो और पाखंडो के विरुद्ध करारा प्रहार करने वाले फक्कड कबीर और गुरु गोरखनाथ जैसे अनगिनत संतो,महात्माओ और मनीषियों क शांति सत्य अहिंसा करूणा परोपकार के संदेश गूँजते रहे उसी पूर्वांचल में विगत कुछ वर्षों से अपराधियों और बाहुबलियों का बोलबाला नजर आ रहा है। हालांकि स्वाधीनता उपरांत भारतीय राजनीति में राष्ट्रीय स्तर के राजनेता इस पूर्वांचल ने दिये। लाल बहादुर शास्त्री वी पी सिंह और चन्द्रशेखर प्रधानमन्त्री भी रहे। बाहुबलियों और अपराधियों के राजनीति में बढते प्रभाव के कारण पूर्वांचल को सुयोग्य कुशल और विकास की सोच रखने वाला नेतृत्व नहीं मिल पा रहा है। सुयोग्य और कुशल नेतृत्व न मिलने के कारण आज पूरा पूर्वांचल बदहाली, बदइंतजामी और आर्थिक विकास की दृष्टि से बदकिस्मती का शिकार नजर आता है।पंडित कमलापति त्रिपाठी, स्वर्गीय बीर बहादुर सिंह और विकास के पर्याय माने जाने वाले स्वर्गीय कल्पनाथ राय ने अवश्य पूर्वांचल के समुचित विकास के लिए सच्ची नियति से ईमानदार प्रयास किया परन्तु अधिकांश केन्द्र सरकारों और राज्य सरकारों द्वारा यथोचित ध्यान न देने के कारण पूर्वांचल का समुचित विकास नहीं हो पाया। प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता,बहुलता और सम्पन्नता तथा परिश्रमी, प्रतिभाशाली और ऊर्जावान मानवीय संसधान की परिपूर्णता के बावजूद भी पूरा पूर्वांचल बुरी तरह पिछड़ेपन का शिकार हैं। इसका महत्त्वपूर्ण कारण आजादी के बाद केन्द्र और विभिन्न दलों की राज्य सरकारों ने पूर्वांचल की घनघोर उपेक्षा की और पूर्वांचल के समुचित विकास के लिए दूरगामी और दूरदर्शी नीतियों और परियोजनाओं का अभाव पाया जाता हैं। दूरगामी, दूरदर्शी और विकासोन्मुख नीतियों और परियोजनाओं के अभाव के कारण पूर्वांचल के प्रतिभाशाली,परिश्रमी और ऊर्जावान नौजवानों को देश बडे शहरों में रोजी-रोटी के चक्कर में पलायन करना पड़ता हैं। आर्थिक रूप से पिछड़ापन ही पलायन का स्वाभाविक रूप से कारण लक्षण और परिणाम होता हैं। निश्चित रूप से पूर्वांचल के प्रतिभाशाली और उर्जावान नौजवानो का व्यापक स्तर पर पलायन पूर्वांचल के पिछड़ेपन का द्योतक हैं। यह सर्वविदित तथ्य है कि-आधारभूत संरचनाओं के विकास के बिना किसी भी क्षेत्र का सर्वांगीण विकास नहीं किया जा सकता है। आजादी के बहत्तर साल बाद पूरा पूर्वांचल आधारभूत संरचनाओं की दृष्टि से पिछड़ा हुआ है। पूरे पूर्वांचल में गन्ना और आलू नगदी फसल के रूप बोई और उगाई जाती रही हैं। बन्द और बदहाल चीनी मिलों को चुस्त दुरुस्त कर पूर्वांचल के लाखों-करोड़ों किसानों के चेहरे पर मुस्कान लाई जा सकती है और बाजारों में रौनक लाई जा सकती है। इसके अलावा पूर्वांचल में रबी खरीफ और जायद तीनों मौसमों के लिहाज से सब्जियों की खेती की जाती हैं। चूँकि सब्जी कच्ची फसल होती है इसके रख-रखाव के लिए आधुनिक और उच्च तकनीकी के प्रशीतन गृहों की आवश्यकता होती है। परन्तु उच्च तकनीकी पर आधारित प्रशीतन गृहों के अभाव के कारण किसानों को औने-पौने दामों पर अपनी फसल बेचना पडता है।पूरे पूर्वांचल में कृषि और कृषि आधारित लघु कुटीर उद्योगो का आधुनिकीकरण और दौर की चुनौतियों के लिहाज से तकनीकीकरण कर पूर्वांचल के प्रतिभाशाली पराक्रमी परिश्रमी और ऊर्जावान नौजवानो का व्यापक स्तर पर पलायन रोका जा सकता है। पूर्वांचल इस बसुन्धरा के तमाम विभूतियों की जन्मभूमि या कर्मभूमि रही हैं। पूर्वांचल की विविध ऐतिहासिक विभूतियों से जुड़े स्थलों को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किया जाय तो पूर्वांचल पूरे भारत में पर्यटन का हब बन सकता हैं। पूर्वांचल के खेत खलिहानो की प्यास बुझाने वाली नदियों और उनके घाटों का सुव्यवस्थित और सुनियोजित तरीके से सुन्दरीकरण कर रमणीक स्थल में बदलकर पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है। पूर्वांचल के सांस्कृतिक और सामाजिक पिछड़ेपन का कारण प्रमुख कारण यह है कि जिस तरह उन्नीसवीं और बीसवी शताब्दी में पश्चिम बंगाल, केरल सहित दक्षिण भारत और पश्चिमी भारत में विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक आन्दोलन हुए उस तरह का कोई आन्दोलन पूरे पूर्वांचल में नहीं हुआ। इसलिए पूरे पूर्वांचल में सशक्त सामाजिक सांस्कृतिक और साहित्यिक सुधार आन्दोलन पुनर्जागरण की आवश्यकता है। इन आन्दोलनो के माध्यम से पूर्वांचल में व्यापक स्तर पर जागरूकता लायी जा सकती हैं। इस तरह के पुनर्जागरण आन्दोलन द्वारा ही पूर्वांचल के गौरवशाली अतीत को वापस लाया जा सकता है।
लेखक
मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता
बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ ।