एमबीआईटी कॉलेज में बड़े पैमाने पर हो रहा है छात्रों के साथ धांधली व शोषण- डीपी राय
सिमराहा (अररिया)
एमबीआईटी कॉलेज फारबिसगंज में बेहतर भविष्य के सुनहरे सपनें संजोये गरीब परिवार के बच्चों के साथ कॉलेज प्रशासन के द्वारा बड़े पैमाने पर आर्थिक व मानसिक शोषण किया जा रहा है। इस संबंध में अनेक चौकाने वाले मामले उजागर करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता दक्षिणेश्वर प्रसाद राय पप्पू ने बताया की मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना अन्तगर्त बिहार सरकार द्वारा चलाये जा रहे महत्वकांक्षी योजना है “आर्थिक हल युवाओं को बल” के माध्यम से संस्था में पढ़ने वाले लड़कियों को एक प्रतिशत व लड़कों को तीन प्रतिशत की दर से चार लाख रुपये तक लोन प्रदान करती है।जो वर्षवार एक लाख राशि कॉलेज के खाता में डीआरसीसी द्वारा संस्थान के खाते में भेज दिया जाता है। एमबीईटी में पांच सौ बच्चों का नामांकन है। इस अनुसार छात्रो को लोन उपलब्ध कराने के लिए प्रत्येक वर्ष पांच करोड़ रुपये कॉलेज के खाते में जमा होता है। जिसका क्रेडिट होने का मैसेज छात्रों को मिलता है। उस पैसे से संस्थान को छात्रों के लिए पढाई के साथ बेहतर भोजन, रहने सहने की बेहतर सुविधा को बहाल करना होता है। मगर कॉलेज के जिम्मेदार लोगों के द्वारा ठीक इसके विपरीत हो रहा है। बच्चों को मिलने वाली मूलभूत सुविधाएं बिल्कुल शून्य है। संस्थान के एमडी अमित कुमार दास 2018 से ही अपने भाई सुजीत कुमार दास को संस्थान का सीईओ बनाने के बाद अस्ट्रेलिया में रह रहे हैं। सुजीत कुमार की एक निजी फार्मा कंपनी जो की दिल्ली में है ,वही से बैठे बैठे संचालन करते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता डीपी राय ने बताया की सीईओ इन छात्रों के पैसे से करोड़ो का कारोबार दिल्ली व अन्य जगह करते हैं।छात्रों का निजी हॉस्टल क्रमश शायरा नगर के पश्चिम तीन, स्टेशन चौक, सुल्तान पोखर व चकरदाहा में एक एक हास्टल है। इन हॉस्टलों का भी दो लाख से अधिक बकाया है। जिसके परिणामस्वरूप छात्रों को हॉस्टल मालिकों द्वारा पडताड़ना सहनी पड़ती है। दुसरी ओर सामाजिक कार्यकर्ता ने एक और बड़ा वित्तीय अनियमितता को उजागर करते हुए कहा है की (ए.आई.सी.टी.) आल इंडिया टेक्निकल एजूकेशन नई दिल्ली का मानक के अनुसार जिस किसी व्यक्ति ने इंजीनियरिंग कॉलेज से एमटेक किया है और उनकी नियुक्ति किसी संस्थान में शिक्षण कार्य के लिए होती है तो उनकी सैलरी पैंतीस हजार से कम नहीं होगी। संस्था के एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हम लोगों को सिर्फ 26 हज़ार 3 सौ रुपये मिलता है। शेष पैसा संस्थान के सीईओ के द्वारा गबन कर लिया जाता है।