संसद और विधानसभा में शेर की तरह दहाड़ने वाले नेताओं के लिए तरसता पूर्वांचल

संसद और विधानसभा में शेर की तरह दहाड़ने वाले नेताओं के लिए तरसता पूर्वांचल—

मूलतः संसदीय लोकतंत्र का मौलिक सिद्धांत यह है कि-संसद और विधानसभा में शानदार , धारदार , तथ्यपरक और तर्कपूर्ण बहस होगी तभी जनता के पक्ष में शानदार नीतियां बनेगी। किसी भी देश के समग्र, संतुलित और सर्वांगीण विकास के लिए दूरगामी और दूरदर्शितापूर्ण नीतियों और निर्णयों की आवश्यकता होती हैं। दूरगामी और दूरदर्शिता पूर्ण नीतियों के निर्माण के लिए संसद और विधानमंडल में स्वस्थ्य, तार्किक , तथ्यपरक और व्यापक बहस आवश्यक है। स्वाधीनता आन्दोलन के दौरान पूर्वांचल से ऐसे शूरवीर और सूरमा निकलते रहे जिनके त्याग बलिदान शौर्य पराक्रम के किस्से और कारनामे भारत के राष्ट्रीय इतिहास में स्वर्णाकिंत है। इसी परम्परा में स्वाधीनता उपरांत पूर्वांचल की माटी से ऐसे ओजस्वी नेता प्रखर वक्ता संसद और विधानसभा में पहुँचते रहे जो शेर की तरह दहाड़ते थे और जिनके धारदार तर्कों के आगे पूरी संसद और विधानसभा निढाल हो जाया करती थी। दुर्भाग्यवश आज जातिवादी समीकरणों की कोख़ से पैदा हुए तोतले,हकले और लगभग गूंगे-बहरे नेताओं की बाढ आ गई है। इसका एक प्रमुख कारण राजनीतिक दलों में बढती आलाकमान संस्कृति भी है। प्रायः अधिकांश राजनीतिक दलों में शीर्षस्थ नेतृत्व प्रखर, प्रबुद्ध, तार्किक और ओजस्वी नेताओं से परहेज करते हैं और हाँ में हाँ मिलाने वाले और महज इशारे पर मेज थपथपाने वाले नेताओं को पसंद करते हैं। पंडित अलगू राय शास्त्री (घोसी लोकसभा), क्रांतिकारी जयबहादुर सिंह(घोसी लोकसभा), क्रांतिकारी सरजू पाण्डेय (गाजीपुर ) झारखंडेय राय (घोसी लोकसभा), विकास पुरुष कल्पनाथ राय (घोसी) सत्तर के दशक में युवा तुर्क के नाम से मशहूर श्री चन्द्रशेखर (बलिया) विश्वनाथ सिंह गहमरी (गाजीपुर) बाबू मोहन सिंह(देवरिया), समाजवादी पृष्ठभूमि के श्री चन्द्रशेखर सिंह(चिरईगाॅव) श्री चन्द्रजीत यादव (आजमगढ़), स्वाधीनता संग्राम सेनानी बाबू इन्द्रासन सिंह (सगडी)प्रखर शिक्षाविद श्री पंचानन राय (सगडी) कामरेड ऊदल (कोयसला विधानसभा) जैसे बहुतायत नेता थे जिनकी प्रतिभा प्रबुद्धता और वाणी की प्रखरता और ओजस्वीता संसद और विधानसभा में सिर चढकर बोलतीं थी। संविधान सभा के सदस्य और 1952 के प्रथम आम निर्वाचन में घोसी लोक सभा से निर्वाचित पंडित अलगू राय शास्त्री जैसे मूर्धन्य विद्वान तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु से ऑख में ऑख मिलाकर बहस करते थे। उनके विद्वतापूर्ण विचारों को सम्पूर्ण सदन गम्भीरता से सुनता था। कांग्रेस में रहते हुए या गैर कांग्रेसवाद की राजनीति करते हुए बागी बलिया की माटी में एक आम किसान परिवार में पैदा हुए युवा तुर्क चन्द्रशेखर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विषयों पर बोलते थे तो पूरे सदन में सन्नाटा पसर जाता था। संसदीय परम्परा और शिष्टाचार में विश्वास करने वाले राजनीतिक विश्लेषक आज भी चन्द्रशेखर द्वारा संसद में दिये गए भाषणों को याद करते हैं। 1962 मे घोसी लोक सभा से निर्वाचित अपने पुरखों द्वारा विरासत में मिली सोलह छांवनिया गरीबों में बाँटने वाले सूरज पुर के जमींदार जयबहादुर सिंह द्वारा संसद और सडक पर दिये गये क्रांतिकारी भाषणों पर उस दौर की पीढी गर्मजोशी से चर्चा करतीं हैं।1968 मे ऊर्दू को दूसरी जबान का दर्जा दिलाने के लिए आमरण अनशन करते दौरान जयबहादुर सिंह के निधन पर तत्कालीनप्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी कहा था कि- पूर्वांचल का शेर दुनिया से चला गया। पूर्वांचल के हर मस्तक को गौरवान्वित करने वाला तथ्य यह है कि-9 मई 1946 को जयबहादुर सिंह ने लगभग पैत्तीस हजार किसानों ,मजदूरों,बुनकरों और नौजवानों के साथ तत्कालीन अंग्रेज कलेक्टर को घेर लिया था । जिसकी चर्चा लंदन स्थित ब्रिट्रिश पार्लियामेंट में हुई थी कि- एक पाॅच फुट छ इंच का आदमी अपने पैत्तीस हजार लोगों के साथ लगातार छ घंटे से भाषण दे रहा है परन्तु जनता टस से मस नहीं हो रही हैं। जयबहादुर सिंह की परम्परा में गाजीपुर के सांसद रहे श्रद्धेय सरजू पाण्डेय के भाषण की गूंज संसद सुनी जाती हैं। सरजू पाण्डेय के व्यक्तित्व और ईमानदार चरित्र के कारण उत्तर प्रदेश के दूसरे दलों के मुख्यमंत्री उनका बहुत आदर सम्मान करते थे। इसी परम्परा में साहित्य और अदब की जरखेज जमींन आजमगढ़ से पूर्व इस्पात मंत्री श्री चन्द्रजीत यादव ने अपने शानदार व्यक्तित्व कृतित्व और ओजस्वी वाणी के दम पर राष्ट्रीय क्षितिज पर अपनी पहचान बनाई थी। उनकी प्रखरता, प्रतिभा और राजनीतिक समझदारी से प्रभावित होकर श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने अपने मंत्रिमंडल में इस्पात मंत्री बनाया था। आजमगढ़ के पूर्वी छोर पर सगडी विधानसभा से 1962 में विधायक चुने गए स्वाधीनता संग्राम सेनानी बाबू इन्द्रासन सिंह ने अपने त्याग ,बलिदान संघर्ष और ईमानदारी के उत्तर प्रदेश कांग्रेस पार्टी में कोषाध्यक्ष का पद हासिल किया था। शेर-दिल-अंदाज बाबू इन्द्रासन सिंह ने बेबाक बोली-वाणी की बदौलत अपने दौर के समस्त मुख्यमंत्रियो पंडित गोबिन्द बल्लभ पंत,श्री सम्पूर्णानन्द और सुचेता कृपलानी से बेहतर संबंध स्थापित कर लिए थे। महान शिक्षाविद शिक्षक राजनीति की अनमोल धरोहर रहे स्वर्गीय पंचानन राय जब विधान परिषद और विधानसभा में बोलने के लिए खडे होते थे तो पूरा सदन गम्भीरता से सुनता था। अपनी उत्कट तार्किक दक्षता, प्रबुद्धता और प्रखरता से श्री पंचानन राय मंत्रिपरिषद सहित सम्पूर्ण सदन का ध्यान आकर्षित कर लेते थे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के 1977 के आंदोलन की कोख़ से उपजे देवरिया से विधायक और सांसद रहे बाबू मोहन सिंह अपनी प्रबुद्धता और ओजस्विता के कारण उत्तर प्रदेश की विधानसभा और देश की संसद में शानदार वक्ताओं की श्रेणी में गिने जाते थे। पहली बार में ही इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष के लिए निर्वाचित हुए बाबू मोहन सिंह महज 27 वर्ष में देवरिया से विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। श्रद्धेय श्री जनेश्वर मिश्र, श्री कपिल देव सिंह और डॉ रामकमल राय की परम्परा के प्रख्यात समाजवादी चिंतक और विचारक बाबू मोहन सिंह के भाषणो को आज भी समस्त उत्तर भारत का बौद्धिक समुदाय स्मरण करता है। शानदार, धारदार, तथ्य परक और तार्किक दमदारी से संसद और विधानसभा में अपनी बात रखने वाले नेताओं को भेज कर ही संसदीय लोकतंत्र के मौलिक स्वरुप को साकार कर सकते हैं। दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि- प्रखर ,प्रबुद्ध और प्रतिभाशाली बहस कर्ताओं के साथ-साथ सडक पर संघर्ष करने वाले नेताओं की कतार भी धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है।

मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता
बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ ।

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